
जबलपुर यशभारत। लोक आस्था का चार दिवसीय पर्व छठ महापर्व आज अपने दूसरे दिन ‘खरना’ के रूप में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश और बिहार की संस्कृति से जुड़ा यह पर्व अब संस्कारधानी जबलपुर की पहचान बन चुका है। रविवार को सुबह-से ही नर्मदा तटों, स्थानीय सरोवरों और तालाबों पर व्रती महिलाओं-पुरुषों की भीड़ उमड़ पड़ी।

शाम होते ही व्रतधारी विशेष प्रसाद बनाकर आराध्य देव सूर्य नारायण को अर्पित करेंगे, तत्पश्चात निर्जला उपवास की शुरुआत करेंगे। व्रतियों के घरों में गूंज रही लोकधुनें, ठेकुआ की खुशबू और गन्ने-फल से सजे डाले श्रद्धा-भाव की छटा बिखेर रहे हैं।
शहर के प्रमुख घाट — भेड़ाघाट, तिलवारा, ग्वारीघाट, उमाघाट और सरोवरों पर सजावट और रोशनी की भव्य व्यवस्था की गई है। प्रशासन व स्थानीय समितियों ने घाटों पर सुरक्षा, स्वच्छता और यातायात व्यवस्था सुदृढ़ रखी है। श्रद्धालुओं के लिए जल-प्रबंध, लाइटिंग और भीड़-नियंत्रण हेतु पुलिस बल भी तैनात किया गया है।
पूर्वांचल से आए श्रद्धालु-समूहों के साथ स्थानीय भोजपुरिया समाज ने घाटों पर लोकगीत-भजन गूंजाए
“कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए… छठी मइया से नेह लागल, मनवा हरषाए…”
घाटों के पास लगे प्रसाद-मंडपों में ठेकुआ, केला, नारियल, नींबू-गन्ना आदि प्रसाद-सामग्री की खरीदारी पूरे दिन चलती रही। मौसम सुहावना बना हुआ है, और श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बन रहा है।

व्रत एवं पूजा का महत्व:
पहले दिन ‘नहाय-खाय’ के बाद दूसरा दिन ‘खरना’ अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन आत्म-शुद्धि, संयम और समर्पण के साथ व्रती निर्जला व्रत की तैयारी करते हैं। यही से छठ पर्व का कठिन और सबसे पवित्र चरण प्रारंभ होता है, जो सूर्योपासना और प्रकृति-प्रेम की अनुपम मिसाल है।







