जबलपुर सहित प्रदेश के 7 आयुष महाविद्यालय में छात्रों ने की हड़ताल
जबलपुर, यशभारत। आयुष छात्रों ने एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर हड़ताल शुरू कर दी है। जबलपुर सहित प्रदेश के 7 आयुष महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने 4 सूत्रीय मांगों को लेकर हड़ताल शुरू कर दी है।
छात्रों की हड़ताल को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद समर्थन करते हुए कहा कि ं मध्यप्रदेश के आयुर्वेद पद्धति के प्रशिक्षुए गृहचिकित्सक एवं स्नातकोतर चिकित्सक को विगत वर्षों से शासन के समक्ष लंबित विषयों हेतु निम्न माँगे करती है। मध्यप्रदेश के आयुर्वेद के प्रशिक्षुओं इंर्टन गृह चिकित्सकों तथा स्नातकोत्तर अध्येताओं को दी जाने वाली शिष्यवृति स्टायपेंड को समयानुसार संशोधित न किये जाने के कारण विसंगति उत्पन्न हो रही है। अत: भारतीय केन्द्रिय चिकित्सा परिषद के नियमानुसार आयुर्वेद अध्येताओं की शिष्यवृत्ति ् मानदेय राज्य के अन्य विभागों की तरह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ें तथा शिष्यावृत्ति में प्रतिवर्ष वृद्धी वर्ष के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर की जाए।
इन मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन
प्रथम मांग के परिपेक्ष्य में महोदय विदित हो कि आयुष स्नातकोत्तर अध्येताओं गृहचिकित्सकों एवं इन्टर्न द्वारा समयानुसार चिकित्सा शिक्षा ध् दन्त चिकित्सा के समान शिष्यवृत्ति के लिए निरंतर प्रयासरत रहने के उपरांत भी विसंगति बनी हुई है। वहीं मध्यप्रदेश में आधुनिक चिकित्सा पद्धति के जूनियर डॉक्टर्स की श्2013 से वर्तमान समय तक शिष्यवृति में वृद्धि हो चुकी है जिससे सम्बंधित पत्र संलग्न है2006 के आदेशानुसार समान परन्तु 2008 के आदेशानुसार क्रमबद्ध तरीके से विसंगतियां बढ़ती चली गई तब से आज दिनांक तक भी बनी हुई है। यह पूर्णत: स्पष्ट होता है की विश्वविद्यालय आयुष पाठ्यक्रम के साथ उदासीनता का व्यवहार करता है एवं भेदभाव करता हैए महोदय ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय की अनियमितता एवं कोरोना महामारी के कारण सत्र 2018 . 19 एवं 2019.20 के शैक्षणिक सत्र 2ण्5 साल एवं 2 साल के अतिविलंब से चल रहे है।इसी वर्ष में भर्ती हुए एमबीबीएस के छात्रों की जल्द परीक्षा करवा दी गईए जिससे की उनका अध्ययन 4ण्5 साल श्समाप्त हो गया एवं इंटनरशिप प्रारंभ कर दी गई । यहाँ तक की पूर्व में कई बार आग्रह करने पर भी विश्वविद्यालय द्वारा किसी भी सत्र काए पूर्व में शैक्षणिक दैनन्दिनी ;अकादमिक कैलेंडर द्ध जारी नहीं किया गया है जबकि देश के अन्य विश्वविद्यालयों द्वारा हर कोर्स के लिए सत्र प्रारम्भ में ही शैक्षणिक दैनन्दिनी जारी किया जाता है किन्तु विश्वविद्यालय की उक्त विषय में निष्क्रियता फलस्वरूप सत्र में विलंब होता हैए एवं छात्र भी अनिश्चिता एवं अवसाद के शिकार हो जाते हैं। जिस कारण से केवल छात्रों की ही नहीं अपितु उनके अभिवावकों जो कि विभिन्न प्रकार से कठिन परिश्रम से धन अर्जित कर अपने बच्चे को पढऩे के लिए भेजते है उनकी भी मानसिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है एवं वह कई बार विश्वविद्यालय के इस उदासीन कार्यशैली के कारण दीर्घकालीन कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं।