कागजों में मजबूत योजना, जमीन पर कमजोर क्रियान्वयन भाजपा में बढ़ रही गुटबाजी, पार्टी के कार्यक्रमों से दूरी बना रहे कार्यकर्ता
जबलपुर यश भारत। कार्यकर्ता और कार्यालय को महत्त्व देने वाली भारतीय जनता पार्टी में इस समय भीतर खाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कार्यालय में काम तो हो रहा है लेकिन कुछ एक मामलो को छोड़ दे तो कार्यकर्ता कार्यालय में होने वाले निर्णय को जमीनी स्तर पर उतारने में कोई खास रुचि नहीं ले रहे हैं। विधानसभा चुनावों के ठीक पहले पार्टी में गुटबाजी स्पष्ट रूप से देखने को मिल रही है। राजनीति में गुटबाजी कोई नई बात नहीं है और भाजपा भी इससे कभी अछूती नहीं रही । लेकिन इस बार खुद को अनुशासन धुरी बताने वाली पार्टी ही अनुशासन हीन नेताओं से परेशान दिख रही है। भाजपा ने दिल्ली से लेकर भोपाल होते हुए जिला स्तर तक का एक मैकेनिज्म तैयार कर लिया है। जहां आगामी कार्यक्रमों को लेकर रणनीतियां तैयार होती हैं और उसे कार्यकर्ताओं तक पहुंचाया जाता है और फिर कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी होती है कि वह पार्टी की रीति और नीति आम जनता तक पहुंचाएं। लेकिन इस बार बात कुछ अलग दिख रही है जिसको लेकर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व में पशोपेश में है।
लंबे समय तक सत्ता का सुख भोगने के चलते पार्टी में अधिकतर नेता सत्ता मुखी हो गए हैं। वे चेहरों की राजनीति के एक तरह से आदि होते जा रहे हैं। ऐसे में संघर्ष का रास्ता अब कार्यकर्ताओं के लिए भी कठिन डगर बनती जा रही है। खास तौर पर सत्ता मुखी नेता पार्टी लाइन से इतर अपनी एक अलग लाइन खींचने में लगे हुए हैं । जिसमें उनके समर्थक एक पैरलर व्यवस्था तैयार कर रहे हैं। जिसके चलते भाजपा में लगातार अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है। बंद कमरों में बैठकों के द्वारान होने वाले वाद-विवाद अब मंचों पर और सड़कों पर भी दिखने लगे हैं जिसकी बानगी पिछले दिनों शहर की राजनीति में देखने को मिली।
इस समय भाजपा में तीन व्यवस्थाएं काम कर रही हैं। पहली व्यवस्था है नगर संगठन की जिसमें अध्यक्ष तो नए हैं लेकिन कार्यकारिणी पुरानी है । ऐसे में जहां तहां टकराव की स्थिति बनी हुई है। दूसरी व्यवस्था है जनप्रतिनिधियों की जो नगर संगठन को दरकिनार करके सीधे भोपाल और दिल्ली से संवाद स्थापित करने में विश्वास रखते हैं। इसके अलावा तीसरा नाम है उन नेताओं का जो आगामी विधानसभा चुनाव में मजबूती से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। ऐसे में अपना नाम आगे बढ़ाने के लिए वह हर स्तर पर राजनीतिक दांवपेच चल रहे हैं। ऐसा अन्य दलों में भी होता है लेकिन यह व्यवस्था अन्य दलों में सामान्य मानी जाती है। लेकिन भाजपा में इस तरह की व्यवस्था बहुत लंबे समय के बाद देखने को मिल रही है। ऐसे में कार्यकर्ता भी बटा हुआ है और कार्यालय में तैयार होने वाली योजनाएं अब कागजों पर सीमित रह गई है।