छोटे छोटे क्लाड ईथरली

छोटे छोटे क्लाड ईथरली
डोरीलाल ने भक्त से पूछा क्लाड ईथरली का नाम सुना है। ये कौन है ? उसका स्वाभाविक प्रश्न था। मैंने कहा ये मुक्तिबोध की कहानी का शीर्षक है। ये मुक्तिबोध कौन है ? उसका दूसरा स्वाभाविक प्रश्न था। डोरीलाल ने कहा कि मुक्तिबोध एक कहानीकार थे। और क्लाड ईथरली वो अमेरिकन आदमी था जिसने हिरोशिमा पर अणु बम गिराया था। जब उसे पता चला कि उसके बम गिराने से कितने लोग मारे गये और कैसा विनाश हुआ है तो वो अपराध बोध से पागल हो गया और उसने आत्महत्या कर ली। Óहमें कोई फरक नहीं पड़ता हम तो भाले की नोक पर टांग कर घूमते हैं। ये कौन मुक्तिबोध है उसको हम नहीं जानते। बल्कि हम किसी लिखने पढऩे वाले को नहीं जानते। हम किसी को नहीं पढ़ते और किसी को कुछ नहीं समझते। पढऩा लिखना और भाईचारा निभाना हमें मना है। हमें साहित्य और बुद्धि से घृणा है। क्योंकि हमारे यहां कोई साहित्यकार नहीं है। कोई बुद्धिजीवी नहीं है। इसीलिए हम लेखकों बुद्धिजीवियों का मजाक उड़ाते हैं। एक बात बताओ तुमने क्लाड ईथरली का नाम क्यां लिया ? वो तो मर गया।
डोरीलाल ने बात को समाप्त किया। इनके मुंह लगे और अभी तक पिटे नहीं यही बहुत है। हुआ ये कि डोरीलाल ने अभी बहुत से बुलडोजर चालकों को इंटरव्यू पढ़े। भारत में आजकल गरीबों के घर बुलडोजर चलाने के लिए भारी उत्साह है। बुलडोजर के पास दिमाग नहीं है। पर चलाने वाले के पास तो है। तो देश के अलग अलग शहरों के बुलडोजर ड्राइवरों के पास पत्रकार पंहुच गए। वो हिन्दू भी थे। मुसलमान भी थे। उनसे पूछा गया कि बुलडोजर चलाकर लोगों के घर गिराने पर तुम्हें कैसा लगता है ?
ड्राइवरों ने ये बताया कि वो रात भर सो नहीं पाते। औरतों, बच्चों की चीखें उन्हें सोने नहीं देतीं। उन्हें लगता है कि दस – पन्द्रह हजार रूपयों की इस कच्ची नौकरी के लिए वो कितने लोगों की हाय ले रहे हैं जबकि वो नहीं चाहते कि किसी भी गरीब का घर गिराया जाए। जिन घरों को वो लोग गिराते हैं वैसे ही मकानों में वे खुद रहते हैं। एक ने बताया कि एक घर को गिराने जब वो पंहुचा तो वहां बच्चे पढ़ रहे थे खाना बन रहा था उन लोगों को घर का सामान निकालने का मौका नहीं मिला और 15 मिनिट में उनका घर गिरा दिया गया।
वो गरीब पूछते हैं कि अपना पेट काटकर हमने ये झोपड़ी बनाई है। आखिर हम कहीं तो रहेंगे ? हमारा जुर्म क्या है ? हमारे बुलडोजर के आगे पीछे औरतें छाती पीट पीट कर रोती हैं। बच्चे सिसकते हैं ? बुजुर्ग आंसू भरी आंखों से हमें देखते हैं ? उनकी आंखें हमसे पूछती हैं क्या हम इसी देश के वासी नहीं हैं ? हमारे साथ पुलिस होती है वो इन लोगों की पिटाई करती है। जब ये सब होता है तो इन गरीबों के साथ कोई नहीं होता।
घर गिराने का आदेश देने वाले अधिकारी दूर खड़े रहते हैं। सारी गालियां हम खाते हैं। सारा पाप हम झेलते हैं। हमें बताया जाता है कि ये घर अवैध हैं। ये घर अपराधी का है। पर सजा तो अपराधी के घर वालों और आस पड़ोस के लोगों को दी जा रही है। आदमी की जगह घर को सजा क्यों दी जा रही है। हमसे ऐसे घर गिरवाये गये जिनको गिराने से कोर्ट ने मना किया था। हमसे पूजा स्थल गिरवाये जाते हैं। ऐसा तो अंग्रेजों के जमाने में भी नहीं होता था। लोग चीखते रहते हैं, पिटते रहते हैं और उनकी कोई सुनवाई नहीं होती। हमें समझ नहीं आता कि हम जैसे इन सब गरीबों के घर गिराकर हम किस नर्क में जाएंगे ? कितनी बद्दुआएं मिलेंगी।
अच्छे पक्के घरों और पॉश कालोनी में रहने वालों में ही नहीं बहुत से छोटे मोटे गरीब लोगों में भी खुशी की लहर दौड़ जाती है जब उन्हें पता चलता है कि ÓउनÓ लोगों के घर गिरा दिए गए हैं। जैसे कुत्ता हड्डी चबाते चबाते अपने ही खून के स्वाद से खुश हो जाता है। हम अपने ही देशवासियों के दुख से खुशी पा लेते हैं। इसीलिए ऐसी सरकारों के मुखिया हीरो बन जाते हैं। श्रेय लेने की होड़ मच जाती है। हिन्दु कट्टर हिन्दू हो जाता है। मुस्लिम अधिक मुस्लिम हो जाता है। ऐसा तीखा बंटवारा दिमागों का कर दिया गया है कि ये फसल पचासों साल तक काटी जाती रहेगी। इसलिए 50 साल तक सत्ता में रहने का दावा है। सही है। यही योजना है।
जिन यहूदियों को जर्मनी में केवल यहूदी होने के कारण अकथनीय यातनाएं दी गईं। लाखों यहूदियों को गैस चैंबरों में डालकर मार डाला गया। आज वही यहूदी फिलिस्तीनियों को मार रहे हैं। उन्हें आसमान से बम बरसा करके मारा जा रहा है, पूरी फिलिस्तीनी नस्ल खत्म की जा रही है और दुनिया में फिलिस्तीनियों की तरफ से बोलने वाले अपराधी माने जा रहे हैं। जहर पूरी दुनिया में रग रग में फैल गया है। एक फिलिस्तीनी लड़की ने एक मार्मिक अपील जारी की है दुनिया के नाम। उसने कहा है कि कुछ दिनां बाद आप लोगों को हमें मरते हुए देखना नहीं पड़ेगा क्योंकि हम पूरे फिलिस्तीनी खत्म हो चुके होंगे।
अपने देशों में युद्ध से परेशान लोग भागते हैं सीमा पर लगे कटींले तारों के बीच से गोलियों की बौछारों के बीच। नावों में समुद्र की उछलती लहरों के बीच। जहां कहीं नाव किनारे लग जाए वहीं उतर जाते हैं और शरणार्थी कहलाते हैं। याद है आपको उस छोटे से मरे बच्चे की तस्वीर जो ऐसी ही किसी नाव से उछलकर लहरों में लहराता किनारे आ लगा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे समुद्र किनारे कोई गुड्डा (खिलौना) पड़ा हो।
उफ। धर्म ने किस कदर दिमागों को बांटा है कि हम आदमी भी नहीं रह गये। हालांकि धरती पर इंसानों की संख्या बहुत है पर वो चुप हैं।
मनुष्यताप्रेमी