3 पुलिसकर्मियों को जेल:NRI महिला डॉक्टर और उनकी मां को झूठे केस में किया था गिरफ्तार
पद का दुरुपयोग कर अमेरिका में रहने वाली एनआईआर महिला डॉक्टर और उसकी मां को 2012 में गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार करने के मामले में तीन पुलिसकर्मियों को मंगलवार को कोर्ट ने जेल भेज दिया। मामले में चौथे आरोपी तत्कालीन साइबर सेल डीएसपी दीपक ठाकुर (वर्तमान में एएसपी) कोर्ट में पेश नहीं हो सके। ठाकुर को लेकर बुधवार को फैसला होगा। एसपी लोकायुक्त मनु व्यास ने बताया कि महिला आरक्षक इरशाद परवीन, आरक्षक सौरव भट्ट और आरक्षक इंद्रपाल को जेल भेजा गया है। जबकि दीपक ठाकुर मेडिकल फिटनेस की वजह से कोर्ट के समक्ष नहीं पेश हुए। कोर्ट ने उन्हें बुधवार को पेश होने के आदेश दिए हैं। एसपी ने बताया कि मामले में वर्ष 2015 में लोकायुक्त पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू की थी। मंगलवार को चालान पेश किया।
2012 में मां-बेटी को किया था गिरफ्तार
मामले के मुताबिक, रिनी जौहर और उनकी मां गुलशन जौहर मूलत: पूणे की रहने वाली हैं। 27 नवंबर, 2012 को पुणे स्थित उनके घर से मध्यप्रदेश सायबल पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था। इन दोनों पर आरोप लगाया गया था कि कैमरों और लैपटॉप की खरीदारी में हुए 10,500 अमेरिकी डॉलर के लेन-देन में उन्होंने घोखाधड़ी की है। इन दोनों को आईपीसी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपी बनाकर गिरफ्तारी की गई थी। एफआईआर विक्रम राजपूत नामक व्यक्ति ने कराई थी।
बिना मजिस्ट्रेट के सामने पेश पूणे से भोपाल लाए
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में दोनों महिलाओं का कहना था कि गिरफ्तारी के बाद उन्हें ट्रेन के अनारक्षित डिब्बे में लाया गया था। गुलशन जौहर को ट्रेन के फर्श पर सोने पर मजबूर होना पड़ा। वह भी बिना पानी और खाने के रहने पड़ा। पुलिसकर्मियों ने पुणे में बिना मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए भोपाल लाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी लडाई, तब मुकदमा हुआ निरस्त
खुद के साथ हुए जुल्म के खिलाफ मां-बेटी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। जून 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को जमकर लताड़ लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे को निरस्त कर दिया था, बल्कि राज्य सरकार को उन दोनों को 10 लाख रुपए मुआवजा देने का भी निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि स्वतंत्रता की अपनी पवित्रता होती है। कोर्ट ने कहा था कि इन दोनों के खिलाफ मजिस्ट्रेट की अदालत में चल रहे मुकदमे में भारतीय दंड संहिता की धारा-420 (धोखाधड़ी) के अवयव का अभाव है, लिहाजा मुकदमे को निरस्त किया जाता है।
कोर्ट ने कहा था कि रिपोर्ट से यह साफ है कि याचिकाकर्ता दोनों महिलाओं को गिरफ्तार करने में सीआरपीसी के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया। पीठ ने कहा था कि दोनों की गैरकानूनी तरीके से हुई गिरफ्तारी से याचिकाकर्ताओं के प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।