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हाई कोर्ट ने कोचिंग में पढ़ने वाले छात्रों की सुरक्षा पर की सुनवाई, अदालत में दी गई ये दलीलें

उच्चतम न्यायालय ने कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों की सुरक्षा के लिए यथासंभव ‘समान मानक’ अपनाने पर जोर दिया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ जुलाई में राष्ट्रीय राजधानी के एक कोचिंग सेंटर में इमारत के बेसमेंट में पानी भर जाने के कारण सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे तीन विद्यार्थियों की मौत से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी। गत 27 जुलाई को, दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर इलाके में राउज आईएएस स्टडी सर्किल के बेसमेंट में स्थित पुस्तकालय में भारी बारिश के कारण पानी भर जाने से तीन छात्र डूब गए थे।

कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वालों के लिए परामर्श

शीर्ष अदालत में न्यायमित्र के रूप में सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने शीर्ष अदालत को उन व्यापक क्षेत्रों के बारे में बताया, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। दवे ने अग्नि सुरक्षा, शुल्क विनियमन, छात्र-कक्षा आकार अनुपात, छात्र-शिक्षक अनुपात, सीसीटीवी लगाने, चिकित्सा सुविधाएं, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वालों के लिए परामर्श के पहलुओं का उल्लेख किया। उन्होंने सुझाव दिया कि सभी राज्यों को मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए।

 

कोचिंग संस्थानों के लिये व्यापक नीति

न्यायमित्र ने सात राज्यों में कोचिंग संस्थानों के नियमन संबंधी कानून का भी उल्लेख किया। शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर एक समान मानक रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। न्यायालय ने प्रतिवादी प्राधिकारियों से कोचिंग संस्थानों के लिये व्यापक नीति की जरूरत पर न्याय मित्र को सुझाव देने को कहा। यह सुझाव शुरुआत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के लिये देने को कहा गया है।

मामले की सुनवाई अब दो सप्ताह बाद होगी। बीस सितंबर को मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने तीन छात्रों की मौत की जांच कर रही केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त समिति को ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए उठाए जाने वाले उपायों के बारे में एक अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकारों से भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए नीति और विधायी तथा प्रशासनिक परिवर्तनों से अवगत कराने को भी कहा था।

उसने कहा था कि ओल्ड राजेंद्र नगर जैसी घटना को रोकने के लिए पूरे एनसीआर में एक समान पहल की जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा था कि समिति अपनी सिफारिशें देने से पहले सभी हितधारकों के विचार जानने के अलावा विधायी, नीतिगत और प्रशासनिक स्तरों पर हस्तक्षेप पर विचार कर सकती है।

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