यश भारत खास : राजा हृदयशाह व निजाम शाह ने स्थापित की थी माता विंध्यवासिनी : देती हैं संतान ; 1895 में बड़ी माता हुई स्थापित : कोर्ट कचहरी के मामले में देती है विजय
मंडलाl शहर के बीचों बीच सराफा बाजार में स्थापित है माता विंध्यवासिनी का भव्य मंदिर। कहा जाता है राजा हृदयशाह व निजाम शाह के द्वारा यहां माता की प्राण प्रतिष्ठा कराई गई। यहां बांस का जंगल था, जहां से माता प्रगट हुई थी। यहां पर बावली थी, जिसका पानी राजा पीते थे। राजा ने यह बावली इसलिए बनवाई कि शस्त्रु इसमें जहर या दूसरी चींजे न मिला सके। एक समय राजा के पनिहार ने यहां से पानी लाना भूल गया, तब राजा स्वयं बावली के पास आए उन्होंने देखा बांस के झुरमुट के बीच माता की दिव्यमान प्रतिमा स्थापित है। राजा ने तुरंत राज्य के पुजारियों को बुलवाकर माता की प्राण प्रतिष्ठा की। तभी से राजा के राज्य का विस्तार और अधिक बड़ा हो गया।
सर्प दंश होता है ठीक
माता विंध्यवासिनी में आज भी लोगों की मुराद पूरी होती है। क्वांर के माह यहां बलि चढ़ाई जाती है। नवरात्रि को मिठाई व सात्विक भोग लगाए जाते है। राजा के द्वारा माता की पूजा का भार बुद्धू लाल बरमैया के परिवार को दिया गया। जिसकी संतानें आज भी माता की पूजा अर्चना में लीन है। मंदिर के पंडा ने बताया ऐसे अनेकों लोग है जिन्हें सर्प ने काटा मरणासन स्थिति में यहां लाया गया। वदना के बाद वे ठीक हुए। जिनकी संताने नहीं थी उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। सराफा में ही ऐसे लोग है जो माता की सेवा से निरंतर प्रगति पर है। पूर्व में माता की मढिय़ा के रूप में मंदिर था। समय के साथ साथ मंदिर को भव्यता दी गई और अनेकों माताओं की प्रतिमा स्थापित की गई है। यह शहर के बड़े दिवाले के रूप में जाना जाता है।
पिंडी के रूप में है स्थापित
महाराजपुर संगम घाट में स्थापित बूढ़ी माई माता के मंदिर के पास ही बड़ी माता का स्थान है। जिन्हें मरहाई माता कहा जाता है। माता पिण्डी रूप में स्थापित है। जिनका चमत्कार भक्त आज भी बताते है। माता के सेवक ने बताया कि बूढ़ी माई माता के आसपास सुनबहरी माता, बड़ी माता, बाहरवासिनी माता, खैरमाई, शीतला माता विराजमान है। उसमें बड़ी माता भी लोगों की मन्नत पूर्ण करती है। माता को बूढ़ी माता के स्थान से अलग रखा गया है। इन्हें 1895 में ददनू नामक पंडा ने रामनगर खरेहनी से लाकर यहां स्थापित किया।
ये ग्राम माता कहलाती है। बड़ी माता के पास सूनी गोद भरती है। चोरी, कोट, कचहरी के मामले शीघ्र निपटते है। जिसके लिए मन्नत जरूरी होती है। चैत्र नवरात्र में यहां बलि का विधान है। शारदेय नवरात्र में मीठा अठवाई, हलुआ का भोग लगता है। 9 दिन यहां नारियल नहीं फोड़े जाते। नवरात्र के चलते यहां लोगों ने अपनी मन्नत के अनुरूप जवारे खप्पर स्थापित कराए है। जिनकी मन्नत पूर्ण हुई है वे दोनों पहर माता के दर्शन को आते है।