हाईकोर्ट ने कहा क्या शासन को आरक्षण नीतियों का ज्ञान नहीं है
स्कूल शिक्षा विभाग तथा शासन को लिया आड़े हाथों- प्राथमिक शिक्षकों को ट्रायबल स्कूलों से उनकी चॉइस के अनुसार स्कूल शिक्षा विभाग में रिक्त पदों का नियुक्ति का मामला
जबलपुर, यशभारत। स्कूल शिक्षा विभाग ने सयुंक्त काउंसलिंग करके आरक्षित वर्ग के ढाई हजार से अधिक शिक्षकों को उनकी चॉइस के विरूद्व ट्रायबल विभाग द्वारा संचालित स्कूलों में उनके गृह जिला से 300 से
800 किलोमीटर दूर किया पद पदस्थापित किया गया है । स्कूल शिक्षा विभाग के उक्त कृत्य के विरूद्व हाईकोर्ट में पूर्व में कई याचिकाए दाखिल की गईं थी जिनको हाईकोर्ट ने डिस्पोजआफ करके कमिश्नर लोक शिक्षण विभाग डीपीआई आदेशित किया गया था की आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4(4) तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंद्रा शाहनी,रीतेश आर.शाह, अलोक कुमार पंडित, त्रिपुरारी शर्मा एवं सौरभ यादव के मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी मार्गदर्शन के अनुसार याचिका कर्ताओ के प्रकरण का परिक्षण करके उनकी पसंद (चॉइस ) के अनुसार पदस्थापित किया जाए। लेकिन कमिश्नर ने महाधिवक्ता कार्यालय के अभिमत के आधार पर उक्त समस्त अभ्यार्थियों के प्रकरण निरस्त कर दिए गए तथा डीपीआई कमिश्नर ने रिजेक्शन आदेश में नियम पुस्तिका की कण्डिका क्रमांक 15.6 का लेख करके याचिका कर्ताओ को सूचित किया गया की किसी भी अभ्यार्थियों को चॉइस के आधार पर पदस्थापना का दावा मान्य नहीं होगा। डीपीआई के उक्त समस्त आदेशों की संवैधानिकता को हाईकोर्ट की डिवीजन बैच में चुनौती दीं गईं। उक्त समस्त याचिकाओं की सुनवाई जस्टिस संजीव सचदेवा तथा जस्टिस विनय सराफ की खंड पीठ द्वारा की गईं ।
समस्त याचिका कर्ताओ की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कोर्ट को बताया की , संविधान के अनुच्छेद में समानता का अधिकार प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है, लेकिन इन प्रकरणों में स्कूल शिक्षा विभाग, एवं कमिश्नर डीपीआई द्वारा याचिका कर्ताओ से कम अंक बाले हजारों अभ्यर्थियों को स्कूल शिक्षा विभाग में उनकी चॉइस के अनुसार उनके गृह जिलो में उनके ही वर्ग में पदस्थापित किया गया, जबकी याचिका कर्ताओ ने एक भी स्कूल ट्रायबल विभाग का चॉइस नहीं किया है लेकिन कमिश्नर द्वारा नियम विरूध तरीके से उनकी आरक्षित केटेगरी को अनारक्षित वर्ग में प्रतिवर्तित करके उनके गृह जिलों से 300 से 800 किलोमीटर दूर दराज रिमोट एरिया में ट्रायबल विभाग द्वारा संचालित स्कूलों में पोस्टिंग/ पदस्थापना दीं गईं है। पदस्थापना के समय कमिश्नर ने न तों उनकी चॉइस को वरीयता दीं औऱ न ही आरक्षण अधिनियम के प्रावधानो को औऱ सबसे मुख्य बात यह है की एक बार हाईकोर्ट कमिश्नर को की गईं भूल को सुधारने का मौका भी दे चुकी है फिर भी कमिश्नर ने सुधार नहीं किया तथा हाल ही में स्कूल शिक्षा विभाग ने जिला वार रिक्त पदों का रोस्टर भी जारी कर दिया गया है।
एडिशनल एडवोकेट जनरल को कोर्ट ने सुनाई खरी-खरी
शासन की ओर से जबाब दाखिल किया जा चुका है, शासन का पक्ष रखते हुए एडिशनल एडवोकेट जनरल ने कोर्ट को बताया की याचिका कर्ताओ द्वारा उन अभ्यर्थियों को पक्षकार नहीं बनाया गया है,जिनकी नियुक्तियां याचिका कर्ताओ द्वारा चॉइस किए स्कूलों में की गईं है । शासन की ओर से पक्ष रख रहे एडिशनल एडवोकेट जनरल को कोर्ट ने जमकर लताड लगाते हुए कहा की मिस्टर सरकारी वकील लगता है की शायद कानून की जानकारी न आपको है औऱ न ही आपके विभाग प्रमुख को, जब कानून की वैधानिकता या पालिसी मेटर की वैधानिकता को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दीं जाती है तब संभावित प्रभावित व्यक्तियों को पक्षकार बनाने की आवश्यकता नहीं होती है । इन समस्त प्रकरणो में आपके विभाग ने आरक्षण नीति तथा सुप्रीम कोर्ट के रेखांकित सिद्धांतो के विरूद्व याचिका कर्ताओ को आरक्षित वर्ग से अनारक्षित में कन्वर्ट करके डिसएडवांटेज पोजीशन में नियुक्तियां दीं गईं है जो इस न्यायालय के हस्तक्षेप के योग्य है इसलिए आपको अंतिम मौका दिया जाता है कि 21 अक्टूबर के पूर्व उक्त समस्त याचिकाकर्ताओ को उनकी चॉइस के आधार पर स्कूल शिक्षा विभाग में रिक्त पदों के विरुद्ध नियुक्ति जारी कर कोर्ट को सूचित करें। अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं विनायक प्रसाद शाह ने पैरवी की।