तीन रूप में दर्शन देती है माँ हरसिद्धी: आस्था का है प्रमुख केंद्र : भक्तों का लगा रहता है तातां
नरसिंहपुर/तेंदूखेड़ा यशभारत। शक्ति साधना का महापर्व चैत्र नवरात्र संपूर्ण क्षेत्र में भक्ति भाव से मनाया जा रहा है। नगर मे मुख्य रूप से चार दिशाओं में 4 हरसिद्धी मठों की स्थापना की गई है। जिसमें बड़ी हरसिद्धी के नाम से विख्यात मां भगवती दिन में अपने 3 स्वरूपों में भक्तों को दर्शन दिया करती है।
श्रद्धालु जन अपनी-अपनी शक्ति सामथ्र्य के अनुसार माता रानी की भक्ति में लीन बनें हुए हैं। कोई नंगे पैर तो कोई मौन धारण कर व्रत रखकर मातारानी की साधना कर रहे है। वहीं क्षेत्र का सबसे प्राचीन सिद्ध हरसिद्धि मंदिर में सुबह चार बजे से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां हरसिद्धि को जल चढ़ाने के लिए कतार वद्ध हो जाते हैं। शाम के समय भी आरती में दर्शनार्थियों की भीड़ एकत्रित हो जाती है।
जनास्था के केंद्र बनें इस मंदिर में विराजमान मां हरसिद्धि देवी दिन में अपने तीन रुपों में दर्शन दिया करती हैं प्रात:काल बाल दोपहर में युवा और शाम को वृद्ध स्वरुप में दर्शन होते है। उनके हिसाब से ही चेहरा स्पष्ट झलकता है। वैसे तो प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं लेकिन चेैत्रीय और शारदीय नवरात्र में मां हरसिद्धि देवी के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु बड़ी संख्या में सपरिवार पहुंचा करते हैं।
सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूर्ण होने के कारण लोगों की आस्था बनी हुई है। तथा नवरात्रि में पूजन के ंलिए श्रंद्धालुजन दूर दूर से यहां आकर पूजन अर्चन किया करते है मंदिर के इतिहास के बारे में पुराने लोग बताते हैं कि यह मंदिर लगभग 150 वर्ष पुराना है। किसी विश्वकर्मा श्रद्धालु द्धारा इसे बनवाया था। सागर जिले की रानगिर और इस मंदिर में विराजमान हरसिद्धि देवी एक स्वरुप में है। नगर के बाहर घने जंगल के बीच इस मंदिर को बनाया था। अधिक जंगल होने के कारण जंगली जानवरों का भी यहां पर डेरा बना रहता था। बाजू से बहने वाली नदी में वर्ष भर पानी रहने के कारण पानी पीने मंदिर के इर्द गिर्द जानवर घूमते नजर आते थे।
घनघोरता और जानवरों के भय से लोग अकेले नहीं आ पाते थे। लेकिन शनै: शनै: कटते जंगलों के कारण जहां जानवर भी भाग निकले वहीं अब मंदिर परिसर ने विशाल स्वरुप धारण कर लिया है श्रद्धालु जनों के सहयोग से विशाल मंदिर बन गया है।
अखंड ज्योति एवं जवारे कलश की स्थापना
वैसे तो वर्ष भर तरह-तरह के अनुष्ठान पूजन कार्यक्रम यहां पर चलते रहते हैं लेकिन नवरात्रि में विशेष साधना मंदिर परिसर में संपन्न हुआ करती हैं। अखंड ज्योति के साथ दुर्गा पाठ परिसर में जवारे कलश तथा दुर्गा प्रतिमा भी विराजमान की जाती है। मंदिर की विशेष साज-सज्जा भी की गई है। यह मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 45 भोपाल जबलपुर सड़क मार्ग के बीचों-बीच तेंदूखेड़ा में स्थित है। मंदिर के रसिक पुजारी ने बताया कि काफी लंबे समय से यहां पर पूजन करते चले आ रहे हैं।
प्रात काल जल चढ़ाने वालों की लंबी लंबी कतारें लगा करती है । रात्रि में आरती और दर्शन के लिए श्रंद्धालुजन आते हैं। पंचमी तिथि पर देवी गीतों का आयोजन हुआ करता है तथा दोपहर में महिलाओं द्वारा भजन कीर्तन होते हैं। तथा निर्माण समिति प्रमुख मुकेश बाजपेई बताते हैं कि यह मंदिर जनास्था का केंद्र बना हुआ है जनसहयोग से ही विशाल भव्य मंदिर का स्वरुप धारण कर पाया है। क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों के द्वारा भी समय-समय पर बड़ी राशि देकर यहां पर निर्माण में अपना योगदान दिया है। जिसे काफी सुव्यवस्थित बनाया जा रहा है।