कटनीमध्य प्रदेश

अल्फर्टगंज में कभी था घना जंगल, यहीं विराजीं हैं बड़ी खेर माता, भू-प्रकट प्रतिमूर्ति के दर्शन करने दूर-दूर से आते है भक्त

कटनी, यशभारत। शहर में ऐसे अनेक देवी दिवाले हैं, जो किन्ही न किन्ही खास वजह से प्रसिद्ध है। नवरात्र चल रहा है। ऐसे में इन देवी मंदिरों में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है। यशभारत हर रोज अपने पाठकों को शहर के ख्याति प्राप्त मंदिर के इतिहास से परिचित करा रहा है। आज हम आपको अल्फर्टगंज में विराजी बड़ी खेर माता का इतिहास से अवगत करा रहे हैं। बुजुर्ग बताते है, पहले यह रहवासी बस्तीं नहीं थी। घना जंगल था। बाबा बैरागी यहां झोपड़ी बनाकर निवास करते थे। ऐसा कहा जाता है कि खेरमाता गांव के मुहाने पर विराजित होती हैं। उस जमाने में जब कटनी कस्बा हुआ करता था और जंगल में लोग खेर की पूजा करने यहां आते थे। बाबा गंगाराम बताते है कि ये खेरो की खेर खेरमाता हैं। पूर्व विधायक लल्लू भैया के चाचा वल्लभ दास अग्रवाल ने बड़ी खेरमाता के स्थान पर मढिय़ा बनवाई थी, इसके बाद शहर अन्य लोगों ने मंदिर बनवाया और समय-समय पर माता के मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा। बड़ी खेरमाता के पुजारी राजीव तिवारी बताते है कि हमारे बब्बा जगदीश तिवारी चंदिया से यहां आए थे और माता की सेवा में लीन हो गए। उनके बाद पिता राजेंद्र प्रसाद और तीसरी पीढ़ी के रूप में सेवारत हैं। 1973 के समय सेठ राम साधो राम व द्वारका प्रसाद जायसवाल ने मंदिर जीर्णोद्धार कराया। मंदिर में विराजी माता को लोग बड़ी खेर माता के नाम से जानते हैं। मंदिर में खेर माता की भू-प्रकट प्रतिमूति शिला मौजूद है, इसके अलावा अन्य मूर्ति भी विराजमान है। यहां आंवले का एक बड़ा झाड़ हुआ करता था, जो बाद में उखड़ गया, उसके बाद बुजर्गों ने दूसरा आंवले का पौधा लगाया। पुराने नीम की छावं तले मंदिर प्रांगण के अंदर देवो के देवो महादेव भी नंदी के साथ विराजमान है।
स्वप्न में बोली अध्ययन क्यों बन्द है…
अल्फर्टगंज, मघई मंदिर के पास ही विराजित शारदा माता का मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की मानें तो माता की कृपा से बाबा गंगाराम की मंत्र शक्ति से असाध्य रोग ठीक हो जाते है। मुख्य पंडा बाबा गंगाराम कनोजिया बताते है कि जब में 8 साल का था, तब मुझे माता निकली थी, फिर घर के लोगों ने पहाड़ों वाली माता से मन्नत मांगी और धीरे-धीरे में ठीक हो गया। ऐसे में मेरा स्कूल छूट गया। परीक्षा नजदीक थी, यही चिंता मुझे रहती थी। एक रोज मेरे स्वप्न में माता आई और बोली परीक्षा देने जाना है। मैने उनसे कहा जब पढ़ा नहीं तो क्या परीक्षा दूंगा, फिर वो बोली तुम्हरा काम परीक्षा देना है, परिणाम की चिंता मत कर और मैने परीक्षा दी और पास हो गया, इसके बाद से ही मेरी आस्था बढ़ गई और पहाड़ों वाली माता के दर्शन के लिए पिता के साथ मैहर गया, वहां मैने उनसे कहा, इतनी दूर और इतनी ऊपर दर्शन के रोज-रोज कैसे आऊंगा। आप तो मेरे साथ मेरे घर चलो, उसके बाद जब घर लौटा तो एक धुन सवार हो गई। माता का मंदिर बनवाना है। धीरे धीरे उम्र बढ़ी और सन 71 के लगभग सुभाष जैन के यहां कलकत्ता के कारीगर मूर्ति निर्माण कर रहे थे। उन्हीं से माता शारदा की मूर्ति बनवाई और किराए की इस जगह पर माता की स्थापना कराई, फिर धीरे-धीरे माता की कृपा से जमीन खरीदी और मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया। माता की कृपा से यहां पीलिया, लकवा, दांत के कीड़े एवं अन्य असाध्य रोगों से पीडि़त रोगियों को लाभ हुआ और लोगों की आस्था माता के प्रति बढ़ती गई। यहां हर अमावस्या, पूर्णिमा व नवरात्री में सुबह शाम महाआरती भोग भंडारा आयोजित होता है।
मंदिर में चंदा नही होता…
मंदिर में चंदा नही होता, जो भी दान आता है, उसी से मंदिर के सभी कार्य उम्दा तरीके से हो जाता हैं। यहां माता शारदा के साथ काल भैरव बाबा, मछंदर नाथ जी विराजमान है, उन्हीं की कृपा से यहां आने वाले श्रद्धालुओं को लाभ होता हैं। पुजारी गंगाराम कनौजिया ने कहा कि अब मेरी उम्र हो चली है। सेवा का काम मेरे बड़े बेटे कंधी और बलराम ही देखते हैं।Screenshot 20241006 134321 WhatsApp2 Screenshot 20241006 134306 WhatsApp2 Screenshot 20241006 134302 WhatsApp2 Screenshot 20241006 134317 WhatsApp2 Screenshot 20241006 134311 WhatsApp2

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