क्या जिला संगठन और विधायकों के बीच गतिरोध की गुत्थी सुलझाने आये वीडी ?
अपने संसदीय क्षेत्र में बने हालातों से चिंतित हैं प्रदेश बीजेपी के सुप्रीमो, दोबारा यहीं से लड़ना पड़ा लोकसभा चुनाव तो सबको साधकर चलना होगा, इसी फार्मूले पर काम शुरू
कटनी। विधानसभा चुनाव में चारों सीटों पर मिली अप्रत्याशित जीत के बाद पहली बार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा आज कटनी में हैं। यूं तो जाहिर तौर पर वे जिला प्रशासन के प्रोजेक्ट पंख कार्यक्रम में मुख्य अतिथि की हैसियत से शिरकत करने आ रहे हैं, लेकिन वीडी के कटनी आने का असल उद्देश्य कुछ और ही है। सूत्र बताते हैं चारों सीटों पर मिली शानदार जीत के बावजूद कटनी जिले को लेकर ऊपर बैठे नेताओं की चिंता बढ़ी हुई है। बाहर से तो सबकुछ ठीकठाक दिखाने की कोशिश की जा रही है लेकिन संगठन के भीतरी हालात ठीक नही हैं। जिला संगठन और विधायकों के बीच जो गतिरोध बना हुआ है उसको लेकर वीडी शर्मा की चिंता बढ़ी हुई है। वीडी समझ रहे हैं कि जल्द से जल्द इस गुत्थी को सुलझाया नही गया तो इसका असर लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा। जबकि वीडी शर्मा संसद में इसी इलाके का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए उनका परेशान होना स्वाभाविक है।
सूत्र बताते हैं कि पार्टी का पूरा फोकस अब लोकसभा चुनाव पर है, ऐसे में संगठन स्तर पर सारी कमजोर कड़ियों को दुरुस्त किया जा रहा है। वीडी शर्मा पिछले संसदीय चुनाव के बाद से ही कटनी की भाजपाई सियासत के केंद्र में हैं। उन्होंने यहां की राजनीतिक परिस्थितियों को अपने हिसाब से साधा है और इस बाद का बराबर ध्यान रखा कि न तो यहां के संगठन की कमान उनके हाथ से छूटने पाए और न ही किसी दूसरे नेता का कद ही इतना बढ़ने पाए कि उससे चुनौती मिलने लगे। पिछली पंचवर्षीय और इस बार के नए मंत्रिमंडल में कटनी के किसी विधायक को जगह न मिलने के पीछे इसी कला कौशल को अहम वजह माना जा रहा है। संतुलन की सियासत के बहाने यह बात बराबर दिल्ली में स्थापित कर दी गई है कि जब इस संसदीय क्षेत्र का सांसद ही प्रदेश में पार्टी का मुखिया हो तब कटनी के किसी दूसरे नेता को बड़ा ओहदा देने की जरूरत ही क्या है। प्रदेश अध्यक्ष तो स्वयं ही इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। सूत्र कहते हैं कि कटनी की सियासत में खुदकी पकड़ के लिए ही वीडी ने रामरतन पायल की जगह विद्यार्थी परिषद के जमाने के अपने सालों पुराने मित्र दीपक सोनी टण्डन को जिलाध्यक्ष की कुर्सी सौंप दी, जबकि टण्डन इससे पहले महज पायल की बॉडी में उपाध्यक्ष बनाकर ही संगठन में लाये गए थे। इससे पहले वे संघ में काम कर रहे थे लेकिन भाजपा में उन्होंने काम नही किया था। सूत्र बताते हैं कि संगठन की कमान सौंपने की पटकथा के मुताबिक ही उन्हें आरएसएस के दायित्व से मुक्त कर भाजपा में लाया गया था।
चुनाव के दौरान खदबदाहट
सूत्र बताते हैं कि संगठन को चलाने के तौर तरीकों की वजह से जिले के विधायकों के साथ टण्डन की पटरी नही बैठी। चूंकि वे वीडी के खास हैं इसलिये विधायक खुले तौर पर तो उन्हें चुनौती देने का साहस नही जुटा पा रहे किन्तु विधानसभा चुनाव के पहले एक अधिकारी के दफ्तर में जो कुछ हुआ, उसके बाद साफ तौर पर यह सन्देश निकलकर बाहर आ गया कि विधायकों के साथ संगठन और खासकर जिलाध्यक्ष का तालमेल ठीक नही है। चुनाव के दरम्यान इन बातों को किसी भी ओर से कोई हवा नही दी गई, लेकिन संगठन की भूमिका को लेकर विधायक खुश नही हैं। खुलकर तो नही किन्तु इशारों में वे इस बात को सामने ला चुके हैं कि विधानसभा चुनाव में मिली जीत विधायकों की अपनी मेहनत का नतीजा है, संगठन तो कहीं था ही नही। चुनाव के बाद विधायकों ने अपनी नाराजगी सार्वजनिक करते हुए पिछले दिनों हुई जिला कार्यसमिति की बैठक से न केवल दूरी बनाई बल्कि चुनाव में मिली जीत के लिए संगठन द्वारा रखे गए अपने अभिनंदन कार्यक्रम में भी नही पहुंचे।
सूत्र बताते हैं कि वीडी की असल चिंता की वजह यही है। लोकसभा चुनाव मुहाने पर खड़े हैं और संसदीय क्षेत्र उनका खुदका है। पार्टी खजुराहो से ही उन्हें दोबारा मैदान में उतार सकती है। ऐसी स्थिति में यदि जिला संगठन और विधायकों के बीच तालमेल सही नही रहा तो इसका नुकसान खुद वीडी शर्मा को हो सकता है। इसके अलावा उनकी पसंद के जिलाध्यक्ष की यदि ऊपर माइनस मार्किंग हुई तो यह स्थिति भी वीडी के लिए चिंताजनक रहेगी। सम्भवतः इन्ही तमाम स्थितियों को लेकर बीच का रास्ता निकालने या संगठन और विधायकों के बीच के गतिरोध को दूर करने वीडी कटनी आये हैं।