शुगर पेशेंट अब खा सकेंगे चावल: जेएनकेविवि ने गांव की धान को उच्च धानों से किया संकरण
बड़ी उपलब्धि, जल्द ही किसानों को वितरित होगा बीज
जबलपुर, यशभारत। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय अपना शोध कार्य में एक बड़ी उपलब्धि जोडऩे जा रहा है। जेएनकेविवि वैज्ञानिकों के कारण अब डायबिटीज मरीज चावल भी खा सकेंगे। इसके लिए जेएनकेविवि लगातार प्रयास कर रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों की धान और उच्चस्तरीय धानों का ंसंकरण किया जा रहा है। दोनों को मिलाकर एक बीज तैयार किया जाएगा जिससे जो चावल होगा वह शुगर पेशेंट आसानी से खा सकेंगे।
विश्वविद्यालय के संचालक अनुसंधान सेवाएं डॉ. जी.के. कौतू ने बताया कि आज के दौर की प्रमुख बीमारियों से बचाव हेतुु मानव शरीर को स्वस्थ रखना महत्वपूर्ण विषय है, इस दृष्टि से डायबिटीज बीमारी एवं अन्य हेतु न्यूट्रीरिच किस्मों की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है। डॉ. कौतू ने बताया कि डायबिटीज के मरीजों के लिए कम ग्लाइसेमिक सूचकांक जिसमें 56-60 के बीच जैसे-गेहूँ, चावल, कंद आदि का होता है। उच्च गलाइसेमिक सूचकांक जिसमें 70 या इससे ऊपर जी. आई. होता है वे डायबिटिक लोगों के लिए उपयोगी नहीं होते है, अत: कम जी.आई. वाले परंपरागत धान की किस्मों का चयन एवं उनके उपयोगी जीनों का अधिक उत्पादन देनेे वाली किस्मों के साथ संकरण ेके द्वारा पोषक तत्वों से भरपूर उच्च गुणवत्तायुक्त किस्मों का तैैयार करने हेतुु सतत ् कार्य जारी है। धान की पर ंपरागत गुरमटिया किस्म में जी.आई. कम होता है। इस किस्म को डायबिटिक मरीजों को ध्यान में रखकर चिन्हित किया गया है ताकि शोध के माध्यम से कम ग्लाईसेमिक सूचकांक की धान की किस्मों को तैयार किया जा सके।
कं्रातिधान का प्रजनक अनुसंधान अंतिम दौर में
संचालक अनुसंधान सेवाएं डॉ. जी.के. कौतू धान की सर्वाधिक प्रचलित किस्म क्रांति जो पोहा हेतुु जानी जाती है लेकिन इसकी प्रमुख समस्या लंबी अवधि में पककर तैयार होना है, अत: इसकी दूसरी कम अवधि में पकने वाली एवं पोहा हेतु उपयोगी एवं उच्च उत्पादन, गुणवत्ता से पूर्ण धान की क्रांति के समकक्ष किस्मों पर पौध प्रजनक वैज्ञानिकों द्वारा अनुुसंधान कार्य जारी है। कुछ पारंपरिक धान की किस्में इनकी पोषण गुणवत्ता उच्चकोटी की है जैैसे-सीकिया, दिलबक्सा, जीराशंकर, दुर्बराज, क्षत्रिय, सटिया (60 दिन में पककर त ैयार हो जाती है), छेदीकपूर, बालाघाट चिन्नौर आदि।
इनका कहना है
विवि के लिए बड़ी उपलब्धि है इसमें लगातार विवि के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। बीज तैयार होते ही किसानों को वितरित किया जाएगा। इसके बाद शुगर पेशेंट को आसानी से यह चावल मिल सकेंगे।
पीके बिसेन, कुलपति जेएनकेविवि