जबलपुरमध्य प्रदेशराज्य

डोरीलाल की चिन्ता:- दशहरा आ रहा है, रावण मरेगा

 

दशहरा आ रहा है। रावण की मौत नजदीक है। रावणों में घबराहट है। चुनाव की तारीखों की भी घोषणा हो चुकी है। सभी भगवान राम बनना चाह रहे हैं। सभी अगले को रावण बता रहे हैं। जनता को समझ में नहीं आ रहा करें तो क्या करें। राम रावण का भेद कैसे करें। सबके पास पैसा है। सभी के पास श्वेत वस्त्र हैं। सभी के पास फॉर्चुनर कार है। सभी के पास सफेद जूते हैं। जनता का भ्रम दूर करने के लिए कुछ लोग भगवा और कुछ लोग तिरंगे रंग के उत्तरीय धारण किए हैं। धार्मिकता और राष्ट्रीयता एक साथ। सभी के पास आमजन की भलाई की नाना प्रकार की योजनाएं हैं। योजनाएं क्या हैं वरदान हैं। आचार संहिता न लगती तो वरदानों का बादल फट जाता और तबाही मच जाती। भगवान ने गरीबों का ख्याल रखा। हालांकि आचार संहिता तभी लगी जब सारे वरदान दिए जा चुके थे। सारे शिलान्यास हो चुके थे और सारे लोकार्पण किए जा चुके थे।

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ये बड़ी अच्छी बात है कि हमारे देश और प्रदेश में राजनीति भगवान को समर्पित हो गई है। पुराने समय में कहा जाता था कि भगवान सबका भला करेंगे। अब राजनीतिज्ञ भगवान का भला कर रहे हैं। सभी मंदिरों में बैठे भगवान राह तक रहे हैं कि कब मुख्यमंत्री आएंगे और हमारा भला करेंगे। इस चुनाव के आते आते तक प्रदेश की जनता को पता चल गया कि उनके प्रदेश, जिले या शहर या गांव में कौन सा प्रतापी मंदिर है जिसका विकास किया जाना है। मंदिर से वह अपग्रेड होकर ’लोक’ बन जाएगा। विकास मतलब कम से कम 100 करोड़। मंदिर का उद्धार होगा तो सौ करोड़, स्मारक बनेगा तो सौ करोड़ और मंदिर काम्पलेक्स बनेगा तो 100 करोड़। मूर्तियों की घोषणा हो रही है। जो मन में आए वो ऊंचाई बोल दो। चाहे 52 फुट चाहे 104 फुट। कुछ ऐसे लोकार्पण हुए जिनको पूरा होने में अभी कई साल लगना हैं। जल्दी इतनी थी कि जबलपुर में बैठकर इंदौर के काम का लोकार्पण हो रहा है।

लोकतंत्र का जल्वा जोरों पर है। अब कोई भी नेता कोई भी आंकड़ा बोलता है तो उसमें लाख करोड़ की राशि जरूर बोलता है। चाहे घोटाला हो, चाहे निर्माण की लागत हो सभी लाखों करोड़ में होते हैं। डोरीलाल ने कई बार कोशिश की कि एक लाख करोड़ लिखे। मगर लिखते नहीं बना। पढ़ने की बात ही दूर। इसलिए अब अंक शब्दों में बदल गए हैं। इसलिए घपले घोटाले अंकों की जगह शब्दों में व्यक्त होते हैं। मंच पर आंकड़े बोलते नेता को मालूम है कि कुछ भी बोल दो सामने बसों, ट्रैक्टरों में लाई गई जनता को कोई मतलब नहीं। नेता को भी इस जनता से कोई मतलब नहीं। उसे मालूम हो गया है कि इस जनता को कैसे हैन्डल करना है। जनता को इस तरह से तैयार कर दिया गया है कि नंगा खड़ा है लेकिन बात करेगा धारा 370, तीन तलाक और राम मंदिर की। उसे समझ आ गया है कि भले में भूखों मर रहा हूं लेकिन मेरे देश का सम्मान दुनिया में बहुत बढ गया है। सबसे पहले देश की रक्षा। उसे खुशी है कि सरकार ने ’उन’ लोगों को राइट कर दिया है।

अब देश में होने वाली संगोष्ठी, लोकापर्ण, पुस्तक विमोचन, शपथ ग्रहण आदि को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे कोई धार्मिक आयोजन हो। विश्वविद्यालयों में संगोष्ठी शुरू होती है तो कलश यात्रा निकाली जाती है। मंच पर तरह तरह के संत, धर्माचार्य जटाधारी विशेष आसनों पर विराजमान होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। अब वो समय नहीं रहा जब विश्वविद्यालय अपने विद्वान प्रोफेसर्स और उनके ज्ञान से दीप्त होते थे। अब अतिथि विद्वानों की चर्चा से दीप्त होते हैं। पहले डोरीलाल को लगता था कि बाहर से अतिथि के रूप में विद्वान बुलाए जाते होंगे पर भुक्तभोगी छात्रों ने बताया कि जो 100-50 रूपये की रोजनदारी में पढ़ाने को तैयार हो जाता है उसे अतिथि विद्वान कहते हैं। वो लाखों रूपये की तनखाह पाने वाले प्रोफेसरों की जगह पढाता है। इसीलिए भारत विश्वगुरू हो गया है। खुशी की बात ये है कि ये परंपरा विश्वविद्यालयों से लेकर प्रायमरी स्कूल तक चल रही है।

नवरात्रि चालू है। सभी श्रद्धालु सात्विक हो गए हैं। नौ दिनों तक मांस मदिरा का सेवन नहीं किया जा जाएगा। ये बुरा काम होता है। इसलिए ये बुरा काम इन नौ दिनों में नहीं किया जाता। बाकी दिनों में किया जाता है। क्योकि नवरात्रि नहीं होती। इन दिनों नंगे पांव चला जाता है उसी सड़क पर जहां बाकी दिनों में चमड़े के जूते चप्पल पहनकर चला जाता है। इन दिनों दाढ़ी नहीं बनाई जाती। शायद दाड़ी बनाना बुरा काम होगा। वो इन दिनों नहीं किया जाता। बाकी दिन खूब दाड़ी बनाई जाती है। कई लोग उपवास रखते हैं। कोई एक दिन का तो कोई नौ दिन का। इससे मन और शरीर दोनों शुद्ध होता है। फिर अगली नवरात्रि तक मन और शरीर को अपवित्र किया जा सकता है। नवरात्रि के बहाने बहुत से दुष्ट नौ दिनों तक धर्मात्मा होने का भ्रम पैदा करते रहते हैं। ये लोग क्या सोचते होंगे कि भगवान को 9 दिनों में भ्रमित कर लेंगे ? भगवान को क्या सचाई नहीं मालूम ?

डोरीलाल उपवासप्रेमी

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