झारखंड में खतरनाक ‘खेल’:
खूंटी में बिन ब्याही नाबालिग मांएं और 'गायब' बच्चे

खूंटी: झारखंड के आदिवासी बहुल खूंटी जिले में एक चौंकाने वाला और गंभीर मामला सामने आया है, जहां बड़ी संख्या में नाबालिग लड़कियां बिना शादी के मां बन रही हैं और उनके जन्मे बच्चे रहस्यमय तरीके से गायब हो रहे हैं। ईटीवी भारत की करीब छह महीने की पड़ताल में यह alarming सच्चाई उजागर हुई है।
नाबालिग माताओं और गायब बच्चों की कहानी:
खूंटी के सरकारी अस्पतालों के आंकड़ों के मुताबिक, कई नाबालिग बच्चियां मां बन चुकी हैं। इनमें से अधिकांश अपने मायके में रह रही हैं, जबकि कुछ ही अपने नाबालिग पति के साथ हैं। चिंताजनक बात यह है कि इनमें से कई जोड़ों के पास उनके बच्चे नहीं हैं, और उन्हें नहीं पता कि जन्म के बाद उनके बच्चे कहां गए। समाजसेवी लक्ष्मी बाखला, रुकमणी देवी और पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष जोनिका गुड़िया ने इस मामले में ईटीवी भारत की टीम की सहायता की और जो तथ्य सामने आए हैं, वे विचलित करने वाले हैं।
नशे की लत और जानकारी का अभाव:
जिले में अवैध अफीम का बढ़ता चलन और नशे की लत नाबालिगों को गलत रास्ते पर धकेल रही है। नशे के कारण कम उम्र में ही ये बच्चे माता-पिता बन रहे हैं, लेकिन जन्मे बच्चों का कोई रिकॉर्ड न तो स्वास्थ्य विभाग के पास है और न ही जिला प्रशासन के पास। कई नाबालिग लड़कियों ने बताया कि जानकारी के अभाव और नशे की हालत में बने संबंधों के कारण वे गर्भवती हो गईं।
पारिवारिक माहौल और ढुकु प्रथा:
पीड़ित लड़कियों ने बताया कि नशे में रहने वाले लड़कों और यहां तक कि परिजनों की शराब की लत के कारण घर का माहौल ठीक नहीं रहता। परिजनों की बच्चों पर कोई रोक-टोक नहीं है, जिससे वे गलत संगत में पड़ जाते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में प्रचलित ‘ढुकु प्रथा’ भी एक कारण मानी जा रही है, जहां बिना औपचारिक विवाह के लड़के-लड़की साथ रहते हैं, और कई बार इसी दौरान नाबालिग लड़कियां गर्भवती हो जाती हैं। परिजनों द्वारा भी कम उम्र की बच्चियों को ‘ढुकु’ में भेज दिया जाता है।
अस्पताल के आंकड़े और बच्चों की गुमशुदगी का शक:
सदर अस्पताल के आंकड़ों के अनुसार, 25 से 30 ऐसी नाबालिग मांएं हैं जिनके बच्चे गायब हैं। कुछ को बताया गया कि बच्चा मर गया या गर्भपात हो गया, जबकि डॉक्टरों के अनुसार सभी बच्चों का जन्म स्वस्थ हुआ था। समाजसेवियों को आशंका है कि इन बच्चों को बेच दिया गया होगा, क्योंकि नाबालिग मांएं अक्सर बच्चे का पालन-पोषण करने में सक्षम नहीं होती हैं।
समाजसेवियों और अधिकारियों की राय:
समाजसेवी लक्ष्मी बाखला के अनुसार, कई बार नाबालिग खेल-खेल में संबंध बना लेते हैं और उन्हें इसका अंजाम नहीं पता होता। रुकमिला देवी ने गलत संगत और परिजनों की लापरवाही को इसका मुख्य कारण बताया। पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष जोनिका गुड़िया ने इसे पूरे जिले की समस्या बताते हुए नशे और जागरूकता की कमी पर चिंता जताई और इस कुप्रथा पर रोक लगाने तथा नाबालिग लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कही।
सीडब्ल्यूसी और स्वास्थ्य विभाग का रुख:
सीडब्ल्यूसी अध्यक्ष तनुश्री सरकार ने इसे गंभीर और पॉक्सो एक्ट के तहत आने वाला मामला बताया है और ईटीवी भारत की रिपोर्ट के आधार पर जांच कराने और कानूनी कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है। सदर अस्पताल के डीएस आनंद उरांव ने जमीनी स्तर पर काउंसलिंग और सामाजिक जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता पर जोर दिया। सिविल सर्जन नागेश्वर मांझी ने अफीम की खेती और नशे को इस समस्या की जड़ बताते हुए शिक्षा और नशाबंदी से इसमें कमी आने की बात कही। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि जन्मे बच्चों को ट्रेस करने में दिक्कत आती है और इस मामले में मानवाधिकार संस्थाओं सहित सभी संबंधित पक्षों को ध्यान देना चाहिए।