देवरिया
आजादी की लड़ाई में यूं तो देश के अनेक क्रांतिवीरों ने अपने प्राण न्यौछावर किए मगर देवरिया जिले के एक देशभक्त ने मात्र 13 वर्ष की उम्र में ही देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। यह थे कक्षा 5 के छात्र शहीद रामचंद्र विद्यार्थी, जो गांधी जी के आह्वान पर अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने घर से बिना बताए देवरिया आए थे।
यहां उन्होंने कचहरी पर लगा अंग्रेजों का यूनियन जैक फाड़ कर तिरंगा झंडा फहरा दिया और अंग्रेज सैनिकों की गोली से शहीद हो गए थे। 13 वर्ष की उम्र में देशभक्ति का ऐसा जज्बा इतिहास में बिरला ही मिलता है।
साल 1942 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन के आह्वान पर आम जनमानस के साथ छात्रों में भी देश प्रेम की भावना उबाल खाने लगी थी। 14 अगस्त 1942 को आंदोलन में हिस्सा लेने कक्षा 5 में पढ़ाई करने वाले 13 वर्षीय छात्र रामचंद्र भी घर से बिना बताए चुपके से पैदल ही देवरिया आए। जहां वह अंग्रेज सैनिकों की नजरों से बचते हुए कचहरी के ऊपर चढ़ गए। रामचन्द्र ने वहां पर लगा ब्रिटिश हुकूमत का यूनियन जैक उतार फेंका।
एक मासूम बालक की ऐसी हिम्मत देखकर उस वक्त का परगनाधिकारी उमराव सिंह आग बबूला हो गया। उसने अंग्रेज सैनिकों को आदेश देकर धुंआधार गोली चलवाई। लेकिन रामचन्द्र विद्यार्थी ने गोलियों की बौछार के बीच बिना डरे ही भारत माता का जयघोष करते हुए शान से तिरंगा फहराया और अंग्रेजों की गोलियों से छलनी होकर इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए शहीद हो गए।
उनकी शहादत की खबर पूरे क्षेत्र में फैल गई। उनके पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटकर उनके गांव ले जाया गया। जहां छोटी गण्डक नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया। बताया जाता है कि जिस रास्ते से इस मासूम शहीद का शव गुजरा उस रास्ते पर लोगों का रेला उमड़ पड़ा। महिलाएं बच्चे और बुजुर्गों की कौन कहे नई नवेली दुल्हनें भी शहीद को श्रद्धांजलि देने के लिए घर में से बाहर निकल पड़ी थीं।
पीएम नेहरू पहुंचे थे शहीद के गांव
शहीद रामचंद्र विद्यार्थी का जन्म 1 अप्रैल 1929 को छोटी गंडक नदी के किनारे स्थित नौतन हथियागढ़ गांव में हुआ था। वह बसंतपुर धूसी स्थित स्कूल में पढ़ते थे। उनके पिता बाबूलाल प्रजापति व माता का नाम मोती रानी देवी था। उनके बाबा भर्दुल प्रजापति भी देश भक्त थे। इनका पुश्तैनी कारोबार मिट्टी का बर्तन बनाना था।
1949 मे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु शहीद के गांव नौतन हथियागढ़ आए। जहां उन्होंने विद्यार्थी के माता-पिता को चांदी की थाली और चांदी का गिलास देकर सम्मानित किया था। शहीद रामचंद्र विद्यार्थी के पैतृक गांव में उनकी प्रतिमा लगाई गई है और जिला मुख्यालय पर रामलीला मैदान में शहीद स्मारक बनाया गया है। गांव के बच्चे उनकी प्रतिमा देखकर गर्व का अनुभव करते हैं।