यश भारत विशेष : दीपावली पर्व पर जगमगाएंगे कान्हीवाड़ा के दीये : 40 अधिक परिवार के लोग बनाते हैं दीये,एक माह पूर्व से शुरू हो जाता है कार्य

सिवनी यश भारत:-जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी दूर कान्हीवाड़ा के दीये दीपोत्सव में घरों-घर जगमगाते हैं।जिले के विभिन्न स्थानों में यहां के दीयों की काफी मांग रहती है।इस क्षेत्र से चार लाख से अधिक दीयों का विक्रय दीपोत्सव में होता है।यहां आज भी माटीकला कुम्हार समाज के लिए रोजगार का साधन बनी हुई है।यहां दीपोत्सव के एक माह पूर्व से दीये बनाने का कार्य शुरू हो जाता है।
40 से अधिक परिवार के लोग बनाते है दीये:-
कान्हीवाड़ा में 150 से अधिक कुम्हार परिवार हैं।इनमें से चालीस से अधिक कुम्हार परिवार के लोग आज भी माटीकला से जुड़े हुए हैं।साल भर इनके द्वारा मिट्टी से बनाए गए मटके, सिगड़ी, हांडी, गुल्लक, कलश आदि की मांग रहती है।दीपोत्सव में दीये की मांग अधिक होने के कारण पूरे परिवार के लोग इन्हे बनाने में जुटे रहते हैं।परिवार का हर सदस्य किसी ना किसी रूप में दीये और अन्य सामग्रियों के निर्माण में अपना योगदान देता है।
दशकों से कान्हीवाड़ा के दीयों कि मांग:-
कान्हीवाड़ा निवासी सावित्री प्रजापित ने बताया है कि दशकों से कान्हीवाड़ा के दीये और अन्य सामग्रियों की मांग रही है लेकिन कारोना महामारी के बाद से दीपोत्सव में दीयों की मांग काफी बढ़ गई है।पहले जहां कान्हीवाड़ा क्षेत्र से 50 से 80 हजार दीये की मांग होती थी अब चार लाख से अधिक दीये यहां से बनकर सिवनी मुख्यालय समेत जिले के विभिन्न गांवों में जा रहे है।सावित्री बाई के अनुसार पहले लोग दीपोत्सव में 15 से 20 दीये ही लेते थे लेकिन कोराेना के बाद से वहीं लोग 50 से एक सौ दीये खरीदकर अपने घरों को रोशन कर रहे हैं।नीलेश प्रजापति से बताया है कि मांग बढ़ने के साथ कुम्हारों की आय में भी वृद्धि हुई है।
इलेक्ट्रिक चाक का उपयोग:-
कुम्हारों ने बताया है कि आज के दौर में कम समय में अधिक काम करना बेहद आवश्यक है।इसी के चलते उन्होने हाथ से घुमाकर चलने वाले सैलाचाक के स्थान पर इलेक्ट्रिक चाक (मशीन) ली है।होरी लाल प्रजापित ने बताया है कि शासन से योजना के तहत कुम्हारों का इस मशीन पर अनुदान मिलना है लेकिन उन्हे योजना का लाभ नहीं मिला है।अपने खर्च पर उन्होंने मशीन खरीदा है।इससे कम समय और कम मेहनत में अधिक काम हो रहा है।
बुजुर्गो ने संभाल रखी है कला;-
कान्हीवाड़ा के 60 वर्षीय शिवमूर्ति प्रजापति,60 वर्षीय बलराम प्रजापति,सावित्री प्रजापति, होरी लाल प्रजापति,राधेश्याम प्रजापति, नीलेश प्रजापति सहित अन्य ने बताया कि कान्हीवाड़ा की माटीकला को बुजुर्गाें ने संभाल रखा है। चार से पांच पीढ़ी से क्षेत्र में माटीकला जीवित है लेकिन अब आने वाली पीढ़ी इस कला को आगे में रुचि नहीं दिखा रही है। कुम्हारों ने बताया है कि उन्हें शासन की योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। यदि सरकार से कुम्हारों को योजनाओं का लाभ मिले तो आने वाली पीढ़ी भी माटीकला को और आगे बढ़ा सकती है।