25 अक्टूबर को साल का आखिरी सूर्यग्रहण : राहु और शनि की चार स्वराशि ग्रहों पर द्रष्टि

जबलपुर,यशभारत। सत्य सनातन और हिन्दुओं का सबसे बड़ा पर्व दीपावली आज 24 अक्टूबर को है और इसके अगले दिन यानि 25 अक्टूबर को साल का आखिरी सूर्यग्रहण है। दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती है लेकिन इस वर्ष दीपावली के तुरंत बाद आंशिक सूर्यग्रहण लगेगा कई वर्षा के बाद दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा न होकर एक दिन का अंतर है क्योंकि ग्रहण मे कोई पर्व नहीं मनाया जाता है अरुणोदय पंचांग के रचयिता और प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पं. लोकेश व्यास ने बताया कि दीपावली और गोवर्धन पूजा के बीच सूर्य ग्रहण का ऐसा संयोग कई वर्षों बाद बन रहा है। साल का यह आंशिक सूर्य ग्रहण भारत के कई हिस्सों में दिखाई देगा। कई सालों के बाद दीपावली के अगले दिन 25 अक्टूबर मंगलवार को सूर्यग्रहण और ग्रहों का दुर्लभ योग बन रहा है। ग्रहण के समय चार ग्रह स्वराशि यानि खुद की राशि में मौजूद रहेंगे। ग्रहण के फलस्वरूप थकान और सुस्ती आंखों में दुष्प्रभाव, पाचन पर बुरा प्रभाव और मन में बैचेनी उलझन का सामना कुछ राशि जातकों को करना पड़ सकता है। सूर्यग्रहण के दौरान अच्छी सेहत दोष से मुक्ति के लिए भगवान शिव को समर्पित महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए।
पं. लोकेश व्यास के अनुसार सूर्य ग्रहण 25 अक्टूबर 2022 की तुला राशि में लगने जा रहा है। सूर्य ग्रहण के समय सूर्य के साथ चन्द्रमा, शुक्र, केतु रहेंगे जबकि इन ग्रहों पर राहु की पूर्ण दृष्टि रहेगी और शनि भी इनको देखेंगे। मिथुन, कन्या, मकर, कुंंभ शुभ वृषभ, सिंह, तुला, धनु, मिश्रित मेष कर्क वृश्चिक मीन के लिए सतर्कता व धैर्य की जरुरत है। प्रख्यात भविष्यवक्ता और अरुणोदय पंचाग के रचियता पंडित लोकेश व्यास जी ने बताया कि मंगलवार 25 अक्टूबर 2022 को स्वाति नक्षत्र तुला राशि में ग्रस्तास्त खण्डग्रास सूर्यग्रहण होगा, यह ग्रहण भारत में सूर्यास्त के पूर्व ही प्रारंभ हो जाएगा। भारत में ग्रहण का स्पर्श 4 बजकर 23 मिनिट पर और ग्रहण का मोक्ष 6 बजकर 32 मिनिट पर होगा। सूर्यास्त होने के कारण ग्रहण का मोक्ष भारत में दिखायी नहीं देगा। ग्रहण का सूतक 12 घंटे पूर्व रात्रि अंत भोर 4 बजकर 23 मिनिट पर लगेगा। परंतु बाल, वृद्ध और रोगियों को एक प्रहर पूर्व दिन 1 बजकर 23 मिनिट से मानना चाहिए। ग्रहण काल में तंत्र मंत्र का पुर्नश्चरण नये मंत्र की सिद्धि, जप तर्पण इत्यादि किया जाता है, ग्रहण काल में पहले स्नान करें, ग्रहण के मध्य मानसिक देव पूजन, जप हवन, श्राद्ध तर्पण और ग्रहण की समाप्ति पर स्नान दान, तीर्थ स्नान, नदी, तालाब, सरोवर, आदि पर स्नान करना चाहिए। ग्रहण काल में मूर्ति स्पर्श, भोजन, शयन आदि का निषेध है जिन राशि वालों को ग्रहण अशुभ फलदायी है उन्हें ग्रहण नहीं देखना चाहिए गर्भवती महिलाओं को ग्रहण की छाया से बचना चाहिए।अनिष्ट, शांति के लिए जप हवन गौ दान वस्त्र दान, भूमि दान करना चाहिए। यह सूर्य ग्रहण देश के उत्तरी और पश्चिमी भागों में आसानी से देखा जा सकेगा। दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू, श्रीनगर, लेह और लद्दाख में दक्षिण भारत के हिस्से जैसे तमिलनाडू, कर्नाटक, मुंबई, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, उड़ीसा, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, और बंगाल में कुछ समय के लिए ग्रहण दिखाई देगा, जबकि देश के पूर्वी भागों में असम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड में ग्रहण नहीं दिखाई देगा।
ये खुशियों वाली दिवाली=विधि-विधान से किया पूजन समृद्धि दायक
जबलपुर, यशभारत। दीपावली सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, वैभव एवं लक्ष्मी आगमन का पर्व है। दीपावली के दिन महालक्ष्मी पूजन शुभ मुहूर्त पर विधि-विधान सहित किया जाए तो वह वर्ष सभी प्रकार से उन्नतिदायक होता है। दीपावली के मौके पर महालक्ष्मी ही अकेले साधक के मनोरथ पूर्ण नहीं करती अपितु इस दिन धनपति कुबेर, गणेश, विष्णु भगवान आदि की आराधना भी प्रमुखता से करनी चाहिए। गणेश पूजन में यदि गणपति की मूर्ति दक्षिण सूंड वाली हो तो वह अधिक शुभ मानी गई है। कुबेर पूजन के लिए कुबेर यंत्र व श्रीयंत्र की स्थापना का भी विधान है।
लक्ष्मी पूजन ‘स्थिर लग्न में ही किया जाना शुभप्रद होता है। सायंकाल वृषभ लग्न तथा रात्रि में सिंह लग्न लक्ष्मी पूजन हेतु शुभ होता है। इस दिन व्यापारी वर्ग बही, रोकड़, दवात आदि की पूजा करते हैं। लक्ष्मी पूजन में बीसा यंत्र, कनकधारा यंत्र, दक्षिणावर्त्त शंख, कमल पुष्प व कमलगट्टे की माला भी प्रमुख होती है। लक्ष्मी पूजन में कभी भी हाथ न जोड़ें, हाथ जोडऩा किसी को विदा करने की मुद्रा है। अत: दोनों हाथों को मिला अंजलि बना नतमस्तक होकर नमन करें तथा ऋद्धि-सिद्धि दायक गणेश जी को भी अंजलि सहित नमन करें। व्यवसायी व घर से अन्यत्र जगह पर दीपावली पर्व मनाने वाले वृश्चिक एवं कुंभ लग्न में भी अपने घर पर लक्ष्मी पूजा कर सकते हैं, यह स्थिर लग्न सुबह एवं दोपहर में आते हैं।
श्रीमहालक्ष्मी पूजन का महापर्व कार्तिक अमावस प्रदोषकाल एवं अर्द्धरात्रि व्यापिनी हो तो विशेष रूप से शुभ होती है- भविष्य पुराणानुसार दीपदानादि हेतु प्रदोषकाल प्रशस्त माना गया है :-कार्तिके प्रदोषे तु विशेषेण अमावस्या निशावर्धके। तस्यां सम्पूज्येत् देवीं भोगमोक्ष प्रदायिनीम़्।
लक्ष्मी पूजा का यह है विशेष शुभ मुहूर्त
अरुणोदय पंचांग के रचयिता और प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पं. लोकेश व्यास ने बताया कि प्रदोष व्यापिनी अमावस्या में महालक्ष्मी पूजन शास्त्र सम्मत है। यह मुहूर्त सोमवार 24 अक्टूबर को शाम 4 बजकर 46 मिनिट के बाद रात्रि अंत तक लक्ष्मी कुबेर पूजन के लिए शुभ मुहूर्त है। विशेष शुभ मुहूर्त शाम 4 बजकर 46 मिनिट से रात्रि 8 बजकर 55 मिनिट तक गोधूली प्रदोषकाल और स्थिर लग्र का शुभ मुहूर्त रहेगा। वहीं, सामान्य शुभ मुहूर्त रात्रि 8 बजकर 55 मिनिट से रात्रि 1 बजकर 24 मिनिट तक रहेगा। 1 बजकर 24 मिनिट से रात्रि 3 बजकर 36 मिनिट तक स्थिर लग्र का विशेष शुभ मुहूर्त है।