कटनीमध्य प्रदेश

यशभारत विशेष : झंडाबाजार में था कभी जंगल, उन दिनों कहुआ के पेड़ के नीचे प्रकट हुईं मातारानी

कटनी, यशभारत। जिले में कई स्थान दैवीय चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध हैं। शहर के बीच मां जालपा विराजमान हैं तो वहीं झंडा बाजार में छोटी खेरमाई विराजीं हैं, जिनका करीब 200 वर्ष पुराना इतिहास है। इस स्थान को झंडाबाजार खेरमाई मंदिर के नाम से जाना जाता है। जानकार बताते है कि जिस स्थान पर माता विराजी हैं, यहां सालों पहले कहुआ का पेड़ था। पूरे क्षेत्र में बांस एवं कहुआ के पेड़ थे, साथ ही घना जंगल था और शेर भी आया करते थे। जंगल के बीचों लगे कहुआ के पेड़ के नीचे से मां की शिला थी।
पहले देसाई माता के नाम से जाना जाता था झंडा बाजार खेरमाई मंदिर कथाओं के अनुसार ये शिला स्वयं-भू है।जंगल में कहुआ के पेड़ के नीचे प्रकट हुई प्रतिमा को यहां से गुजर रहे दिलीपथ पटेरिया ने देखा एवं अन्य लोगों को इसकी जानकारी दी, जिसके बाद मां की स्थापना के लिए जंगल व उसके आसपास साफ सफाई की गई। कहुआ के पेड़ के नीचे ही वैदिक मंत्रोच्चार व विधि-विधान से इस स्थान पर मढिय़ा बनाकर माता की प्रतिमा स्थापित की गई। उस समय इस स्थान को देसाई माता के नाम से जाता था। जैसे-जैसे समय गुजरता गया, यहां के पूजन इत्यादि की जिम्मेमेदारी
दिलीपथ पटेरिया ने संभाली। सन 1959 में क्षेत्र के एक कारोबारी प्रभुभाई कोटक द्वारा कहुआ के पेड़ के नीचे विराजमान देसाई माता के स्थान पर मढिय़ा का निर्माण करवाया गया और उस दौर के बुजुर्गों ने इस मंदिर को खेरमाता का नाम दिया। 80 के दशक में इस मंदिर के ठीक सामने संतोषी माता का मंदिर स्थापित किया गया। वर्तमान में दिलीपथ पटेरिया की तीसरी पीढ़ी देवी मां की सेवा में जुटी हुई है। इसके उपरांत रामप्रसाद पटेरिया और अब गीता स्व. प्रशांत पटेरिया द्वारा मंदिर प्रबंधन का कार्य संभाला जा रहा है।

द्वितीया तिथि पर होती है कलश की स्थापना

इस मंदिर में शारदेय व चैत्र नवरात्र के अवसर पर महाआरती व भगतों के आयोजन के साथ भंडारा आयोजित किया जाता है। मंदिर में कलश की स्थापना अन्य देवी मंदिरों की अपेक्षा बैठकी में न होकर द्वितीया तिथि पर दोनों ही नवरात्रों में की जाती है। दुर्गा नवमी के के बजाए दशमी पर मंदिर से जवारा कलशों की पूजा कर जुलूस निकाला जाता है। छोटी खेरमाई मंदिर शहर के श्रृद्घालुओं की आस्था का बड़ा केन्द्र है। जिले भर से लोग मां के दर्शनों के लिए मंदिर पहुंचते हैं और मत्था टेककर अपनी मुराद मांगते हैं। कहते हैं कि मंदिर में सच्चे मन से जो भी मुराद मांगी जाती है, वह जरूर पूरी होती है।Screenshot 20241003 224021 WhatsApp2 Screenshot 20241003 224017 WhatsApp2 Screenshot 20241003 224005 WhatsApp2

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