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डोरीलाल की चिन्ता

न्याय की देवी की तराजू और तलवार

JABALPUR. डोरीलाल लगातार देख रहा है न्याय की देवी को। सबकुछ वैसा ही है। आंखों में बाकायदे पट्टी बंधी है। बिलकुल ठीक है। कानून अंधा होता है। यह कहा ही जाता है। यह पट्टी हमेशा ऐसी ही रहती है। हमेशा से यह पट्टी रही है और लगता यही है कि खुली आंखों से न्याय होते देखा नहीं जाता। यह इंसान का एक अच्छा हासिल है। अंधी आंखों के सामने हो तो न्याय और खुली आंखों के आगे हो तो अन्याय। खुले आम वारदात, सरे आम बेइज्जती, दिन दहाड़े हत्या जैसे अपराध जब खुली आंखों के आगे होते हैं तो फिर इनका न्याय बंद आंखों के सामने क्यों ?

पर न्याय की देवी के दूसरे हाथ में क्या है ? दूसरे हाथ में है एक तीन चार फुट की तलवार जो देवी के हाथों से लेकर जमीन तक है। अच्छा खासा हथियार है। ये तलवार देवी क्यों लिए हुए हैं ? तलवार तो मारने के लिए होती है इससे कम कुछ नहीं। तो देवी एक हाथ में तराजू लिए हैं और एक हाथ में तलवार। तलवार किसे मारने के लिए हैं देवी। दो ही आदमी उनके सामने हैं। एक अपराधी और दूसरा न्याय करने वाला। अपराधी को तो न्याय करने वाला भी मार सकता है। न्याय की देवी जो एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार लिए हैं वो तलवार वो उस न्याय करने वाले को मारेंगी जो गलत न्याय करेगा। गलत करने वाले की खैर नहीं।

हे न्याय की देवी तुम कहां हो ? तुम जहां भी हो आ जाओ। अपनी तराजू तलवार लेकर आ जाओ देवी इस भारत भूमि पर। तुम्हारे चाहने वाले दर दर भटक रहे हैं। न तुम्हारी तराजू दिख रही है और न तुम्हारी तलवार। न न्याय में संतुलन बचा न तलवार में धार। दोनों गायब। न न्याय में धार बची न समाज में न्याय बचा। मगर न्याय की चाह में गरीब अपने गांव से लेकर दिल्ली तक नंगा दौड़ रहा है। उसके कपड़े लत्ते तक उतर चुके हैं। कोर्ट का चक्कर लगाते लगाते। वो न्याय मांग रहा है। न उसे न्याय मिल रहा है न सजा। उसे न्याय नहीं मिल रहा यही उसकी सजा है। न्याय न मिलने को दोनों भुगतते हैं गरीब भी अमीर भी। अमीर के पास पैसा रहता है। वो न्याय खरीद सकता है। उसे अंग्रेजी आती है। न्याय को भी अंग्रेजी आती है। वकील को भी अंग्रेजी आती है। गरीब के पास पैसा भी नहीं होता और अंग्रेजी भी नहीं होती। बिना पैसे का वकील नहीं होता। उसके पास होता है बाबा जी का ठुल्लू बस उसे लिये वो घूम रहा है। गरीब इस भ्रम में न्याय मांगते मांगते मर जाता है कि उसे न्याय मिल सकता है। वो रागदरबारी का लंगड़ है।

न्याय करने के लिए ईश्वर चाहिए। इन ईश्वरों का चुनाव कुछ मनुष्य करते हैं। मनुष्य के बनाए ईश्वर मनुष्य का न्याय करते हैं। ईश्वर द्वारा न्याय न हो यह बहुत बड़ा न्याय होता है। न्याय लंबित रखा जाता है। ईश्वर न्याय नहीं करते। वो अगली तारीख देते हैं। देश भर में छोटे छोटे ईश्वर बैठे हैं। वो भी न्याय करते हैं। फिर उनके न्याय पर न्याय मध्यम स्तर के ईश्वर करते हैं। फिर उच्च और उच्चतम स्तर है। वहां और बड़े ईश्वर हैं। बल्कि साक्षात ईश्वर। कभी मध्यम वाले उच्च की ओर बॉल फेंक देते हैं। कभी उच्च वाले मध्यम को बॉल फेंक देते हैं। उच्च और सर्वोच्च में भी यही खेल चलता है। और न्याय कोई नहीं करता। सर्वोच्च के निर्णय को कोई चुनौती नहीं है। उसका न्याय अंतिम है चाहे जैसा हो। हम भारत के लोग मानवीय न्याय से महरूम हैं। हम ईश्वरीय न्याय पर भरोसा रखने लगे हैं। हारे को हरि नाम। गरीब जब पिटता है तो जानता है कि उसके साथ कोई नहीं है। वो कहता है तुम्हारे पापों की सजा तुम्हें भगवान देगा। वो नहीं कहता न्यायाधीश देगा। उसे कोई उम्मीद नहीं है।

दिल्ली वि वि के एक प्रोफेसर जो 90 प्रतिशत विकलांग हैं उन्हें राष्ट्र के विरूद्ध युद्ध छेड़ने के मामले में आजीवन कारावास की सजा हुई। कई साल बाद मुम्बई हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच ने फैसला दिया कि इस व्यक्ति को दोषमुक्त किया जाता है। न्याय की तेजी देखिये फैसले के दूसरे दिन सरकार उच्चतम कोर्ट पंहुच गई। उच्चतम कोर्ट ने भी तुरंत कहा कि नहीं हाईकोर्ट का फैसला नहीं माना जाएगा। हाईकोर्ट फिर से इस केस की सुनवाई करे। पुराने जजों को न दिया जाए। दो नए जजों को कहा जाए कि फिर से केस सुनें। लगभग यह संदेश कि पिछले बार जो गलती की है उसे दोहराया न जाए। आदमी बच न जाए। एक नब्बे प्रतिशत विकलांग व्यक्ति जो व्हील चेयर पर चलता है और जिसे गंभीर बीमारियां हैं जो सालों से जेल में सड़ रहा है वो इस महान शक्तिशाली विशाल सेना, पुलिस वाली सरकार के लिए बड़ा खतरा हो सकता है। कहा गया कि भले ही उस आदमी का पूरा शरीर किसी काम का न हो परंतु वो सोच तो सकता है क्योंकि उसके पास दिमाग तो चालू हालत में है। मनुष्य के शरीर में दिमाग सबसे खतरनाक अंग है।

भोला भाला भारतीय आदमी हर ईश्वर में न्याय देखता है। उसे लगता है कि ये नया ईश्वर आया है। ये जरूर न्याय करेगा। ये बड़ा विद्वान है। ये बड़ा निडर है। देखो उस दिन इसने ये कहा । देखो उस दिन उसने उसे कैसा फटकारा। उधेड़ कर रख दिया। अब होगा सही न्याय। परंतु महीने दर महीने गुजरते जाते हैं। फिर धीरे धीरे मुकदमों की एक फेहरिस्त तैयार होती जाती है। अरे इतने मुकदमे हुए अंततः सबमें खेल हो गया। बोला कुछ लिखा कुछ। जिसको डांटा उसी को बांटा। ये तो डबल गेम हो गया। हर पीड़ित नाउम्मीद। हर पीड़क खुश। सरकार हंस रही है। कौन ठगा गया ? कौन बना उल्लू ?

न्याय की देवी कहां हो तुम, कहां है तुम्हारा न्याय और कहां है तुम्हारी तलवार। मारो न दुष्टों को अपनी न्यायपूर्ण तलवार।

डोरीलाल न्यायप्रेमी

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