जबलपुरमध्य प्रदेश

भैया को भाव नहीं दे रहे अधिकारी,सत्ता में रहकर भी सत्ता सुख से दूर भाजपा नेता छोटे-छोटे कामों को लेकर भोपाल के भरोसे

 जबलपुर यश भारत। प्रदेश सत्ता का निजाम बदले छः महीने से ज्यादा का समय बीत गया है । सरकार बन गई मंत्री बन गए करीबी और करीब आ गए, जिन्हें दूर होना था वह दूर चले गए। अब दौर शुरू हो गया है काम करने और करवाने का। ऐसे में सत्ता के घोड़े पर सवार भाजपा के नेता अब अपने आप को कहीं न कहीं ठगा सा महसूस करने लगे हैं । चाहे बड़े नेता हो या मझोले आकर के नेता सब  मनमसोस के बैठे हैं। अब छोटे  नेताओं की तो सत्ता के दौर में कोई गिनती ही नहीं होती, वह तो सिर्फ संघर्ष के साथी होते हैं।

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मामला यह है कि बड़े अधिकारी तो अधिकारी छोटा अधिकारी भी जी भाई साहब, हो जाएगा भाई साहब, बिल्कुल भाई साहब, आपका आदेश सबसे पहले भाई साहब, कहने  में तो देरी नहीं लागाते। लेकिन भाई साहब के काम करते भी नहीं है। एक – दो बड़े चहरो को छोड़ दे तो, दर्द इतना बढ़ गया है कि चौराहों से मोटरसाइकिल छुड़वाने के लिए भी आरजू मिन्ते करनी पड़ती हैं। इसकी सच्चाई  बात से समझी जा सकती है कि आए दिन सत्ता पक्ष, विपक्ष की भूमिका निभाने सरकारी कार्यालयों में किसी न किसी रूप में हंगामा करते दिखाई देता है।

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बात नगर निगम की हो या कलेक्ट्रेट की हो या फिर पुलिस विभाग की हो सब जगह यही चल रहा है। ग्रामीण क्षेत्र की स्थितियां भी कुछ अलग नहीं है। जहां तहां शिकायती पत्र मुख्यमंत्री के नाम वायरल होते रहते हैं । जो सत्ता के सिंहासन पर बैठे लोग ही करते हैं। स्थिति तो यह हो गई है कि जिनके कभी आदेश चला करते थे अब उनके निवेदन भी नहीं स्वीकारे जा रहे हैं। इस बात को समझना होगा की यह स्थिति निर्मित क्यों हुई है। जिस पर भाजपा के नेता खुलकर तो सामने कुछ नहीं कहते लेकिन भीतर खाने अपना दर्द बयां कर ही देते हैं। अब भाजपा जिस पैटर्न पर राजनीति कर रही है वह कहीं ना कहीं सेंट्रलाइज व्यवस्था है। जिसमें सुप्रीम लीडर को छोड़कर नीचे ताकत का बंटवारा बहुत कम हो रहा है। ऐसे में जमीनी कार्यकर्ता की तो कोई बात ही नहीं है। बड़े नेता भी खुद को कमजोर सा महसूस करते हैं और छोटे-छोटे कामों के लिए भोपाल में बैठे बड़े मंत्रियों के भरोसे हो गए हैं।Screenshot 2024 08 03 17 17 42 96 40deb401b9ffe8e1df2f1cc5ba480b12

इसका कारण भाजपा की बड़ी जीत बताई जा रही है। जबकि भाजपा के पास एक बड़ा जनाधार है, ऐसे में भोपाल और दिल्ली में बैठे संगठको  को यह बात समझ आ गई है कि जनता का रुझान भाजपा की तरफ है न कि क्षेत्रीय नेतृत्व की तरफ। ऐसे में भाजपा क्षेत्रीय नेतृत्व को पीछे करके केंद्रीय नेतृत्व की राजनीति पर काम कर रही है।  इस रणनीति से उसे फायदा भी मिल रहा है ऐसे में वह सीधे जनता से संवाद स्थापित करने वाली प्रशासनिक व्यवस्था पर काम कर रही है न की क्षेत्रीय नेतृतव को प्रोत्साहन दे रही है। जिसके चलते अधिकारी हा से ना तो करते नहीं है और काम  भी नहीं करते है।

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