मध्य प्रदेश

तानसेन संगीत समारोह का 100वां उत्सव : उस्ताद जाकिर हुसैन को अर्पित किए श्रृद्धासुमन, समर्पित की संगीत सभा

महेश्वर किले की आभा में सुर — साज की जादूगरी, संगीत नगरी की सुबह और शाम राग—बंदिशों के नाम

ग्वालियर। मध्य प्रदेश शासन, संस्कृति विभाग के लिए जिला प्रशासन – ग्वालियर, नगर निगम ग्वालियर के सहयोग से उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी द्वारा आयोजित विश्वसप्रसिद्ध तानसेन संगीत समारोह के 100वें उत्सव के दूसरे दिन सोमवार को प्रात:कालीन एवं सायंकालीन संगीत सभाएं सजीं। प्रात:कालीन संगीत सभाओं से पूर्व सुविख्यात तबला वादक पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन को कलाकारों, अधिकारियों एवं उपस्थित संगीतप्रेमियों द्वारा श्रृद्धासुमन अर्पित किए गए और संगीत सभा उन्हीं को समर्पित की गई।

प्रात:कालीन सभा का शुभारंभ सारदा नाद मंदिर, ग्वालियर के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के सुमधुर ध्रुपद गायन से हुई। इसके बाद मंच संभाला ग्वालियर के युवा गायक श्री हेमांग कोल्हटकर ने। हेमांग ने अपने गायन के लिए राग ललित का चयन किया। इस राग में उन्होंने तीन बंदिशें पेश की। एक ताल में विलंबित बंदिश के बोल थे ‘’रैन का सपना’’ जबकि तीन ताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे ‘’जोगिया मोरे घर आए’’ इसी राग में द्रुत एक ताल की बंदिश थी हे गोविंद हे गोपाल। तीनों ही बंदिशों को हेमांग ने बड़े ही संयम से पेश किया। राग गूजरी तोड़ी से गायन को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने बाला साहेब पूछवाले की बंदिश ‘’गावो गावो गावो रिझावो’’ की प्रस्तुति दी। फिर द्रुत एक ताल में तराना और भजन ‘’रघुवर तुमको मेरी लाज’’ गाते हुए गायन का समापन किया। इस प्रस्तुति में तबले पर श्री मनीष करवड़े व हारमोनियम पर श्री अनूप मोघे ने साथ दिया। इसके बाद सुबह की सभा में दिल्ली के भास्कर नाथ ने अपने साथियों के साथ शहनाई वादन की सुमधुर प्रस्तुति दी।

प्रात: कालीन सभा का समापन प्रयागराज से पधारे पं. प्रेम कुमार मलिक के ध्रुपद गायन से हुआ। उन्होंने राग शुद्ध सारंग में आलाप, जोड़ झाला की बेहतरीन प्रस्तुति से राग के स्वरूप को विस्ता र देते हुए चौताल में निबद्ध बंदिश ‘’बैठे हरि राधे संग, कुंज भवन अपने संग’’ को बड़े ही सलीके से पेश किया। इसके बाद राग भीमपलासी से गायन को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने धमार की रचना ’’मारत पिचकारी श्याम बिहारी’’ को बड़े रंजक अंदाज में पेश कर होली की रंगत को साकार करने का प्रयास किया। इसी राग में सूलताल की बंदिश ‘’शंभू हरि रे, गंगाधर रे’’ से उन्होंने अपने गायन का समापन किया। उनके साथ पखावज पर श्री मनमोहन नायक व सारंगी पर श्री अब्दुल मजीद खा ने संगत की।

 

*साजा वृक्ष की लकड़ी से बनता है बानागोण्डनम*

तानसेन संगीत समारोह के 100वें उत्सेव के अवसर पर संस्कृनति विभाग द्वारा नाद प्रदर्शनी का आयोजन भी तानसेन समाधि स्थ़ल परिसर में किया गया है। वाद्ययंत्रों की इस प्रदर्शनी में 600 से अधिक वाद्ययंत्र प्रदर्शित किए जा रहे हैं। ये वाद्ययंत्र शास्त्री य, लोक एवं जनजातीय संगीत में प्रयोग किए जाते हैं। इस प्रदर्शनी में कई ऐसे वाद्ययंत्र हैं जो दुर्लभ हैं। इनमें मध्यजप्रदेश की जनजातीय समुदाय द्वारा पारम्पररिक संगीत में उपयोग किया जाने वाला बानागोण्डोम वाद्य है। यह वाद्ययंत्र साजा वृक्ष की लकड़ी से बनाया जाता है। इसके अलावा राजस्थानन के कामड़ समुदाय तथा अन्यय समुदाय के लोक कलाकारों द्वारा लोकगीतों में प्रयोग किया जाने वाला रावण हस्था़ भी आकर्षण बना हुआ है। इसके अलावा नागफनी पीतल या कांसे से बना एक साधारण लहरदार पाइप नगतुरी भी विशेष है। इस पाइप का आकार नाल जैसा है, जिसका उपयोग लोक नृत्या और गायन के साथ किया जाता है। इस प्रदर्शनी का संयोजन त्रिवेणी संग्रहालय, उज्जैेन द्वारा किया जा रहा है।

 

*हिंदुस्तानी गायन में बंदिशों का बड़ा महत्व*

राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में वादी—संवादी सभा का आयोजन किया जा रहा है। इसके पहले दिन भोपाल के विख्यात कलाकार प्रो. पंडित सज्जन लाल ब्रह्मभट्ट ने संवाद किया। उन्होंने कहा कि “कल्पना कीजिए कि यदि गायन में बंदिशें न हों तो सुनाने के लिए क्या रह जाएगा। इसका मतलब यह है कि हिंदुस्तानी गायन में बंदिशों का बड़ा महत्व है, जिन्हें अलग- अलग रागों में निबद्ध किया गया है। जो बंदिशें बन चुकी हैं, उन सबकी अपनी शैली और अलग महत्व है। यदि आपको कोई बंदिश याद है तो गायन के समय गलती की संभावना नहीं होती। यदि बात त्रिवट की की जाए तो इसमें शब्द नहीं होते। त्रिवट तबला और पखावज के बोलों से सुसज्जित होता है। प्रो. पं सज्जन लाल ब्रह्मभट ने इस दौरान ग्वालियर घराने की दुर्लभ व प्राचीन बंदिशों की मनमोहक प्रस्तुति दी। उन्होंने पहले सूलताल में त्रिवट को राग हमीर में प्रस्तुत किया।

 

इसके बाद तराना को राग हमीर, ताल रूपक में प्रस्तुत कर देखने और सुनने वालों का मन मोह लिया। इसी क्रम में तराना को पहले तीनताल में फिर राग देश, एक ताल में प्रस्तुत किया। इसके बाद पं.भट्ट ने सरगम का समां बांधा। उन्होंने सरगम को पहले राग देश, तीनताल में फिर राग खमाज में प्रस्तुत कर देखने और सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद त्रिवट को पहले राग भूपाली, तीनताल, राग नंद कल्याण एकताल में मनमोहक रूप से प्रस्तुत किया। अंत में उप शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति दी। इसमें उन्होंने मैं मोहन की राधा सखी री…को राग मिश्र भिन्न षड्ज, तीनताल में प्रस्तुत किया। इसके बाद सुनो हमारी अर्जी… को राग खमाज, अद्धा तीन ताल में प्रस्तुत कर श्रोताओं का मन मोह लिया। उनके साथ हारमोनियम पर उनके पुत्र व शिष्य चैतन्य भट्ट ने और तबले पर डाॅ. विकास विपट ने संगत दी।

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