कटनीमध्य प्रदेश

यहां सबको चाहिए सियासत का रेड कारपेट, साल भर सजी रहीं नेतागिरी की दुकानें, शहर के हिस्से आए नारे….

कटनी, (आशीष सोनी)। अक्सर कटनी को लोग महानगरों की तुलना में छोटा शहर कहते हैं, लेकिन यहां सियासत की लकीर बहुत बड़ी है। राजनेताओं की कतार हर शहर में बहुत लंबी हो चली है, लेकिन दीगर शहरों में विकास की जब बात आती है, तो तमाम नेता अपनी दलीय आस्था और निजी मतभेदों को भुलाकर बोलते ऐसा हैं, जो दिल्ली तक सुनाई दे। कटनी इस मामले में थोड़ा जुदा है। यहां के नेताओं के राजनीतिक संस्कार ऐसे हैं, जो निजी हितों के आगे कटनी के विकास को भी दांव पर लगाने से नहीं चूकते। दरअसल सबको सियासत के चमकते रंग चाहिए। उनकी दुकानें आबाद होना चाहिए, शहर बरबाद होता है तो हो जाए। गुजरा साल 2024 इसका साक्षी बना। पूरे साल जमकर राजनीति चली। धरना, प्रदर्शन, जुलूस के साथ आरोप प्रत्यारोप के तेवर निजी तल्खी की सीमाओं को भी पार कर गए, लेकिन शहर के हिस्से हासिल आया शून्य। योजनाएं हमेशा बनती रहती हैं, पिछले सालों में कुछ योजनाओं पर अमल हुआ भी, किन्तु 2024 ऐसा साल बीता जब इसके माथे पर किसी भी योजना के पूर्ण होने का लेबल नहीं। पूरे प्रदेश में कटनी ऐसे मामलों में नाम कमा रहा है, जो किसी भी शहर की तस्वीर को धुंधला करने के लिए काफी हैं। कटनी की सियासी जमीन पर अब नई पौध तैयार हो चुकी है, जो सालों से शहर के भाग्यविधाता बने नेताओं के पदचिन्हों का अनुसरण भी उनके ही अंदाज में कर रही है। इस अंधी दौड़ के भरोसे आने वाले सालों में भी कटनी को कुछ हासिल होने वाला नहीं। शहर का कस्बाई स्वरूप बीते साल तो रत्ती भर नहीं बदल पाया।

राजनीति का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है। किसी भी शहर के विकास का पैरामीटर चैक करना हो तो वहां के नेताओं के मिजाज और उनकी सोच को परखिए। इस शहर के वाशिंदे अगर आजकल जबलपुर, रीवा, सतना, सागर, छतरपुर, दमोह समेत अन्य पड़ोसी शहरों के कायाकल्प पर मोहित हो रहे हैं, तो इसके माने ये है कि इन इलाकों की तुलना में कहीं न कहीं हम फिसड्डी रह गए। आखिर पड़ोस के इन शहरों ने चंद सालों में विकास की इतनी तीव्र रफ्तार कैसे पकड़ ली ? इनकी तुलना में अपने कटनी जिले में विकास की डालें सूखी क्यों हैं ? सवाल इसके आगे का है। योजनाओं के धरातल पर उतरने का यही तरीका रहा, तो कुछ सालों का सफर हम सदियों में पूरा कर पाएंगे। आने वाली पीढ़ी को हम कैसा कटनी देना चाहते है, शायद इस बात के चिंतन के लिए किसी के पास वक्त नहीं। कस्बाई संस्कृति से मुक्ति और महानगरों की दौड़ में शामिल होने लिए जिस इच्छाशक्ति की दरकार होती है, शायद वो हमारे नेताओं में नहीं।

अब तो ब्यूरोक्रेसी नियंत्रित करती है राजनीति को..

एक दौर था जब राजनीति अफसरशाही पर नकेल कसकर रखती थी, ताकि विधानसभाओं और सदन में पारित होने वाले जनहितैषी प्रस्तावों को जमीन पर पूरी ईमानदारी से उतारा जा सके और योजनाओं का लाभ हर पात्र व्यक्ति तक पहुंच सके, किंतु विडंबना यह है कि बदलते वक्त में ब्यूरोक्रेसी हावी है, और ब्यूरोक्रेट्स का सिंडिकेट राजनेताओं को संचालित करने लगा है। यह बीमारी पिछले कुछ सालों से कटनी में देखने मिल रही है, भले ही यह शहर छोटा हो। भोपाल में बैठी सरकार के नुमाइंदे जो चाबुक चलाते हैं, उसकी फटकार कटनी तक सुनाई पड़ती है। यहां के प्रशासन तंत्र में पदस्थ होने वाले अफसर सीधे तौर पर किसी मंत्री और मुख्यमंत्री की पसंद होते हैं तब वे कटनी के नेताओं को आखिर कितनी तवज्जो देंगे। दूसरा, यहां के पॉलिटिकल सिस्टम में भी एक खराबी जन्म लेती जा रही है। यहां के राजनेता भोपाल और दिल्ली के मठाधीशों के चरण चुम्बन को अपनी सियासत का अहम हिस्सा बना चुके है, इसलिए उनमें शहर को उसका वास्तविक हक दिलाने के जमीनी संघर्ष का माद्दा बचा ही नहीं। प्रशासन तंत्र में मनचाही कुर्सी पाने के लिए भोपाल में बोलियां लगती है और फिर कटनी आकर ये अफसर यहां के नेताओं के सिंडिकेट का हिस्सा बनकर हर अवैध काम में भागीदार बन जाते हैं। पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि अपराधियों, नेताओं और बड़े व्यवसायियों के गठजोड़ ने कटनी को तहस नहस कर दिया। ये ऐसा सिंडिकेट है जो हर अवैध काम को वैध बनाकर करने का हुनर रखता है। कटनी किस दिशा में जा रहा है इससे किसी को सरोकार नहीं। मास्टर प्लान के अनुसार कटनी को विकसित और व्यवस्थित शहरों की श्रेणी में बहुत पहले आ जाना चाहिए था, लेकिन न तो जिला प्रशासन और नगर निगम में पदस्थ होने वाले अफसरों को इसमें रुचि है और न ही नेताओं को शहर की माली हालत से कोई लेना देना है। विकास के एक सर्वमान्य रोडमैप को बनाकर उसके आधार पर योजनाओं को तैयार करने की दिशा में कभी काम नहीं हुआ, बस जनप्रतिनिधियों ने अपनी सोच शहर पर थोपी। इसका नतीजा सामने है। आसपास के इलाके कटनी से बहुत आगे निकल गए और हम दशकों पहले जहां थे, आज भी वहीं खड़े हैं। विकास अगर ठिठक सा गया है तो इसमें दोषी केवल सरकार, प्रशासन के अफसर और यहां के जनप्रतिनिधि बस नहीं, बल्कि वो जनता भी है जो अपना कीमती वोट देकर इन्हें चुनती है। लोकतंत्र की वास्तविक मालिक जनता है, वो ही अपने भाग्यविधाता चुनती है। पिछले दो दशकों में अगर जनता ने जो फैसले किए हैं अब उसके मूल्यांकन का समय है। साल 2025 इक्कीसवीं सदी के लिए इस मायने में भी अहम है, कि हमने सदी का एक चौथाई वक्त हम पार करने जा रहे है। वर्ष 2000 के आसपास कटनी के माथे पर जिले का लेबल चस्पा हुआ। इसके बाद के सफर का यह पच्चीसवां साल है। क्या इतना बड़ा अरसा किसी शहर को विकसित नगरों की कतार में खड़ा करने के लिए काफी नहीं। हर नागरिक को खुद से सवाल करना होगा कि वर्ष 2000 की तुलना में विकास के मामले में हम कितना आगे निकल सके। क्या जिले को मेडिकल और इंजीनियर कॉलेज मिल सके। क्या हवाई सुविधा नसीब हुई। क्या बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू हो पाया। बरगी डायवर्सन परियोजना, रेलवे के बड़े प्रोजेक्ट, बहोरीबंद की माइक्रो लिफ्ट इरिगेशन, रिवर फ्रंट, ट्रांसपोर्ट नगर समेत जिले के औद्योगिक विकास से जुड़ी तमाम योजनाओं पर नए साल में तेज गति से काम होगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है।

खजुराहो : कांग्रेस के मैदान से गायब होने के लिए याद किए जाएंगे लोकसभा चुनाव

राजनीतिक शोर शराबे के जिक्र में लोकसभा चुनाव को नहीं भूला था जा सकता। बीते बरस 2024 में हुए संसदीय चुनाव में दोबारा सांसद के तौर पर वीडी शर्मा को कटनी, छतरपुर और पन्ना जिलों की जनता ने चुन लिया, लेकिन इस दौरान जो आवाजें उठी, उससे कोई सबक लिया गया होगा, ऐसा फिलहाल दिखलाई नहीं देता। विकल्प के अभाव में भारतीय जनता पार्टी ने आसानी से इस सीट पर अपना परचम लहरा दिया, लेकिन जो सवाल चुनाव के दौरान जनता के बीच से उठे, उन सवालों को करीब 6 माह बीतने के बावजूद जवाब मिल नहीं पाया है। सपा के साथ समझौते में सीट चली जाने का रंज कांग्रेसियों को आज भी है। इससे बड़ा सदमा यह कि कांग्रेस ने भरोसा करके मीरा यादव को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन नामांकन में त्रुटि की वजह से वे चुनाव के मैदान से बाहर हो गई। कांग्रेस के पास चुनाव के दौरान कुछ खास करने को बचा ही नहीं। उस दौर में पार्टी के भीतर जो निराशा आई, उसके असर से पार्टी आज तक नहीं उबर पाई। पूरे क्षेत्र की जनता बदलाव चाहती थी, लेकिन विकल्प के अभाव में वीडी की दोबारा ताजपोशी हो गई। बीता साल इस बात का गवाह बना कि लोग कितने बेबस थे।

6 माह में कांग्रेस को नहीं मिल पाया एक अदद शहर अध्यक्ष

साल 2024 कांग्रेस के लेटलटीफ फैसले के लिए भी जाना जाएगा। लोकसभा चुनाव की वोटिंग के एक दिन पहले पन्ना पहुंचकर शहर कांग्रेस अध्यक्ष विक्रम खंपरिया और मेयर प्रत्याशी श्रेहा खंडेलवाल ने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था, इसके बाद से कटनी की कांग्रेस बिना राजा की फौज है। करीब 6 माह का वक्त गुजर जाने के बावजूद इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं की गई। भोपाल से दिल्ली तक दावेदार जोर लगा रहे है लेकिन पीसीसी चीफ जीतू पटवारी अपनी टीम गठित कर लेने के बावजूद कटनी का शहर अध्यक्ष नहीं तलाश सके। शायद नए साल 2025 में कांग्रेस की यह तलाश पूरी हो जाए।

कांग्रेस के अनेक नेता गए छोड़कर, ये सब भाजपा में नई जमीन की तलाश में

गुजरा साल कई सियासतदारों की जमीन भी हिला गया। कई नेताओं के मुगालते भी साल के दिनों ने खत्म कर दिए। लोकसभा चुनाव के दौरान अनेक नेता कांग्रेस से नाता तोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। पके फल की तरह भाजपा की झोली में टपके इन नेताओं को अब भाजपा में अपनी नई जमीन की तलाश है। 6 माह में इन्हें कोई पोजीशन नहीं मिली ही। पार्टी में न पद मिल रहा और न ही बैठकों में महत्व। इन्हें किसी अच्छे पद का इंतजार है। कुछ तो अब पछता भी रहे हैं कि वे कांग्रेस छोड़कर आए भी क्यों।

नगर निगम बना राजनीति का अखाड़ा

बीते साल के सफर से जाहिर है कि 2024 ने नगर निगम राजनीति का अखाड़ा बना रहा। मूलभूत सुविधाएं जनता को नसीब हुई या नहीं, यह तो इस शहर के वाशिंदे ही जानें लेकिन साल भर आपस के टकराव और आरोप प्रत्यारोप ने सदन को गर्म रखा। सालभर में बमुश्किल दो तीन बार ही सदन की कार्यवाही संचालित हुई, इसमें भी पार्षदों के बीच तनातनी के किस्से जगजाहिर हुए। आऊटसोर्स कर्मचारियों के सत्यापन और छंटनी मसले ने तासीर गर्म रखी। साल के आखिरी में हुई परिषद की बैठक में मेयर और आयुक्त की अनुपस्थिति को तूल देने की कोशिशें हुई। अलग अलग मुद्दों को लेकर कभी कांग्रेस के पार्षद नगर निगम की गैलरी में धरने पर बैठ गए तो कभी सत्तापक्ष के पार्षद ही बिफर पड़े। लोगों ने बीते साल यह भी देखा कि कैसे सत्तापक्ष दो भागों में बंट गया। पार्षद शशिकांत तिवारी ने आउटसोर्स कर्मचारी और इनकी नियुक्ति करने वाली एजेंसी से जुड़े मुद्दे पर एमआईसी से इस्तीफा देकर कुछ हलचल मचाई।

घंटाघर मार्ग पर राजनीति

घंटाघर से चांडक चौक सड़क तो नया रिकॉर्ड बनाने पर तुली है। गुजरे साल भी लोगों को हिचकोले खाते ही गुजरना पड़ा। आरोप लगते रहे कि सड़क का काम पूरा होने में अड़ंगेबाजी की जा रही है। आक्रोशित लोगों ने चार घंटे चकाजाम कर पूरे शहर के ट्रैफिक को सिर पर उठा लिया। नगर निगम इस मार्ग के भू स्वामियों को तोड़फोड़ के बदले मिलने वाले मुआवजे की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है तो सदन में विधायक संदीप जायसवाल ने एक परत डामरीकरण के आदेश दिलाकर इस पूरे एपिसोड में नया ट्विस्ट पैदा कर दिया। कुछ लोग कहने से नहीं चूक रहे कि सालभर उम्यः सड़क विधायक और मेयर की आपसी खींचतान में उलझी रह गई। सत्यता क्या है, भगवान ही जानें।

भाजपा संगठन चुनाव का हल्ला

साल के आखिरी में भारतीय जनता पार्टी के संगठन चुनाव का हल्ला मचा। आरोप लगे कि सांसद वीडी शर्मा की टीम पूरे जिला संगठन पर दोबारा कब्जे की योजना पर चल रही है। 20 मंडलों में नए अध्यक्ष बने। जिलाध्यक्ष के लिए रायशुमारी हुई और नेता भोपाल से लेकर दिल्ली तक दौड़ रहे है है, ताकि नए साल में जिलाध्यक्ष की कुर्सी उनकी किस्मत के दरवाजे खोल दे। इसके पहले पार्टी के सदस्यता अभियान का भी हल्ला मचा। टारगेट जिले में 4 लाख सदस्य का था। आंकड़ों की बाजीगरी में यह पूरा हुआ भी। जो नेता मौजूदा सिस्टम से नाखुश थे वे सालभर हाशिए पर पड़े रहे। नया साल शायद इन्हें राजनीतिक वनवास से मुक्ति दिला दे।

उपचुनाव में भी पिटी कांग्रेस, दोनों वार्ड हारे

बीते साल शहर में दो वार्डों के उपचुनाव भी हुए। महात्मा गांधी वार्ड का दशकों पुराना किला भाजपा ने इस चुनाव में भेद दिया। डॉ राजेंद्र प्रसाद वार्ड में उसने अपना कब्जा बरकरार रखा। दो वार्डों की जीत से भाजपा जहां और अधिक उत्साहित हुई तो कांग्रेस इस हार के बाद जैसे कोमा में चली गई। नगर निगम में उसके पार्षदों की संख्या भी घट गई।

ट्रांसपोर्ट नगर में लीज निरस्तगी का मास्टर स्ट्रोक

ट्रांसपोर्ट नगर योजना एक बार फिर भले ही नए साल पर बोझ बन गई हो, किंतु बीते साल मेयर प्रीति सूरी ने मास्टर स्ट्रोक चलते हुए नगर निगम प्रशासन से 9 ट्रांसपोर्टर्स की लीज निरस्त करा दी। इस कदम से उन ट्रांसपोर्टर्स में हड़कंप मच गया जो जमीन आबंटित हो जाने के बावजूद ट्रांसपोर्ट नगर में बसने को तैयार नहीं थे। हलचल मचने के बाद अनेक ट्रांसपोर्टर्स शिफ्टिंग की तैयारी में जुट गए। उधर एक ट्रांसपोर्टर्स से लीज निरस्त होने के फैसले के बावजूद राशि जमा कराने के मामले में नगर निगम कर्मचारी विजय शर्मा पर गाज गिरना भी बीते साल की सुर्खियों में रहा।

आंदोलनों और प्रदर्शनों की बहार, सदन से सड़क तक संघर्ष, आखिरी में अम्बेडकर के अपमान पर बिगड़ी कांग्रेस

पूरे साल शहर का माहौल राजनीतिक प्रदर्शनों, जुलूस, धरना और गिरफ्तारी से तप्त रहा। कांग्रेस, युवा कांग्रेस और एनएसयूआई ने सड़क पर उतरकर अनेक आंदोलन किए। कटनी को नर्मदा का जल दिलाने वाले अनेकों वर्षों से लंबित प्रोजेक्ट पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका, बिजली समस्याओं को लेकर घेराव, तिलक कॉलेज को ऑटोनॉमस बनाये जाने की मुहिम, किसानो के हक में यात्रा समेत कई आंदोलनों ने युवा कांग्रेस की पहचान सड़क पर संघर्ष करने वाली टीम की बना दी। दूसरी ओर साल के जाते जाते ग्रहमंत्री द्वारा डॉ अम्बेडकर पर दिए गए बयान को लेकर कांग्रेस बिफर पड़ी। कांग्रेस ने किसानों से लेकर आम जनता से जुड़े मुद्दों पर भी आंदोलन किए। उधर सत्ता की मलाई खाने वाले भाजपा कार्यकर्ता भी कांग्रेस को काउंटर करते दिखे। उन्होंने राहुल गांधी का पुतला जलाया। कांग्रेस के प्रभारियों के दौरे भी कई मर्तबा हुए तो भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से लेकर अनेक नेताओं का कई बार कटनी आना जाना हुआ। प्रभारी मंत्री के बतौर राव उदय प्रताप सिंह ने आमद दर्ज कराई।Screenshot 20250101 215443 WhatsApp2

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