फिर लगेगा जाम , मटर मंडी का विकल्प कागजों तक
11 बजे से 7 बजे तक आईटीआई से दमोह नाका तक मार्ग से बचें
जबलपुर, यश भारत। मटर का मौसम, फिर होगी आईटीआई दमोह नाका मार्ग से निकलने की कवायद। वाहनों की लगेगी लंबी कतारें, न जाने कब सुध आएगी जिम्मेदारों को, मटर मंडी को परिवर्तित करने की कार्यवाही कागजों तक ही सीमित रह गई है। लगता है नेता और प्रशासन अपनी जवाबदेही से भाग गया है। हालात यहां के यह हो जात हैे, लगने वाले जाम यदि कोई मरीज अस्पताल जाने एम्बुलेंस में यदि यहां से उस वक्त गुजर रहो वह अपने समय पर इलाज के लिए अस्पताल तक नहीं पहुंच पाता है। सर्वविदित है यह समस्या काफी लंबी है। कारण यह है कि पाटन सिहोरा शहपुरा कटंगी से आने वाली मटर की गाडिय़ां कृषि उपज मंडी जबलपुर जाती हैं। जिसके चलते यहां सुबह 11 बजे से लेकर शाम 7 बजे तक जाम की गंभीर समस्या रहती है।
उल्लेखनीय है कि कई बार प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर प्रयास किए गए है। लेकिन कोई हल नहीं निकला। मटर का सीजन सामने आते ही मामला उठना है और फिर जैसे ही मटर की आवक कम होती है, मामला भी शांत हो जाता है। मटर मंडी के वैकल्पिक विकल्प को लेकर पाटन कटंगी बाईपास पर प्रशासन द्वारा जगह भी देखी गई थी। लेकिन अभी तक इस समस्या का हल नहीं निकला।
हर साल उठता है मामला
इस साल मटर की आवाज अभी शुरू ही हुई है कि जाम की समस्या दिखने लगी है। शाम के समय दमोह नाका आईटीआई मार्ग से निकलना मुश्किल हो जाता है । वहीं दूसरी तरफ दीनदयाल चौक पर स्थित आईएसबीटी की बसों के कारण यह समस्या दीनदयाल चौक पर और विकराल रूप ले लेती है। इसको लेकर पिछले साल भी बहदन ब्रिज के पास जमीन देखी गई थी। जिसके अधिग्रहण को लेकर भी नोटिफिकेशन जारी हुआ था लेकिन बाद में सब ठंडे बस्ते में चला गया। फिर रिंग रोड प्रोजेक्ट आ जाने के कारण फिर से असमंजस की स्थिति खड़ी हो गई है कि मटर मंडी के लिए जगह कहां निर्धारित की जाए।
नहीं मिलता रेट
जाम के चलते एक ओर जहां आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है वहीं किसानों को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है । क्योंकि जबलपुर से बड़ी मात्रा में मटर दूसरे जिलों में जाता है और दूसरे जिलों में जाने वाली गाडिय़ां दोपहर से ही जाना शुरू हो जाती है। जिस के चलते दिल्ली और बेंगलुरु की मंडियों में मटर समय पर पहुंच सके और उसका उचित दाम मिल सके। लेकिन जाम के चलते किसानों की गाडिय़ां सड़कों पर ही फंसी रहती हैं और मंडी में समय पर नहीं पहुंचती। जिसके चलते उन्हें मटर का उचित रेट नहीं मिलता और मटर जितना लेट मंडी में पहुंचता है उसका रेट उतना कम होता जाता है।