रहना संसार में लेकिन मन संसार में खपाने ,लगाने योग्य नहीं : प्रेमभूषण जी महाराज
भगवान श्रीराम राज्याभिषेक महोत्सव में जमकर झूमे लोग
अनूपपुर / ईश्वर की भक्ति का आनंद जीवन को सफल और धन्य बनाता है। भक्ति आनंद रस है, इससे जीवन धन्य होता है।
भगवान कहते हैं कि तुम मेरे सहारे रहो। कर्म करते रहो और जगदीश के प्रति शरणागति बनाए रखो। श्री राम सेवा समिति अनूपपुर द्वारा जिला मुख्यालय में आयोजित श्रीराम कथा के नवम दिवस भगवान श्रीराम राज्याभिषेक महोत्सव अवसर पर परमपूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से हजारों श्रद्धालुओं को पूर्णाहुति सत्र मे ज्ञान, भक्ति, शरणागति , कर्मकांड घाट की चर्चा करते हुए उपरोक्त कथा कहते हुए कहा कि कर्मकांड कभी विश्राम नहीं लेता।
ज्ञान होने पर मोक्ष और भक्ति होने पर रस मिलता है लेकिन कर्मकांड कभी पूर्ण नहीं होता। ऋषि मुनियों संतों ने कर्म का लोप नहीं होने दिया।चातुर्मास्य में भी विश्राम नहीं करते। सतसंग होता रहता है। गृहस्थ आश्रम में कभी विश्राम नहीं लेता। सदा कार्य करता रहता है। एक सद् ग्रहस्थ इसी शरीर और इसी जीवन के लाभ के लिये कार्य में जुटा रहता है। परलोक की वह कोई चिंता, कोई कर्म नहीं करता।
परलोक और इहलोक मे सुख चाहिए तो उत्तराकाण्ड में भगवान कहते हैं कि हमारी वाणी सुनो, पकडो और करो अर्थात मेरी भक्ति करो। जिसे प्राप्त करने की क्षमता ना हो तो उसे प्राप्त करने की चेष्टा नहीं करना चाहिए।
भगवान के गुणो श्रवण, विष्णु कीर्तन, ध्यान , अर्चना, सेवा , नाना विधि चौपाई, छंद, भजन, कीर्तन ,जप करना। हम केवल भगवान के दास हैं ,शरणागति बनाए रखें। जो एक कोई भक्ति करता है, उसका कल्याण होता है। एक भक्ति करना चाहिए । दस जगह और दस तरह की पद्धति अपनाने की जरुरत नहीं है। दो तरह के व्यक्तियों को सावधान रहना चाहिए। एक जो बहुत सुन्दर है और दूसरा जिसे सब कुछ जिसे प्राप्त है। दोनो को भगवत अर्पित करके चलना चाहिए । तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा का भाव बनाए रखें। रहना संसार में लेकिन मन संसार में खपाने ,लगाने योग्य नहीं है। मन को भगवान, भगवत् कृपा, तीर्थ , भजन वंदन में लगाया जाना चाहिए।
परमपूज्य जी ने चेताया कि आपकी अपनी मेहनत का परिणाम अहंकार पैदा करता है। मैने यह कर दिया। प्रभू के प्रति यह शरणागति होनी चाहिए कि मेरा सब कार्य आपकी कृपा से हो रहा है, मेरे जीवन में सब आप ही कर रहे हैं प्रभू । भव रोग की दवा हैं राम । गुरुजी ने कहा कि युवा पीढ़ी अनुशासन में रहे।सुरसा का अर्थ इच्छा है।
इच्छाओं को पूरा करते करते जीवन पूरा हो जाता है। इच्छाओं को प्रणाम करें और आगे बढ जाएं ।जीव के कर्म उसे भगवान में अर्पित नहीं होने देते। जीव की अपनी कर्मगति है, जो उसे भटकाती रहती है। माता ,पिता ,सद्गुरु, संत, वैद्य के ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते। भगवान कहते हैं कि तुम मेरे सहारे रहो। कर्म करते रहो और जगदीश के प्रति शरणागति बनाए रखो। परमपूज्य जी कहते है कि जीवन में साधुता, संस्कार, सरलता ,सदाचार होना चाहिए । पूंछ का अर्थ प्रतिष्ठा है। किसी की पूंछ आप जला नहीं सकते। वह और तेजी से बढेगी। त्रेता का श्री राम चरित्र कलिकाल में भी गाया, ध्यान किया, पूजा जाता है। सत्य चरित्र आज भी उपस्थित रहता है। जीवन जीने के लिये है,प्रवचन करने के लिये नहीं हैं। सिद्धांत युक्त सरल जीवन होना चाहिए । उत्पात युक्त जीवन कभी सफल और स्वीकार्य नहीं है।
श्रीराम सेवा समिति अनूपपुर द्वारा 9 दिवसीय श्री राम कथा की पूर्णता भगवान श्री राम राज्याभिषेक महोत्सव और महा आरती के साथ संपन्न हुआ। इसी दिन प्रात: हवन और देर शायं भण्डारा का आयोजन किया गया।