जबलपुरमध्य प्रदेशराज्य

धन्य है ! जबलपुर के माननीय-अफसरः प्रदेश की एक मात्र विक्रम अवार्डी ब्लाइंड जूडो महिला खिलाड़ी को खेलने के लिए मांगना पड़ रहा चंदा

सिहोरा कुर्रें गांव में रहने वाली नेत्रहीन जानकी बाई गौंड़ के अंदर खेलने की क्षमता पर गरीबी आड़े आ रही

Table of Contents

नीरज उपाध्याय, जबलपुर।
कहते हैं हौंसलों में उड़ान हो तो सबकुछ संभव है। कहावत सही भी है परंतु जबलुपर के सिहोरा कुर्रें गांव की ब्लाइंड जूडो खिलाड़ी जानकी बाई के लिए यह कहावत सिर्फ कागजों में लिखने वाली साबित हो रही है। जानकी बाई ने मध्यप्रदेश नहीं पूरे देश में ब्लाइंड जूडो चैम्पियनशिप में जबलपुर का नाम रोशन किया। जानकी बाई पर पूरे शहर को गर्व है । जानकी नहीं राष्ट्रीय नहीं अंतराष्ट्रीय स्तर पर चैम्पियनशिप जीती है, कई पुरस्कारों से जानकी को नवाजा जा चुका है। हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने जानकारी को विक्रम अवार्ड देकर जानकी के सपनों को पूरा करने में एक कदम बढ़ाया है। लेकिन यहां जानकर हैरानी होगी कि जानकी ने अब तक जो उपलब्धियां हासिल की है वह चंदे के पैसों से या फिर उधार लेकर कमाई है। जानकी ने आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। चैम्पियनशिप में भाग लेने के लिए जानकी को भिखारियों की तरह राह चलते लोगों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है। जनपदों में जाकर हवाई यात्रा के लिए पैसे एकत्रित करने पड़ते है। धन्य है! जबलपुर के जनप्रतिनिधि और अफसर। जानकी ने कई बार शहर के नेताओं के पास जाकर अपनी आर्थिक स्थिति का बखान किया लेकिन नेताओं ने हर बार नियमों का हवाला देकर मदद करने से साफ इंकार कर दिया।

चंदा करके जाना पड़ता है खेलने विदेश

जानकी ने बताया कि पिछले साल उसका चयन अंतरराष्ट्रीय इवेंट के लिए हुआ था। इतने पैसे नहीं थे कि विदेश जा सके। न सरकार ने साथ दिया न प्रशासन ने। बमुश्किल एक लाख रुपए का चंदा किया और विदेश जा सकी। एसोसिएशन ने मार्गदर्शन दिया। ट्रेनिंग प्रोग्राम की व्यवस्था कराई। जानकी ने बताया कि 5 साल की थी तब उसकी आंखों की रोशनी चली गई। स्कूली शिक्षा 5वीं तक ही हासिल कर सकी। भारत की ओर से खेलने के बावजूद आज भी घर की स्थिति जस की तस है। जानकी 2 अंतरराष्ट्रीय और 3 राष्ट्रीय पदक जीत चुकी है। अभी राष्ट्रीय कोच अकरम शाह जानकी को ट्रेनिंग दे रहे हैं। जानकी ने बताया कि 2014 से वह जूडो का प्रशिक्षण ले रही है। 2017 में भी उसने अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था। इसके बावजूद सरकार से कोई विशेष मदद नहीं मिली। जानकी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान से अपील की है। सरकार प्रदेश के खिलाड़ियों को विक्रम और एकलव्य अवार्ड देती है।
अवार्ड में राशि देती है, नौकरी देती है। लेकिन हम जैसे खिलाड़ी जो विदेश में जाकर भारत की ओर से पदक जीतते हैं उनकी कोई मदद नहीं करती। जानकी कहती हैं ‘मैं मामाजी (मुख्यमंत्री) से अपील करती हूं कि हम जैसे खिलाड़ियों के बारे में भी कोई पाॅलिसी बनाएं। दुखी मन से जानकी ने बताया कि तिर्की में जूडो चैम्पियन शिप है और उसमें वह क्वालीफाई हो चुकी है लेकिन उसके पास इतने पैसे नहीं है कि वह तिर्की जा सके।

कई पदक जीते फिर भी आर्थिक मदद नहीं मिली

परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। इस कारण प्राथमिक शिक्षा पूरी करने का सपना भी अंधकार में डूब गया। लेकिन, वर्ष 2013-14 सिहोरा के ग्राम कुर्रो में रहने वाली दृष्टि दिव्यांग जानकीबाई गौड़ के जीवन में रोशनी बनकर आया। जूड़ो संघ के माध्यम से जानकीबाई ने ट्रेनिंग शुरू की और प्रदेश की पहली महिला दृष्टि दिव्यांग जूड़ो खिलाड़ी बनीं। उन्होंने पांच राष्ट्रीय पदक जीते हैं। पहली बार 2016 में राष्ट्रीय पैरा जूडो प्रतियोगिता में रजत, 2017 में नेशनल ब्लाइंड एंड डेफ जूडो चैम्पियनशिप में स्वर्ण, ताशकंद उज्बेकिस्तान में ओशिनिया चैंपियनशिप में महिला पैरा जूडो टीम का नेतृत्व किया और कांस्य पदक जीता है।

Yash Bharat

Editor With मीडिया के क्षेत्र में करीब 5 साल का अनुभव प्राप्त है। Yash Bharat न्यूज पेपर से करियर की शुरुआत की, जहां 1 साल कंटेंट राइटिंग और पेज डिजाइनिंग पर काम किया। यहां बिजनेस, ऑटो, नेशनल और इंटरटेनमेंट की खबरों पर काम कर रहे हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button