नशे की छाया में जली जिंदगियां: जागरूकता अभियान के बीच हिंसा, आत्महत्या और चाकूबाज़ी की बाढ़

जबलपुर। जिले में नशा मुक्ति को लेकर 15 दिवसीय जागरूकता अभियान भले ही पूरे जोश के साथ चलाया गया, मगर हकीकत इससे ठीक उलट रही। अभियान के दौरान ही जिले में नशे से जुड़ीं दर्जनों हिंसक घटनाएं, आत्महत्याएं और महिलाओं के प्रति अत्याचार सामने आए, जो यह बताने के लिए काफी हैं कि जागरूकता और ज़मीनी हकीकत के बीच गहरी खाई अब भी बनी हुई है।
सरकारी रैलियों, नुक्कड़ नाटकों, जनसंवादों और शपथ कार्यक्रमों के बीच, थानों में दर्ज हुईं रिपोर्ट्स एक अलग ही कहानी बयां कर रही हैं — पति ने शराब के नशे में पत्नी को जिंदा जला दिया, कई महिलाओं ने प्रताड़ना की शिकायत दर्ज कराई, युवाओं ने फांसी लगा ली और सड़कों पर चाकू चले।
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शराब ने छीनी सांसें: पत्नी को जिंदा जलाया
हीरापुर बंधा (भेड़ाघाट थाना), 22 जुलाई:
शराब के नशे में धुत छब्बीलाल बर्मन ने पत्नी संगीता पर डीजल डालकर आग लगा दी। महिला की मौत 29 जुलाई को अस्पताल में हो गई। शादी के बाद से पति प्रताड़ित करता था।
नशे में डूबे पति, पीड़ित बनीं पत्नियां
19 जुलाई, पनागर: पूजा कुशवाहा ने पति अमित कुशवाहा के खिलाफ मारपीट की रिपोर्ट दर्ज कराई।
25 जुलाई, देवरी: नंदनी केवट ने पति द्वारा शक के चलते पिटाई की शिकायत दी।
15 जुलाई, सिहोरा: अंजली चक्रवर्ती ने बताया कि पति नरेंद्र ने नशे में चाकू से हमला किया।
नशे में टूटी जिंदगी की डोर
24 जुलाई, सालीवाड़ा (बरगी): आशीष यादव ने चुनरी से फांसी लगाकर जान दी।
27 जुलाई, एकता चौक (गढ़ा): नीलेश यादव ने सीलिंग फैन से लटककर आत्महत्या की।
पंद्रह दिन, दस चाकूबाज़ियां — वजह एक: शराब के पैसे नहीं दिए
कुछ रिपोर्ट्स से झलकता है कि अपराध अब नशे की जरूरत पूरी न होने पर उग्र प्रतिक्रिया में बदल रहा है।
16 जुलाई, अधारताल: शंकर यादव पर तीन बदमाशों का चाकू से हमला।
16 जुलाई, गोहलपुर: समीम और शोऐब पर चाकू से वार।
17 जुलाई, अधारताल: रोनक पटेल पर हमला।
19 जुलाई, अधारताल: प्रकाश राणा पर वार।
21 जुलाई, केंट: आयुष लाहड़ और साथी पर चाकू से हमला।
21 जुलाई, अधारताल: जावेद पर चाकूबाज़ी।
22 जुलाई, कोतवाली: संदीप केशरवानी पर हमला।
23 जुलाई, गढ़ा: राजेश लोधी पर हमला।
27 जुलाई, गोहलपुर: शमीम घायल।
29 जुलाई, संजीवन नगर: रामकिशन रजक पर हमला।
अभियान प्रभावी या औपचारिकता?
“नशे से दूरी है जरूरी” नामक जागरूकता अभियान का लक्ष्य था समाज को जागरूक करना, लेकिन इन घटनाओं ने दिखाया कि जागरूकता सिर्फ मंचों पर रही। जमीनी स्तर पर इसका प्रभाव दिखाई नहीं दिया।
-समाज और प्रशासन के लिए चेतावनी
यह आंकड़े बताते हैं कि अब सिर्फ जनजागरूकता से बात नहीं बनेगी। आक्रामक रूप से नशे की जड़ों पर प्रहार, अवैध शराब की सप्लाई रोकना, पुनर्वास केंद्रों को सक्रिय करना और काउंसलिंग जैसे उपाय जरूरी हो चुके हैं।नशे की मार अब व्यक्तिगत नहीं रही यह सामाजिक, पारिवारिक और मानसिक संकट में तब्दील हो चुकी है। जब तक यह समझ कर सख्त नीति नहीं बनेगी, तब तक हर जागरूकता अभियान केवल सरकारी दस्तावेज़ों की शोभा बढ़ाएगा।








