‘ डिजिटल अरेस्ट- पुलिस वर्दी, कोर्ट रूम, वीडियो कॉल और डर की स्क्रिप्ट से लूटा जा रहा है पैसा

मध्य प्रदेश साइबर सेल की जांच में खुलासा, विदेश में बैठकर डिजिटल अरेस्ट करा रहे सायबर गैंग
-सतीश उपाध्याय-
भोपाल,यशभारत। आपके नाम पर ड्रग्स तस्करी का केस दर्ज है, अब आपको डिजिटल अरेस्ट किया जा रहा है…फोन के दूसरी ओर मौजूद व्यक्ति पुलिसिया अंदाज में बोल रहा होता है। फिर एक वीडियो कॉल आती है, जिसमें पीछे कोर्ट जैसा बैकग्राउंड और एक वर्दीधारी नकली पुलिस अधिकारी खड़ा दिखाई देता है। इसके बाद शुरू होता है ठगी का सिलसिला। विडियो कॉल के जरिए पहले से तैयार की गई डर की स्क्रिप्ट से सायबर ठगी को अंजाम दिया जाता है। प्रदेश में अब तक सायबर ठगों द्वारा डिजिटल अरेस्ट के कई मामने सामने आ चुके हैं। कुछ मामलों में मप्र पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार किया है। लेकिन विदेशों में बैठे सरगनाओं तक पुलिस नहीं पहुंच पाई है। पुलिस की जांच में यह बात सामने आई है कि डर और जागरूकता की कमी के चलते ऐसी वारदातें हो रही हैं। इनसे निपटने और वारदातों में कमी लाने के लिए मध्य प्रदेश स्टेट सायबर सेल और लोकल पुलिस समय-समय पर जागरूकता अभियान चला रही है।
भोपाल, ग्वालियर और इंदौर समेत प्रदेश के कई शहरों में डिजिटल अरेस्ट की ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं। जिनमें सायबर ठगों द्वारा डिजिटल अरेस्ट हुए व्यक्तियों से करोड़ों रूपए अपने खातों में ट्रांसफर करा लिए गए। डिजिटल अरेस्ट की वारदातों में ठगी गई रकम को अलग-अलग बैंक खातों के माध्यम से क्रिप्टोकरेंसी में बदल कर चाइना व दुबई भेजा जाता है।
क्या है ‘डिजिटल अरेस्टÓ?
डिजिटल अरेस्ट एक साइबर क्राइम है जिसमें अपराधी खुद को सरकारी अधिकारी, जैसे पुलिस, सीबीआई, एनसीबी, साइबर पुलिस या हाई कोर्ट का रजिस्ट्रार बताकर लोगों को डराते हैं। वे कहते हैं कि पीडि़त का नाम गंभीर केस (जैसे ड्रग्स तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग या सेक्स ट्रैफिकिंग) में आ गया है। उसके बाद वीडियो कॉल पर एक नकली कोर्ट, वर्दीधारी अफसर और जांच अधिकारी दिखते हैं और फिर कहा जाता है, आपको अभी डिजिटल अरेस्ट किया जा रहा है, आप इस कॉल से बाहर नहीं जा सकते। डर और घबराहट में लोग लाखों-करोड़ों रुपये (बचाव शुल्क या वेरिफिकेशन फीस) के नाम ठगों द्वारा बताए गए बैंक खातों में ट्रांसफर कर देते हैं।
पुलिस जांच क्या कहती है?
स्टेट सायबर सेल भोपाल एसपी प्रणय एस. नागवंशी ने बताया कि अब तक सामने आए डिजिटल अरेस्ट के मामलों की जांच में यह बात सामने आई है कि ज्यादातर मामलों में कॉल्स थाईलेंड, म्यंमार , लाउस समेत अन्य देशों में स्थित कॉल सेंटरों से कॉलिंग सर्विस के माध्यम से की गई हैं। इन कॉलिंग सर्विस सेंटरों से भारत के सभी राज्यों में डिजिटल अरेस्ट की वारदातों को अंजाम दिया जाता है।
कैसे काम करता है पूरा गिरोह-
पुलिस की जांच में ये अहम बातें सामने आई है कि सायबर ठगों द्वारा संचालित कॉल सेंटरों से भारत के सभी राज्यों से विदेशों में नौकरी करने के इच्छुक लोगों पर पैसों का लालच देकर अपने यहां कॉलिंग करने की नौकरी देते हैं। तब तक उक्त व्यक्ति को पता नहीं होता है कि उनसे क्या काम लिया जाना है। जब सायबर ठग डर की स्क्रिप्ट देकर कॉलिंग करने को कहते हैं, तब जाकर पता चलता है कि उनसे सायबर फ्राड कराया जा रहा है। इस दौरान कॉल सेंटर के बैकग्राउंड में नकली कोर्ट में बैठा जज, पुलिस अफसर और फाइल्स रखी जाती हैं। जिससे की उनका शिकार आसानी से झांसे में आ जाए और डर के कारण किसी भी कानूनी प्रक्रिया अथवा पुलिस से बचने के लिए उनकी शर्तें मान ले।
पूरी स्क्रिप्ट तैयार कर करते हैं डिजिटल अरेस्ट-
एसपी नागवंशी बताते हैं कि डिजिटल अरेस्ट टेक्नोलॉजी के साथ साइकोलॉजिकल प्लानिंग का मिला-जुला रूप है। जालसाज पहले अपने शिकार की पर्सनल डिटेल्स सोशल मीडिया या डेटा लीक वेबसाइट्स से इक_ा करते हैं, फिर उनके प्रोफेशन और फाइनेंशियल प्रोफाइल के हिसाब से स्क्रिप्ट लिखते हैं। कभी-कभी तकनीक से अब चेहरा, आवाज, और माहौल तैयार कर पाना बेहद आसान हो गया है। यही वजह है कि वीडियो कॉल देखकर ज्यादातर लोग उसे असली मान बैठते हैं।
निष्कर्ष-
अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त क्राइम ब्रांच शैलेन्द्र सिंह चौहान ने बताया कि डिजिटल अरेस्ट तकनीक की आड़ में एक मानसिक युद्ध है, जिसमें अपराधी हमारी अज्ञानता और डर को हथियार बनाते हैं। भोपाल सहित मप्र में इसके मामले वर्ष 2024 में तेजी घटित हुए थे। जिसके बाद प्रदेश स्तर पर पुलिस द्वारा चलाए गए जागरूकता अभियान के बाद कमी आई है, लोग जागरूक हो रहे है। हाल फिलहाल सामने आ रहे केसों में पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई तो चल रही है, लेकिन असली लड़ाई जागरूकता की है। जब तक हम खुद सतर्क नहीं होंगे, तब तक जालसाज नए तरीके खोजते रहेंगे। चौहान ने बताया कि याद रखें, वर्दी वाला और कोर्ट का वीडियो नकली भी हो सकता है। पहले जांचें, फिर ही भरोसा करें।
केस-1,
ग्यालियर स्थित रामकृष्ण मिशन आश्रम के सचिव स्वामी सुप्रदिप्तानंद को 26 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट कर 2.52 करोड़ रूपए की ठगी की गई। सायबर ठगों ने उन्हें नासिक पुलिस अफसर बनकर अप्रैल 2025 में वारदात को अंजाम दिया।
केस-2,
भोपाल के रीगल पैराडाइज कॉलोनी में रहने वाले बुजुर्ग दंपति डॉक्टर रागिनी मिश्रा व उनके पति महेशचंद को सीबीआई अफसर बनाकर 48 घंटों तक डिजिटल अरेस्ट रखा गया। इस दौरान सायबर ठगों ने उनसे 10.50 लाख रूपए अपने खातों में ट्रांसफर कर लिए।
केस-3,
इंदौन की रहने वाली शेयर कारोबारी वंदना गुप्ता को डिजिटल अरेस्ट किया गया। सायबर ठगों ने उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग मामले में फसाने का डर दिखाकर 1.60 करोड़ रूपए ठग लिए। आरोपियों ने ईडी, सीबीआई अफसर बनाकर वारदात को अंजाम दिया।