कोलकाता से ट्रेन में लाकर पहली प्रतिमा अपने बाड़े में स्थापित की थी लल्लू भैया ने, जानिए कटनी के ऐतिहासिक दुर्गोत्सव की शुरुआत को

कटनी। सर्वशक्ति जगत जननी मां की उपासना आराधना के महापर्व नवरात्रि में कटनी शहर दुल्हन की तरह सजा नज़र आ रहा है। शहर में मां दुर्गा की भव्य प्रतिमाओं और लाइट डेकोरेशन की चकाचौंध के साथ दुर्गा समितियां पूजा पंडाल को अंतिम रूप देने लगी हुई हैं।
ऐसे में एक बात हर इक शक़्स के जेहन में आती है की आखिर कटनी में पहली प्रतिमा कब और कहा स्थापित की गई..।
तो नाम आता है दशहरे के जनक लल्लू भैया का इस शख्सियत का ये किरदार आज भी जिंदा हैं। वो दौर आजादी के पूर्व का था तकरीबन 100 साल पूर्व कटनी में लालटेन के उजाले में साधारण सी रामलीला हुआ करती थी।
1937 के दशक में 5 अक्टूबर दिन गुरूवार को श्री रामदास जी अग्रवाल लल्लू भैया कोलकाता से माँ दुर्गा की प्रतिमा रेलगाड़ी से कटनी लेकर पहुँचे थे। और बड़े उत्साह के साथ अपने मित्रों के साथ अल्फ्ट गंज के अग्रवाल बाड़ा में नवरात्री की बैठकी के दिन पार्थिव माँ दुर्गा स्थापना कराई।
कटनी जिले ही नही वरन मध्यप्रदेश के सर्वमान्य नेता पूर्व विधायक श्री रामदास अग्रवाल लल्लू भैया के नाती मयंक अग्रवाल बताते है उस समय इधर रहवासी बस्ती कम थी जंगल का इलाका था यहाँ बगल में तालाव था जहाँ आज रामलीला होता है वहाँ बड़ा सा मैदान था ऐसे में यहाँ राम लीला व दूसरी तरफ माँ दुर्गा का पंडाल सजाया गया था। दद्दा और उनकी मित्र मंडली ने नो दिनों तक माँ की झाँकी सजाई और दिन रात यहाँ भगते, भजन पूजन का दौर चलता रहा। उन दिनों माँ के पार्थिव स्वरूप के दर्शनों को शहर के अलावा दूर गांव बल्कि जबलपुर से भी लोग दर्शनों के लिए पहुँचे थे।
और फिर 14 अक्टूबर दिन गुरुवार को विजयादशमी के दिन दोपहर में जब रामलीला में राम जी ने रावण का बध किया उसके बाद माता की मूर्ति का वैदिक मंत्रोच्चार से पूजन कर विर्सजन किया गया और बड़े जुलूस के रूप ने गाड़ी में माता की मूर्ति को बैठा कर अग्रवाल बाड़ा से इस कटनी शहर के प्रमुख मार्गों में घुमाया गया था माता के विर्सजन का जुलूस निकला था उसी जुलूस को कटनी के दशहरे के रूप दिया गया। उसके बाद से आज भी यहाँ माँ दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना की जाती है दद्दा के बाद श्री विजय अग्रवाल, श्री नर्मदा प्रसाद अग्रवाल, उषा अग्रवाल, परंपरा को आगे बढ़ाते रहे लगभग 98 से लल्लू भैया के नाती मयंक अग्रवाल, और अब संकेत अग्रवाल यहाँ माता की भव्य प्रतिमा की स्थापना करते आ रहे है। इस दुर्ग पूजा में पूरा अग्रवाल परिवार एक जुट होकर अपने दादा की याद में यह ऎतिहासिक पर्व मानता आ रहा हैं। जिसकी परंपरा आज भी जारी है।


