मध्य प्रदेशराज्य

यश भारत विशेष : मौनी अमावस्या पर बुंदेलखंड के प्रसिद्ध दिवारी नृत्य की धूम : मौनिया ग्वाले….यह हैं प्राचीन परंपरा

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पन्ना l समूचे बुंदेलखंड में दीपावली के दूसरे दिन परिवा के दिन ग्वालो की हजारों टोलियां श्री जुगल किशोर मंदिर पहुंचती है और वहां पर झुंड बनाकर बुंदेलखंड का प्रसिद्ध नृत्य दिवारी नाचते हैं और झूमते हैं और इसी के साथ वह लाठियां से भी कर्तव्य दिखाते हैं, और बुंदेली खंडी पारंपरिक वेश में ग्वाले रहते हैं।

पन्ना के आराध्य देव कहे जाने वाली श्री जुगल किशोर मंदिर में इस समय हजारों ग्वालो की टोलिया दिवाली नृत्य नाच रही हैं जो मंदिर प्रांगण के चारों तरफ अपना अपना झुंड बनाकर दिवारी नृत्य दिख रहे हैं जिसमें उनके साथ वाले पारंपरिक बुंदेलखंडी वेश में रहते हैं और हाथ में मोर पंख का झुंड लेकर ठुमक ठुमक कर नाचते हैं और उन्हीं के साथ उनकी टोली में ढोलक मंजीरा रहते हैं जो ताल में ताल मिलाकर बुंदेली खंडी गीत गाते हुए झूमते हैं।

मौनिया दल के सदस्य रामदयाल यादव बताते हैं जो भी ग्वाले मौनिया बनना चाहते हैं वह पहले स्थानीय स्तर पर मंदिरों में प्रतिज्ञा करते हैं और एक गांठ बांधते हैं उस गांठ में हल्दी, नारियल एवं कोयल रहता है और 12 साल का प्रण रहता है दिवाली के दूसरे दिन प्रतिवर्ष बुंदेलखंड के आसपास जो भी तीर्थ जैसे-जटाशंकर, चित्रकूट पन्ना की जुगल किशोर मंदिर वहां जाकर दिवाली नाचना एवं गाना पड़ता है एवं पूरे दिन मौन रहना पड़ता है इसलिए इसको मोनिया अमावस्या कहा जाता है एवं पूरे दिन व्रत रहना पड़ता है इसके बाद ही शाम को व्रत खोलना पड़ता है और फिर ही बोल सकते हैं 12 वर्ष होने के बाद मथुरा वृंदावन जाकर इस प्रतिज्ञा को समाप्त किया जाता है और फिर गांव में आकर पूजा पाठ होती है और फिर यह प्रतिज्ञा पूरी हो जाती है किसी को ग्वालो की मौनी अमावस्या कहा जाता है।

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