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Medical post-mortem of 3 thousand: मेडिकल में 1 साल में 3 हजार शवों का पोस्टमार्टम, गर्मी में शवों की संख्या में बढ़ोत्तरी, ठंड में होती कम

एक्सीडेंट के सबसे ज्यादा केस पहंुचते हैं

 

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जबलपुर, यशभारत। नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल अस्पताल पर एक साल में 3 हजार शवों का पीएम किया जाता है। एक माह की बात करें तो करीब 300 शवों को पोस्टमार्टम किया जाता है। सबसे खास बात ये है कि गर्मी के मौसम में शवों की संख्या बढ़ जाती है। पोस्टमार्टम डाॅक्टरों की माने तो गर्मी के मौसम में रोजाना 17 से 20 शवों का पीएम किया जाता है परंतु ठंड के मौसम में इसकी संख्या 7 पहंुचती। डाॅक्टरों का कहना है कि बरसात के मौसम में सबसे ज्यादा केस सर्प काटने के पहुंचते हैं।

सड़क हादसे में बच्ची महिला और बाइक सवार की गई जान 3 scaled

72 घंटे में रिपोर्ट देने का प्रावधान
डाॅक्टर प्रशांत अवस्थी ने बताया कि एक शव के पीएम करने में मुश्किल से आधा घंटा या उससे कम लगता है और 72 घंटे में एक केस की रिपोर्ट संबंधित पुलिस को देना पड़ती है।

सुबह 10 से 5 बजे तक पीएम, एसडीम के आदेश पर कभी भी
डाॅक्टर प्रशांत अवस्थी ने बताया कि शव का पोस्टमार्टम करने का नियम तो सुबह 10 से शाम 5 बजे तक का है परंतु एसडीएम के आदेश पर कभी भी पीएम करने का नियम है। कभी-कभी इमरजेंसी केस आते हैं तो रात 8 बजे रूककर भी पूरी टीम पीएम करती है।

अकाल मृत्यु के शवों का पीएम किया जाता है
डाॅक्टरों का कहना है कि अकाल मृत्यु होने पर ही शव का पीएम किया जाता है। जबलपुर के 26 थानों से पुलिस शव लेकर पहंुचती है जिसमें अधिकांश केस सड़क दुर्घटना, फांसी और सर्प काटने के होते हैं। डाॅक्टरों का कहना है कि पीएम करने में उस वक्त थोड़ी परेशानी होती है जब शव ज्यादा पुराना हो जाता है।

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क्या होता है पीएम
मेडिकल अस्पताल पोस्टमार्टम स्पेशलिटी डाॅक्टर प्रशांत अवस्थी बताते हैं कि शव परीक्षण (जिसे पोस्टमॉर्टम परीक्षा या नेक्रोप्सी के रूप में भी जाना जाता है) एक मृत व्यक्ति के शरीर की जांच है और मुख्य रूप से मृत्यु का कारण निर्धारित करने, व्यक्ति को होने वाली बीमारी की स्थिति की पहचान करने या उसकी विशेषता निर्धारित करने या यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि कोई विशेष चिकित्सा या शल्य चिकित्सा उपचार प्रभावी रहा है या नहीं। शव परीक्षण पैथोलॉजिस्ट (चिकित्सा डॉक्टर जिन्होंने शरीर के तरल पदार्थों और ऊतकों की जांच करके रोगों के निदान में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया है) द्वारा किया जाता है। शैक्षणिक संस्थानों में, कभी-कभी शिक्षण और अनुसंधान उद्देश्यों के लिए भी शव परीक्षण का अनुरोध किया जाता है। फोरेंसिक शव परीक्षण के कानूनी निहितार्थ हैं और यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि मृत्यु एक दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या या एक प्राकृतिक घटना थी।

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