डोरीलाल की चिन्ता : समझ झरोखे बैठ के जग का मुजरा लेय

कबीरदास जी के जमाने में भी समझ और समझदारों की बड़ी कमी थी। इसीलिए उन्होंने कहा कि अरे मूर्खों थोड़ा तो अकल से काम लो। दिमाग की खिड़की खोलो और जग को समझो। कबीर दास केवल कवि नहीं थे। जुलाहा थे। कपड़ा बनाते थे और फिर उसे बाजार बेचने जाते थे। लोगों से मिलते जुलते थे। उनके दोस्त रैदास और पीपा जैसे लोग थे। वो भी मेहनत से कमाते खाते थे। ये लोग दुनिया को समझते थे। इसीलिए लोगों को समझाते थे कि पाखंड ढोंग और धर्म के जंजाल में मत फंसो। जाति धरम के झगड़े मत करो।

प्रजा का काम था मेहनत करना, राजा के लिए युद्ध लडना और भूखों मरना। राजा को अपनी राजगद्दी बचाने के लिए और दूसरे की छीनने के लिए युद्ध करना पडता था। बचे हुए समय में वो राजदरबार में लगाता था। राजा सभी विषयों का जानकार और विद्वान होता था। क्योंकि वो राजा होता था। राजा बने रहना कोई हंसी खेल नहीं था। राजा तब तक राजा बना रह सकता था जब तक उसका पड़ोसी राजा उसे हरा न दे या उसकी हत्या न हो जाए। अपनी गद्दी और जान बचाने के बाद जो समय बचता था उसमें वो मयनोशी करता था, नाच गाना देखता था और शादियां करता था।
राजा हमेशा डरा हुआ रहता था। राजा के पास एक बिल्ली होती थी जो उसका खाना चखती थी और म्यांउ म्यांउ करती थी। कुछ कुत्ते पूरे समय उसे घेरे रहते थे और भोंकते रहते थे। रात को वो उसके सोने के पलंग के आस पास घूमते रहते थे। राजा के सोते समय उसके बाजू में एक दो रानियां और एक दो तलवारें होती थीं। यदि सोते समय कोई उसे मारने आए तो वो भौंकने लगते थे। राजा जाग जाता था तलवारें चलाने लगता था। राजा पूरे दिन आठों पहर शत्रु भय से आक्रांत रहता था। रानियों का जीवन असुरक्षित था। वो शत्रु विजय के समय शत्रु की रानी बन जाती थीं या किसी कुएं में ढकेल दी जाती थीं। राजा के जेवरात और महल वगैरह भी शत्रु को मिल जाते थे। मरने से बचे लोग नए राजा की प्रजा कहलाते थे और उसके राज में मेहनत करते थे और भूखे मरते थे। यही लोग खेतों से पकड़कर सैनिक बना दिए जाते थे और अनजाने शत्रु के खिलाफ लड़कर मर जाते थे। जीवित रहने पर उन्हें लूट का माल मिलता था। यही उनका मेहनताना होता था। राजा इन्हें अपना परिवार कहता था।
राजा के राज में बहुत सारे सेठ होते थे। वो राजा के दरबारी होते थे। वो व्यापार करते थे। दूसरे राज्यों से सामानों की खरीद बिक्री होती थी। वहां से सोना चांदी और हीरे जवाहरात की शक्ल में धन आता था। इस धन संपत्ति की रक्षा राजा और राजा की सेना करती थी। इस राजा और राजा की सेना को पालने का खर्च प्रजा और व्यापारियों से मिलता था। व्यापारी कमाता था और राजा उसकी कमाई की रक्षा करता था। जो राजा जितना शक्तिशाली होता था जितनी बड़ी सेना रखता था उसके राज्य में व्यापार और सेठ उतने ही फलते फूलते थे। कोई कोई शौकीन राजा अपने दरबार में कवि और भाट रखता था। वो कविगण राजा के गुणगान करते थे। कुछ कवि कहते थे कि हमें राजा से क्या मतलब, हम राजा के दरबार में अपनी चप्पलें क्यों घिसें। इन कवियों को राजा बुरा कवि मानता था और सजा देता था।
राजा का कहना था कि वो उसे ईश्वर या ईश्वर का दूत समझा जाए। वो बड़े बड़े मंदिर बनाता था और उनमें बैठे पंडे पुजारी उसके चरणों में लौटते थे। पंडे पुजारी गली गली घूमकर राजा का गुण गान करते थे और बताते थे कि राजा ईश्वर का अवतार है। नए नए भगवान और मंदिरों का निर्माण होता था। कुछ कविगण और विद्वान जंगलों में रहते और अध्ययन मनन करते थे। वो राजा कोे ईश्वर का दूत नहीं मानते थे। राजा को यह बात पसंद नहीं आती थी। वो उन्हें कारागार में डाल देता था। राजा के कारागार हमेशा भरे रहते थे।
प्रजा में राजा के प्रति भक्ति का संचार करने के लिए राजा ने प्रजा को एक सिद्ध जड़ी बूटी खिला दी थी। प्रजा के मुंह से राजा के लिए जय जय कार ही निकलती थी। जो जय जयकार नहीं करते थे राजा ने उनका मुंह सिलवा दिया था। जिनकी आंखें और कान काम करते थे उनकी आंखों को पट्टी बांध कर हमेशा के लिए बंद कर दिया गया और कानों में पिघला सीसा भर दिया। राजा उनके सामने बैठकर अपने दिल की बातें करता था।
कबीर दास आने वाले बुरे दिनों को देख रहे थे। वो गाते थे ………….
चोर आवेगा नगर में चोर आवेगा, होशियार रहना रे नगर में चोर आवेगा
तू जाग्रत रहना रे नगर में चोर आवेगा, चोर आवेगा नगर में काल आवेगा