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दो सिर, एक जान वाले बच्चों की कहानी…:आंखों में कट रहीं मां की रातें

यूं तो हर मां के लिए बच्चे को जन्म देना और उसकी परवरिश करना सहज नहीं होता, लेकिन जावरा की एक मां को एक बेटे को पालने में दोहरी परेशानी हो रही है। उनका बेटा करोड़ों में एक है। उसमें एक जान और दो सिर हैं। शरीर का हिस्सा एक ही है, लेकिन सिर दो हैं और हाथ तीन। इनकी परवरिश में मां की रातें आंखों में ही कट रही हैं। इससे मां खुद बीमार होने की दहलीज पर है। परवरिश में दुश्वारियां और भी हैं, लेकिन मां की दुआ यही है कि ये बच्चे सदा सलामत रहें।

मेडिकल साइंस की भाषा में डाइसेफलस कहते हैं
इन असामान्य बच्चों का जन्म इसी साल 28 मार्च को जावरा के ऑटो चालक सोहेल के घर में हुआ है। इन बच्चों को मेडिकल साइंस की भाषा में डाइसेफलस कहते हैं। यानी दो सिर वाले बच्चे। ऐसे मामले करोड़ों में एक होते हैं। बच्चे का नाम अली हसन रखा गया है। पैदा होने के साथ ही उन्हें सांस लेने में तकलीफ थी। अली हसन का इलाज 22 दिन तक इंदौर में चला। हाल ही में उसे डिस्चार्ज किया गया है। हालांकि, वह पूरी तरह स्वस्थ नहीं है।

एक रोता है तो दूसरा शांत रहता है
बच्चे की मां शाहीन बताती हैं कि बच्चे के एक चेहरे पर रुलाई होती है तो दूसरे पर शांति। एक चेहरे के आंसू थम जाते हैं तो दूसरे चेहरे से आंसू आने लगते हैं। इस तरह वह रातभर रोता है। इसे संभालना मुश्किल है। रातभर जागकर देखभाल करनी पड़ती है, लेकिन जब शांत रहता है तो बहुत प्यारा लगता है। उसके साइज के कपड़े भी नहीं मिलते। जैसे-तैसे कपड़े से ढंककर रखते हैं।

अब भी पूरी तरह स्वस्थ नहीं बच्चा
बच्चे के नाना शहजाद ने बताया कि उसकी तबीयत अब भी पूरी तरह ठीक नहीं है। उसका पेट साफ नहीं हो पा रहा। पूरी रात इसी में हो जाती है। कभी वह दोनों मुंह एक साथ हिलाता है तो हम डर कर दुआ मांगने लग जाते हैं। कभी एक मुंह रोता है तो कभी दूसरा। अचानक हाथ भी मुंह की तरफ ले जाता है तो हमें रोकना पड़ता है। इसे बचाने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी। 22 दिन तक इंदौर में रहे।

रुटीन ट्रीटमेंट के अलावा कुछ खास नहीं हुआ। वहां से अचानक डिस्चार्ज कर दिया। आगे के उपचार के बारे में पूछा तो डॉक्टरों से हमें सही मार्गदर्शन नहीं मिला। ऐसा लगता है कि डॉक्टर रिस्क नहीं लेना चाहते। हमें ऊपर वाले पर भरोसा है और वही इसकी सांसें चला रहा हैं।

इंदौर की रिपोर्ट के आधार पर उपचार देंगे
रतलाम जिला चिकित्सालय के SNCU प्रभारी डॉ. नवेद कुरैशी ने बताया कि बच्चे के जिंदा रहने के चांस कम थे। अब वह रतलाम आ गया है, तो इंदौर की रिपोर्ट्स के आधार पर हम उसे आगे का ट्रीटमेंट देंगे।

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