सागर में बह रही भक्तिरस की धारा: कथा व्यास पं इंद्रेश जी महाराज ने कहा-साक्षात श्रीकृष्ण ही श्रीमद भागवत हैं, जीवन यापन के लिए आप जो कर्म कर रहे हैं वही धर्म है

सागरlधर्म और परमधर्म को समझकर ही हरिपुरम को प्राप्त किया जा सकता है। पहले धर्म को समझिए। जीवन यापन के लिए इस लोक में रहने के लिए आप जो कर्म कर रहे हैं वहीं धर्म है। इसमें भोजन भी धर्म है, हम क्या खाएं कब खाएं कैसे खाएं? इसका ध्यान रखना है। भोजन मुख से लगने के बाद वापस थाली में नहीं आना चाहिए। ऐसे ही भवन भी ऐसा होना चाहिए जिसमें पक्षियों, पशुओं, संतों और भगवान का स्थान हो। भ्रमण का भी नियम है हम कहाँ जाएं? तीर्थों पर या व्यसन भोगने के स्थान पर जाएं? ऐसे ही भाषा का दुरुपयोग हो है जिससे भाषा का मजाक बन जाता है। भाषा की शुद्धता और पवित्रता रखना भी धर्म है। कुटुम्ब प्रबोधन करना धर्म है। इसके बाद पर्यावरण संरक्षण करना भी धर्म है। हम देह तो शुद्ध रखते हैं लेकिन पर्यावरण को शुद्ध नहीं रखते। सामाजिक समरसता, स्वजागरण, नागरिकता व्यवस्था के नियमों का पालन भी धर्म है। लेकिन परम धर्म है कि जो समय मिले उसमें भक्ति कर कथा सुने। ताकि भगवान के परमधाम को प्राप्त किया जा सके। यह परम धर्म है। यह बात कथा व्यास इंद्रेश जी महाराज ने बालाजी मंदिर परिसर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन शुक्रवार को कही। उन्होंने कहा कि भगवत प्राप्ति के लिए ईर्ष्या सबसे बड़ी बाधा है। कोई भी दोष हो भगवत प्राप्ति हो जाएगी लेकिन ईर्ष्या दोष है तो कभी भगवत प्राप्ति नहीं हो सकती।
कथा व्यास इंद्रेश जी ने बताया कि भगवान वह हैं जिनके छः भग हों, जिनको 6 बातें पता हैं वही भगवान हैं। उत्पत्ति, प्रलय, गति और दुर्गति (अगति) भगवान जानते हैं, विद्या और अविद्या यानी ज्ञान और अज्ञान को वह जानते हैं। उनके अतिरिक्त कोई नही जानता इसलिए उन्हें भगवान कहते हैं। पंचतत्व जिनके अधीन हैं। वेदों के अनुसार संसार मिथ्या है। यह संसार जिसकी लीला है वह परमात्मा हैं। ‘सत्यम परम धीमहि’ जो परम सत्य है मैं उसको प्रणाम करता हूँ। उन्होंने कथा का विषय अधिकारी संबंध और प्रयोजन भी बताया है। उन्होंने कथा में काशी के भागवत पाठी ब्राम्हण और काले खान की भावुक कथा भी सुनाई।
दक्षिणा में मांगा गोपिगीत का पाठ
कथा में पंडित इंद्रेश जी ने सभी भक्तों से दक्षिणा में गोपीगीत का पाठ नित्य करने को कहा। साथ ही किसी एक ग्रंथ का अध्ययन और उसे धारण करने का उपदेश दिया। उन्होंने कहा कि आपने भोग भोगकर, रोग रोगकर और योग योगकर देख लिये। अब समझिए कि भागवत का प्रारंभ जिस शब्द से होता है वह कष्ट का प्रतीक है। निश्चित ही हम पीड़ित हैं। यदि पीड़ित नहीं होते तो वैकुंठ में होते हमारा जन्म ही नहीं होता। इसलिए काम करते चलो नाम जपते चलो कहते हुए कृष्ण दास अधिकारी ने मेरे तो गिरधर ही गुणगानष् मधुर भजन का गायन किया।
वृंदावन के समान है सागर
कथा व्यास जी ने कथा स्थल को गोवर्धन पर्वत व दोनों सरोवरों को राधा और कृष्ण सरोवर की उपमा देते हुए कहा कि यदि में भाव की बात करूं तो सागर को वृंदावन साबित कर दूंगा। गिरिराज जी भक्तो की माला पहनते हैं। ऐसे ही शहर नीचे है और हम इस गिरी पर कथा कह रहे हैं। गिरिराज जी की तरह ही यहां आप सभी पुण्यात्माएं भक्त जन पहुंचे हैं। यह साधारण बात नहीं है।
उन्होंने कहा कि प्रयागराज में जो घटना हुई है वह दुखद है। हर एक व्यक्ति त्रिवेणी संगम में ही गोता लगाना चाहता है। हम घर के ठाकुर जी को उतना नहीं मानते जितना श्रीधाम वृन्दावन के ठाकुर जी को। यह हमारी मानसिकता बन गई है। यही कारण है कि हम जब तक कोई भी ग्रंथ नहीं पढेगे तब तक आप कुछ प्राप्त नहीं कर पाएगे। यदि आप मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज में पहुंचकर वहां कुछ समय रूककर भी स्नान करे तो भी उतना ही फल हमे प्राप्त होगा। ऐसे ही ठाकुर जी जो हमारे घर में है, उन्हें भी उतना ही मानिये जितना की श्री वृन्दावन धाम में ठाकुर जी विराजमान है।
कथा में उन्होंने कहा घर में आयी हुई आपत्ती के समय ग्रहणी अपना बल साध ले तो आप पर कोई भी संकट आये तो वह निकल जायेगा। श्रीम्द भागवत ही साक्षात श्रीकृष्ण है। आपको जो वृन्दावन में ठाकुर जी के दर्शन होते है। वह ही श्रीमद् भागवत कथा का एक-एक शब्द श्रीकृष्ण ही है।
श्रद्धालुओ को किया भाव विभोर
कथा व्यास परम पूज्य प. श्री इन्देष जी महाराज ने अति सुन्दर मनमोहक भजनों के माध्यम से उपस्थित श्रद्धालुओं को भाव विभोर किया एवं श्रद्धालुओ ने भी मधुर भजनों पर जमकार भक्ति प्रदर्शित की।
मीडिया प्रभारी श्रीकांत जैन ने बताया कि द्वितीय दिवस की कथा विश्राम के पूर्व मुख्य यजमान अनुश्री शैलेन्द्र कुमार जैन, सुखदेव मिश्रा, अजय दुबे, शैलेष केषरवानी, नितिन बंटी शर्मा, देवेन्द्र कटारे, राजकमल केशरवानी, लक्ष्मण सिंह, निकेष गुप्ता, विनय मिश्रा, विक्रम सोनी, सुबोध पाराशर, मनीष चौबे, रानेश ओमरे, रीतेष मिश्रा, अमित बैसाखिया, नीलम अहिरवार, नितिन सोनी ढाना, भरत नेमा, गोविन्द सिंह राजपूत दमोह, नीरज मुखारया, सविता जिनेश साहू, सोना कनई पटेल, गोलू कोरी, सरिता विशाल खटीक, धर्मेन्द्र खटीक, अनीता रामू ठेकेदार, भरत अहिरवार, याकृति जड़िया, दीपक दुबे, अनुज सिंह परिहार, अनिल दुबे, श्याम नेमा, शैलेष केषरवानी ने कथा मंच से आरती कर धर्मलाभ अर्जित किया। श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस हजारों की संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित रहे।