महिला दिवस पर विशेष- सेवा का ऐसा संकल्प की पहले आवारा डाॅग्स को खिलाती है खाना फिर करती है दूसरा काम
जबलपुर की ऐसी लड़की जिसे खुद से ज्यादा मूक डाॅग्स की फिक्र
नीरज उपाध्याय जबलपुर, यशभारत।
इंसानियत आज भी जिंदा है, बहुत से कहानियां हमने देखी, पढ़ी और सुनी है लेकिन आज हम महिला दिवस के मौके पर ऐसी लड़की की सच्ची कहानी बताने जा रहे जो खुद से ज्यादा मूक जानवरों का ख्याल रखती है। वह बीमार हो जाए तो वह खुद असहज महसूस करती है। उनकी सलामती के लिए मंदिर से लेकर गुरूद्वारा तक भटकती है। अधिकारियों के दरबार में जाकर उनकी देखरेख के लिए आवाज उठाती है। बात हो रही है जहांगीराबाद तीनपत्ती चैक के पास रहने वाली 35 वर्षीय स्नेहा ज्योति सिंह की।
स्नेहो ज्योति सिंह उन डाॅग्स के लिए काम कर रही है जो सड़कों पर आवारा घूम रहे हैं। ऐसे डाॅग्स जो भूखे है या फिर जो बीमारियों से पीड़ित है। उनकी देखभाल स्नेहा ज्योति सिंह अपने 10 साथियों के साथ कर रही है। स्नेहा ज्योति बताती है कि एक माह में इन डाॅग्स की देखभाल में करीब 15 हजार रूपए खर्च आता है जिसे स्नेहा खुद उठाती है।
स्नेहा बताती है कि पहले चरण के कोरोना काल में भयावह स्थिति हो गई थी, लोग घरों पर दुबककर बैठ गए थे। सख्त कानून लागू था, लोगों की मदद के लिए समाजिक संस्थाएं आगे आ रही थी। वह खुद लोगों की मदद कर रही थी इसी बीच एक दिन जब वह विजय नगर से घर लौट रही थी कुछ कुत्ते भूख से तड़प रहे थे, कुछ बीमारियों से पीड़ित डाॅग्स धरती पर रेंग रहे थे। उनकी भूख और पीड़ा देखी नहीं गई। तभी से मन और दिल में ठान लिया कि वह मूक जानवरों के लिए निःस्वार्थ भाव से सेवा करेंगी। यह सेवा कार्य निरंतर आज तक जारी है।
जहां से निकलती हूं, वहां डाॅग्स को देती कुछ खाने को
स्नेहा ज्योति सिंह ने बताती है कि वह जहां जाती है और उन्हें वहां ऐसे मूक जानवर अगर नजर आ जाते हैं जो भूखे है या फिर बीमार है तो तत्काल में अपने पैसों से उनके खाने की व्यवस्था और दवाईयां उपलब्ध कराती है।
बच्चों जैसा समझती हूं इसलिए कर रही हूं सेवा
स्नेहा ज्योति सिंह का कहना है कि बेजुबान मूक जानवरों से वह बच्चों ट्रीट करती है। बिस्कुट, दूध रोटी और पानी से भरी बाॅटल्स लेकर सभी आवश्यक वस्तु वह अपने साथ लेकर चलती है। स्नेहा का कहना है कि इस कार्य के लिए उसने लोगो को भी जागरूक करना शुरू किया कि सड़क पर खाने की दुकान,होटल,रेस्टाॅरेन्ट,खाने के ठेले पर आश्रित रहने रहने वाले इन बेजुबान जानवरों को खाना खिलाने के लिए जागरूक किया गया।
परेशानियां बहुत आई पर पीछे मुड़कर नहीं देखा, मदद करने वाले भी सामने आए
स्नेहा ज्योति सिंह बताती है इस कार्य में तकलीफे तो बहुत आई हमे क्यों मूक जानवारांे की संख्या तो बढ़ती जा रही थी लेकिन उन्हें खिलाने के लिए साधनों की कमी होने लगी थी,हमारे पास भी बहुत ज्यादा साधन उपलब्ध नही थे और उस वक्त हमारी मदद कोई भी नही करता था..पता नही लोगो को डाॅग्स से इतनी नफरत क्यों है आज भी लोग इन्हें दुत्कारते है,मारते है,भागते है..जबकि इन से वफादर,प्यारा और पारिवारिक जानवर और कोई नही है..लोगो से बहुत नारजगी भी थी हमे कयुंकि स्ट्रीट पर रहने वाले इंसानो के लिए तो सारी की सारी समाज सेवी संस्थाए सड़क पर गई थी लेकिन उनका ध्यान सड़क पर ही रहने वाले इन मासूम बेजुबान मूक पशुओं की तरफ नही जा रहा था।
सम्मान मिला ग्रुप भी बना हुआ जिसमें 10 महिलाएं शामिल है
स्नेहा ज्योति बताती है कि डाॅग्स की सेवा के लिए हमे 2014 में सबसे पहले गुंजन कला सदन मध्य प्रदेश के द्वारा महिला रत्न अलंकरण से सम्मानित किया गया था..2021 में भरत यादव के द्वारा 3 सम्मान पत्र ,2021 में कर्मवीर शर्मा जी के द्वारा एक सम्मान पत्र मिला,2021 अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में महिला बल विकास की ओर से सम्मान दिया गया,2021 एस. एस. इवेंट के द्वारा डपेेध्डते.ड.च्. गेस्ट आॅफ होनर का सम्मान मिला,2021 भारतीय जनता पार्टी के द्वारा सम्मानित किया गया,2021 स्मार्ट सिटी के द्वारा सम्मानपत्र मिला है,रोटरी क्लब आॅफ जबलपुर प्रीमियर के द्वारा सम्मानपत्र मिला,और भी कई संस्थाओं के द्वारा हमे सम्मानित किया जाता रहा है..हमारे ग्रुप का नाम स्ट्रीट एनिमल लवर ग्रुप है जिसमे 10 महिलाएं है.. हमारे ग्रुप के द्वारा हर रोज 300-400 स्ट्रीट एनिमल्स (डाॅग्स,गाय, सुअर) को खाना दिया जाता है।
पिता खोने के बाद अकेली पर हार नहीं मानी
स्नेहा ज्योति सिंह का जज्बा-लगन और कर्मठता के आगे लाख परेशानियां आई पर उसने हार नहीं मानी। मूक जानवरांे की सेवा का संकल्प लिए स्नेहा ज्योति की जिंदगी एक समय ऐसा भी आया जब वह अकेली हो गई है। पिता स्वर्गीय राम गोविंद सिंह जो पेशे से वकील थे उनका निधन हो गया। पिता के जाने के बाद स्नेहा पर मां रानू और छोटा भाई पवन की देखभाल का जिम्मा भी आ गया। इस सब के बाबजूद स्नेहा ज्योति ने हार नहीं मानी और लगातार मूक पशुओं की सेवा वह करती आ रही है।