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निर्जला एकादशी व्रत आज -निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी की मंजरी अवश्य अर्पित करें

एकादशी के व्रत को सभी एकादशी व्रत में से श्रेष्ठ और कठिन व्रत में एक माना जाता है। क्योंकि इस व्रत में अन्न तो क्या पीनी भी पीने की मनाही होती है। भगवान विष्णु को समर्पित इस व्रत को करने से व्यक्ति को जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। कहते हैं कि इस व्रत को महाभारत काल में भीम ने इस कठिन व्रत को किया था, तभी से इसे भीमसेनी एकादशी तक भी कहा जाता है। मान्यता है कि निर्जला एकादशी के दिन पूजा श्री हरि की पूजा करने के साथ कुछ विशेष उपाय करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है।
निर्जला एकादशी कब है?
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वैदिक पंचांग के अनुसार, निर्जला एकादशी यानी जेष्ठ माह की एकादशी तिथि की शुरुआत 6 जून को देर रात 2 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगी। वहीं तिथि का समापन अगले दिन 7 जून को तड़के सुबह 4 बजकर 47 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, 6 जून को रखा जाएगा।
निर्जला एकादशी के उपाय
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भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए निर्जला एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा आराधना करें। माता लक्ष्मी को एक श्रीफल अर्पित करें।
 मान्यता है कि ऐसा करने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है सभी दुख दूर हो जाते हैं।
धन लाभ के लिए क्या करें?
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पैसों की तंगी से बचने और धन का प्रवाह बढ़ाने के लिए निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी की मंजरी अवश्य अर्पित करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। एकादशी तिथि के दिन तुलसी दल अथवा मंजरी को ना तोड़े।
ऐसे बढ़ेगा सुख-सौभाग्य
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निर्जला एकादशी के दिन जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु को तुलसी दल अर्पित कर सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें। इसके साथ ही माता लक्ष्मी को खीर भोग लगाना चाहिए ऐसा करने से अच्छे वर की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी का महत्व
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सनातन धर्म में निर्जला एकादशी का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से साधक (व्यक्ति) दीर्घायु होता है। वहीं, मृत्यु के बाद साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। सभी एकादशियों में निर्जला एकादशी श्रेष्ठ है। व्रत के दौरान जल ग्रहण पूर्णतः वर्जित है। इस व्रत को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। गंगा दशहरा के एक दिन बाद निर्जला एकादशी मनाई जाती है। इस शुभ अवसर पर साधक अपने घरों पर व्रत रख लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करते हैं। वहीं, मंदिरों में भगवान विष्णु और देवी मां लक्ष्मी की विशेष पूजा और आरती की जाती है।
निर्जला एकादशी पर दुर्लभ संयोग
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निर्जला एकादशी के दिन भद्रावास और वरीयान योग का संयोग बन रहा है। इसके साथ ही हस्त और चित्रा नक्षत्र का भी निर्माण हो रहा है। वहीं, अभिजित मुहूर्त और वणिज करण के भी योग हैं।
निर्जला एकादशी पूजा विधि
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एकादशी व्रत के नियम की शुरुआत दशमी तिथि से होती है। अतः दशमी तिथि पर घर के दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद स्नान-ध्यान करें। साधक गंगाजल युक्त पानी (गंगाजल मिला पानी) से स्नान करें और आचमन कर एकादशी व्रत संकल्प लें। इसके बाद पीले रंग के कपड़े पहनें और सूर्य देव को जल अर्पित करें। अब भक्ति भाव से लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करें। दशमी तिथि पर सात्विक भोजन करें। साथ ही ब्रह्मचर्य नियमों का पालन करें। किसी के प्रति कोई वैर भावना न रखें और न ही किसी का दिल दुखाएं। अगले दिन यानी एकादशी तिथि पर ब्रह्म बेला में उठें। इस समय लक्ष्मी नारायण जी का ध्यान कर उन्हें प्रणाम करें। इस समय निम्न मंत्र का पाठ करें।

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