जबलपुरमध्य प्रदेश

सागर में रानगिर धाम 3 रूपों में दर्शन देती हैं हरसिद्धि:मान्यता- माता सती की रान गिरी थी, इसलिए इस क्षेत्र का नाम रानगिर धाम पड़ा

सागर से 46 किलोमीटर दूर स्थित प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र रानगिर धाम अपने आप में विशिष्ट है। देहार नदी के किनारे वर्षों पुराने इस प्राचीन मंदिर में विराजी मां हरसिद्धि की मूर्ति दिन में 3 रूप में भक्तों को दर्शन देती हैं। सुबह के समय कन्या रूप, दोपहर में युवा और शाम के समय वृद्धावस्था रूप में देवी मां दर्शन देती हैं। ये रूप सूर्य, चंद्र, अग्नि शक्ति के प्रकाशमय, तेजोमय व अमृतमय करने का संकेत हैं। शारदीय व चैत्र नवरात्र में सिद्धपीठों में श्रद्धालुओं की भीड़ नौ दिनों तक लगातार बनी रहती है। रानगिर धाम में नवरात्र के नौ दिनों तक पूरे बुंदेलखंड से भक्त माता के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं।

रानगिर में गिरी थी माता सती की रान
पंडित कृष्णकुमार दुबे ने बताया कि देवी भगवती के 51 शक्ति पीठों में से एक रानगिर भी है। मान्यता है कि यहां माता सती की रान (जांघ) गिरी थी, इसलिए इस क्षेत्र का नाम रानगिर पड़ा। माता के दर्शन करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है।

कन्या के रूप में खेलने आती थी मां दुर्गा
मंदिर के पुजारी पं. अनिल कुमार दुबे शास्त्री के अनुसार किवदंती है कि मंदिर पहले रानगिर में नहीं था। देहार नदी के उस पार देवी मां रहती थीं। माता, कन्याओं के साथ खेलने के लिए आया करती थीं। शाम को उन्हें एक-एक चांदी का सिक्का देकर चली जाती थीं। एक दिन गांव के लोगों ने देखा कि यह कन्या सुबह खेलने आती है और शाम को कन्याओं को एक चांदी का सिक्का देकर बूढ़ी रानगिर को चली जाती है।

उसी दिन हरसिद्धि माता ने सपना दिया कि मैं हरसिद्धि माता हूं, बूढ़ी रानगिर में रहती हूं। यदि बूढ़ी रानगिर से रानगिर में ले जाया जाए, तो रानगिर हमारा नया स्थान होगा। रानगिर में बेल वृक्ष के नीचे हरसिद्धि मां की प्रतिमा मिली। लोग बेल की सिंहासन पर बैठाकर उन्हें शाम के समय रानगिर लाए। दूसरे दिन लोगों ने उठाने का प्रयास किया कि आगे की ओर ले जाया जाए, लेकिन देवी जी की मूर्ति को हिला नहीं सके।

स्वयंभू हैं मां हरसिद्धि की प्रतिमा
मंदिर के छोटे पुजारी पं. अनिल दुबे ने बताया कि मेरा परिवार 10 पीढ़ियों से मंदिर में माता की सेवा कर रहा है। पहले मां हरसिद्धि नदी के उस पार बूढ़ी रानगिर में थी। माता पहले कन्या के रूप में खेलने आती थी। इसके बाद मां यहीं रुक गईं। इसके बाद माता के मंदिर का भव्य निर्माण कराया गया। नदी के उस पार भी बूढ़ी रानगिर में माता का मंदिर है। कोरोना काल के चलते नवरात्र में 15 फीट दूर से भक्तों को माता के दर्शन कराए जा रहे हैं।

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