जबलपुर में आरटीई के नाम पर फर्जीवाड़ाः स्कूलों कागजों में संचालित
बच्चों का प्रवेश शत-प्रतिशत और शासन से पैसा भी खातो ं में पहंुच रहा है
जबलपुर, यशभारत। गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सके, इसी उद्देश्य से शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया गया. लेकिन जबलपुर में स्कूल माफिया के लिए यह कानून ही फायदे का सौदा बन गया है. जबलपुर में आरटीई के नाम पर बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है, यहां आरटीई के तहत सरकार से मिलने वाली सब्सिडी को हड़पने के लिए कुछ स्कूल केवल कागजों में ही चल रहे हैं. इन स्कूलों में दाखिला लेने वाले छात्र अब जमीन पर अपना स्कूल खोज रहे हैं.
कागजों में चल रहे निजी स्कूल
शहर में स्कूल माफिया और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से आरटीई मजाक बनकर रह गई है। गरीब माता-पिता ये सोच कर खुश है कि उनके बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं, लेकिन उनका भ्रम तब टूटा जब जमीन पर स्कूल कहीं नजर नहीं आया।
किसी दिशा में नहीं है दिशा स्कूल फिर भी दाखिला
दिशा पब्लिक स्कूल और चैंपियन पब्लिक हायर सेकेंडरी स्कूल के नाम से बच्चों का आरटीई के तहत दाखिला ले लिया गया, लेकिन दिशा पब्लिक स्कूल तो कहीं नजर ही नहीं आता। जबकि शटरवाली दुकाननुमा जगह पर चैंपियन पब्लिक हायर सेकेंडरी स्कूल का नाम लिखा है. लेकिन ये कभी खुलता नहीं।
अभिभावकों को सता रही बच्चों के भविष्य की चिंता
बच्चों के बेहतर भविष्य का सपना सजा रहे गरीब माता-पिता को अब अपने बच्चे के भविष्य की चिंता सता रही है। कुछ अभिभावक ऐसे हैं, जिनके बच्चे का एक साल पहले दाखिला हुआ और कोरोना के कारण आज तक वो स्कूल नहीं जा पाएं। अब जिनके जरिए एडमिशन हुआ वो फोन नहीं उठाते और स्कूल कहीं दिखाई नहीं देता. ऐसे में जिन छात्रों को इन स्कूलों में दाखिला मिला है, वो छात्र और उनके अभिभावक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर हैं.
डीईओ ने जांच का दिया आश्वासन
नियमों के मुताबिक, शिक्षा के अधिकार के कानून के तहत निजी स्कूलों में 25ः सीटें गरीब बच्चों को निःशुल्क देनी है. जिसके एवज में सरकार द्वारा निजी स्कूल संचालकों को सब्सिडी दी जाती है। पूरा खेल बस इसी का है, जिसमें शिक्षा विभाग के कुछ अधिकारी और स्कूल संचालक मिलकर ऐसे स्कूलों को बना देते हैं जो हकीकत में हैं ही नहीं. सारा काम आॅनलाइन होता है। मामले को लेकर जब जिला शिक्षा अधिकारी से सवाल किया गया तो उन्होंने जांच कराए जाने की बात कही है।