कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी ने दिया महत्वपूर्ण फैसला. महानद्दा तालाब की भूमि पर हुए निर्माणों से संबंधित अनुमतियों की जांच करें नगर निगम आयुक्त.

बिना अनुमति के हुए निर्माणों को हटाने के निर्देश.
तालाब की भूमि पर कैसे दर्ज हुये निजी पक्षकारों के नाम.
एसडीएम गोरखपुर को जांच कर दें प्रतिवेदन.
जबलपुर – कलेक्टर डॉ इलैयाराजा टी ने महानद्दा की खसरा नम्बर 92 की तालाब और पानी के नाम दर्ज भूमि पर हुये निर्माणों से सबंधित अनुमतियों की जांच करने तथा बिना अनुमति हुये निर्माणों को हटाकर इस भूमि को मूल स्वरूप में वापस लाने के आदेश नगर निगम आयुक्त को दिये हैं। कलेक्टर ने इसी फैसले में एसडीएम गोरखपुर को भी खसरा नम्बर 92 की भूमि पर किस प्रकार निजी भूमि स्वामियों के नाम दर्ज हुये इसकी विस्तृत जांच और परीक्षण करने के आदेश दिये हैं। कलेक्टर ने ये आदेश महानद्दा तालाब पर हुये अतिक्रमणों को लेकर कलेक्टर न्यायालय में चल रहे प्रकरण में कल अपने फैसले में दिये हैं। कलेक्टर न्यायालय में यह प्रकरण डॉ पी जी नाजपाण्डे एवं डी आर लखेरा द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
कलेक्टर ने दस्तावेजों के परीक्षण तथा राजस्व अधिकारियों एवं नगर निगम के प्रतिवेदन के आधार पर दिये अपने फैसले में कहा है कि महानद्दा की खसरा नम्बर 92 की 14.49 एकड़ भूमि वर्ष 1909-10 में किसी व्यक्ति विशेष के नाम दर्ज नही है तथा कैफियत कॉलम में तालाब, कॉलम नम्बर तीन में पानी और खसरे के कॉलम नम्बर बारह में तालाब लिखा हुआ है। फिर भी 1954-55 में तालाब की इस भूमि का बटांक होकर खसरा नम्बर 92/1, 92/2, 92/3, 92/4 एवं 92/5 बना दिये गये तथा निजी पक्षकारों के नाम दर्ज कर दिये गये। जबकि मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 के नियमों एवं प्रावधानों के मुताबिक कृषि प्रयोजन के अलावा पानी एवं तालाब मद में दर्ज भूमि का बटांक किया जाना पूर्णत: निषेधित है।
कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा ने फैसले में तालाब को एक जीवंत ईकाई बताते हुये कहा कि उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों ने भी अपने विभिन्न निर्णयों में नदियों एवं जलीय इकाईयों को जीवंत ईकाई माना है। कलेक्टर ने कहा कि जो ईकाई जीवंत है एवं अखण्ड है, उसे खण्डों में विभाजित नहीं किया जा सकता। खण्डों में विभक्त करने से जीवंत ईकाई महानद्दा तालाब एवं उसका ईकोसिस्टम नष्ट होगा और कालांतर में बटांक जारी रहने से प्रत्येक भूमि स्वामी अपने हिस्से तक पहुंचने के लिए मार्ग की मांग करेगा जिससे तालाब का मूल स्वरूप नष्ट होगा।
कलेक्टर ने अपने फैसले में वर्ष 1954-55 में खसरा नंबर 92 में हुए बटांक और निजी पक्षकारों के नाम दर्ज होने को प्रथम दृष्टया यह माना है कि इससे आम लोगों के निस्तार में बाधा उत्पन्न हुई है। उन्होंने कहा कि महानद्दा तालाब से सटकर भू-स्वामियों एवं बटांकधारियों द्वारा बनाई गई संरचनाएं मकान एवं आवास से भी यह प्रमाणित हो रहा है।
कलेक्टर ने फैसले में अनुविभागीय राजस्व अधिकारी के प्रतिवेदन में उल्लेखित खसरा नम्बर 92/1, 92/2, 92/3, 92/4, एवं 92/5 के जल भराव से मुक्त क्षेत्र पर बने मकानों एवं अन्य निर्मित संरचनाओं के निर्माण संबधि अनुमतियों की जांच करने के के आदेश नगर निगम आयुक्त को देते हुए कहा कि इस भूमि में पानी और तालाब की प्रविष्टि होने के बावजूद यहां हुये निर्माण के संबंध में अनुमतियों की जांच की जाकर यदि विधिवत अनुमतियों के बिना निर्माण पाया जाता है तो उन्हें तत्काल हटाकर भूमि को मूल स्वरूप में परिवर्तित किया जाये।
इसके साथ ही कलेक्टर डॉ. इलैयाराजा टी ने अपने फैसले मे अनुविभागीय राजस्व अधिकारी गोरखपुर को आदेशित किया है कि महानद्दा तालाब की खसरा नम्बर 92 की भूमि पर किस प्रकार निजी भूमि स्वामियों के नाम दर्ज हुये इसकी जांच एवं परीक्षण कर प्रतिवेदन शीघ्र कलेक्टर न्यायालय में प्रस्तुत किया जाये। उन्होंने प्रकरण में हितवद्ध पक्षकारों की विधिवत सुनवाई करने के निर्देश भी अनुविभागीय राजस्व अधिकारी को दिये। कलेक्टर ने आदेश में अनुविभागीय राजस्व अधिकारी को परीक्षण के दौरान निजी व हितबद्ध पक्षकारों के वैध स्वामित्व प्रमाणित नहीं पाये जाने पर मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 यथा संशोधित 2018 की धारा 115(1) के तहत 5 वर्ष से अधिक से त्रुटिपूर्ण राजस्व अभिलेख की दुरूस्ती हेतु कार्यवाही प्रारंभ करने की अनुमति भी प्रदान की है।