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प्राइम टाइम विथ डाॅक्टर परिमल स्वामी में पत्रकार आशीष शुक्ला:   इलाज में जितनी चिकित्सक की भूमिका उतनी मरीज की

-संदेह न करते हुए चिकित्सक को अपना मित्र माने

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– मौत तो एक दिन सबको आनी पर उसका इंतजार करने की वजाए खुलकर जीना चाहिए
– बीमारी से डरो मत, उसके साथ चलकर उसे मात देना चाहिए

 

यशभारत के पाठकों को यशभारत प्राइम टाइम विथ आशीष शुक्ला में हर बार एक ऐसे व्यक्ति का साक्षात्कार पढ़ाया जाता था जो लोगों को प्ररेणा दें,पढ़कर लोगों की जिंदगी में कुछ बदलाव हो। इस बार भी प्राइम टाइम विथ आशीष शुक्ला के स्थान पर यशभारत प्राइम टाइम विथ डाॅक्टर परिमल स्वामी है और जिसमें यशभारत के संस्थापक, एक पत्रकार और लीवर ट्रांसप्लांट करा चुकें आशीष शुक्ला है। आशीष शुक्ला ने प्राइम टाइम विथ डाॅक्टर परमिल स्वामी कार्यक्रम में अपनी बीमारी और इलाज की बात बेबाकी से रखी। उन्होंने बताया कि लीवर ट्रांसप्लांट कराना कितना आसान है परंतु इसके पीछे सबसे पहले खुद को परिपक्व होना होगा। हमें डाॅक्टरों पर संदेह की वजाय उन पर भरोसा करना होगा। डाॅक्टरों पर विश्वास के कारण ही वह इतनी बड़ी बीमारी से उभरकर एक सुव्यस्थित जीवन जी रहे हैं। उन्होंने कहा कि मौत तो एक दिन सबको आनी है परंतु उसका इंतजार करने की वजाए जिंदगी जीना चाहिए,बीमारी से डरो मत उसके साथ चलकर उसे मात देना पहला लक्ष्य रखना चाहिए। आइए जानते है आशीष शुक्ला ने अपने लीवर ट्रांसप्लांट को लेकर क्या कुछ कहा…..

 

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सवालः जनरल चैकअप में बीमारी पकड़ में आई तो कैसा महसूस हुआ

जवाबः करीब डेढ़ साल पहले डाॅक्टर परमिल स्वामी मतलब आपके पास जनरल चैकअप के पहंुचा तो आपने कहा कि थोड़ी आॅक्सीजन की कमी है और कोई विशेष तकलीफ नहीं थी। लेकिन आपके सुझाव और बातों को मैंने गंभीरता से लिया और आपने विभिन्न विशेषज्ञों की सहायता ली। इसके बाद आपने डॉक्टर पुष्पराज पटेल डॉ मनीष तिवारी, डॉक्टर ऋषि डाबर के साथ मिलकर मेरी बीमारी के बारे में अध्ययन किया। सभी डाॅक्टरों के सहयोग से आपने पता कि मेरी बीमारी पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम है। इस बीमारी में फेफड़ों में असर होना जिसमें ऑक्सीजन काम हो जाता है। आपके और अन्य डाॅक्टरों के पूरे सहयोग के बाद दिल्ली मेदांता हाॅस्पिटल में चैकअप हुआ और कुछ समय बाद बीमारी का इलाज हुआ।

सवालः बीमारी का पता चला तो घबराहट हुई आपको

जवाबः नहीं मुझे किसी भी तरह की घबराहट नहीं हुई। क्योंकि जिस व्यक्ति के पास आप जैसा डाॅक्टर हो उसे कहां घबराहट हो सकती है। मैंने आपसे उसी वक्त पूछा था कि इस बीमारी से निकलने का हाल बताइए तो आपने मुझे ना बताते हुए मेरे परिवार का अहम हिस्सा विवेक तन्खा जी को पूरी बीमारी के बारे में बताया। इसके बाद से श्री तन्खा जी ने दिल्ली मेदांता हाॅस्टिल के डाॅक्टरों से बातचीत की फिर मेरा ट्रीटमेंट शुरू हुआ।

सवालः मेदांता हाॅस्टिल पहुंचे तो किसी ने कुछ बोला नहीं वहां

जवाबः परमिल जी बड़ा रोचक किस्सा है। इलाज के लिए जब मैं दिल्ली मेदांता हाॅस्पिटल पहंुचा तो डाॅक्टरों का पहला सवाल यह था कि नीचे प्लोर से तुम ऊपर तक कैसे आए हो । उनका मानना था कि तुम यहां तक पहुंचे नहीं सकते क्योंकि ऑक्सीजन लेवल कम था तो मैंने बोला मैं तो जबलपुर से ऐसे ही चल रहा हूं । डाॅक्टरों ने जब मेरीे ऐसी बातें सुनी तो वह मान गए कि बीमारी बड़ी नहीं होती है व्यक्ति के अंदर जीने की इच्छा हो तो वह बड़ी से बड़ी बीमारी को हरा सकता है।

सवालः बाॅडी में जरा भी तकलीफ हो तो क्या करना चाहिए

जवाबः मेरा अनुभव कहता है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन में बड़ी या छोटी बीमारी हो सकती है। जब कभी भी व्यक्ति को लगे उसके शरीर में कुछ घट-बढ़ रहा है या फिर अन्य कोई तकलीफ हो तो तत्काल उसे डाॅक्टर के पास जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति का फैमिली फिजिशियन होना चाहिए जिससे आप नियमित रूप से चेकअप कराएं।

सवालः लीवर ट्रांसप्लांट कराने को लेकर क्या सोच थी

जवाबः मेरा पहले भी यही जवाब था कि बीमारी बड़ी हो या छोटी उसका इलाज तत्काल कराना चाहिए। आपने और अन्य डाॅक्टरों की टीम ने मुझे सलाह दी बीमारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए। और जब मैं दिल्ली मेदांता हाॅस्पिटल पहंुचा और वहां डाॅक्टरों से जानकारी ली तो उनका कहना था कि लीवर ट्रांसप्लांट अभी भी करा सकते हो या फिर जब आपकी मर्जी हो। ऐसा सुनकर मैंने तत्काल निर्णय लिया और ट्रांसप्लांट के लिए तैयार हुआ।

सवालः कहते लीवर ट्रांसप्लांट तब होता है जब कोई अपना डोनेट करें
जवाबः बिल्कुल सही कहा आपने, लीवर ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया थोड़ी लंबी है परंतु सही है। मेरे साथ भी यही हुआ, मुझसे कहा गया कि लीवर ट्रांसप्लांट इसी शर्त पर होगा कि जब आपके परिवार का कोई सदस्य लीवर डोनेट करें। मेरा परिवार बड़ा है तो मुझे भरोसा था कि किसी न किसी का लीवर मैच हो जाएगा। इसके लिए भाई से लेकर पत्नी तक ने दिल्ली में जाकर चैकअप कराया परंतु दोनों का लीवर मैच नहीं हुआ। जब ऐसा हुआ तो थोड़ा परेशान हो गया परंतु परात्मा पर पूरा भरोसा था, इसी बीच एक रिश्तेदार युवक का लीवर मैच हुआ और लीवर ट्रांसप्लांट हुआ।

सवालः लीवर डोनेट की प्रक्रिया लंबी होती है, कुछ बताए इस बारे में
जवाबः सही कहा आपनेलीवर डोनेट की प्रकिया लंबी होती है। इसके पीछे कारण भी है क्योंकि बहुत से लोग लीवर डोनेट करना अपना पेशा बना लेते हैं कहने काम मतलब ये है कि पैसों के लिए बहुत से लोग लीवर डोनेट करते हैं। यह सब रोकने के लिए इस प्रक्रिया को जटिल बनाया गया है। लीवर डोनेट के पहले एक कमेटी बनती है जो तय करती है कि जिस व्यक्ति को लीवर डोनेट कर रहा है वह मरीज का क्या लगता है, क्या रिश्ता है। इस तरह की तमाम औपचारिकताएं पूरी होने के बाद ही लीवर ट्रांसप्लांट होता है।

सवालः 27 अप्रैल को लीवर ट्रांसप्लांट हुआ इस दौरान क्या कुछ घटा आपके साथ
जवाबः लीवर ट्रांसप्लांट के पहले कई परेशानियों से गुजरना पड़ा पहले सोचा था कि लीवर डोनेट करने वाला मिल गया तो जल्द ही लीवर ट्रांसप्लांट हो जाएगा। परंतु ऐसा हुआ नहीं है। मेदांता हाॅस्पिटल के एनेस्थीसिया डाॅक्टरों ने ट्रांसप्लांट करने से मना कर दिया इसके बाद मैंने मेदांता के डाॅक्टर बोहरा से बात की तो और पूरी बात समझाई इसके बाद 27 अप्रैल को लीवर ट्रांसप्लांट हुआ।

सवालःलीवर ट्रांसप्लांट के बाद कैसी दिनचर्या थी बताएं
जवाबः ट्रांसप्लांट के बाद में रियेेक्शन ना हो इसके लिए कई तरह की दवाई दी जाती है जैसे शुगर बढ़ने लगती है तो आपको इंसुलिन दिया गया पर धीरे धीरे इंसुलिन भी बंद हो गया। ग्लूकोस मॉनिटर कई महीना लगा के रखा है वह मैनेज किया। धीरे-धीरे मेरो इंसुलिन और बाकी दवाई अभी बहुत कम हो गई । जबलपुर आने पर मेरे साथ मेदांता हाॅस्पिटल का एक केयर टेकर आया था जो महीने मेरे साथ था और मैंने उसी के अनुसार 3 महीने तक दवाईयांें के साथ अपनी दिनचर्या को अपनाया।

सवालः मेदांता हाॅस्पिटल के डाॅक्टरों ने क्या कहा
जवाबः डाॅक्टर अमित रस्तोगी सहित अन्य डाॅक्टरों की टीम ने मेरा लीवर ट्रांसप्लांट किया। मुझे डाॅक्टर रस्तोगी की एक बात आज भी याद है उनका कहना था कि आपकी बीमारी बड़ी जरूर थी परंतु आपके हौंसले उसे छोटा बना दिया। बीमारी ठीक करने में जितना डाॅक्टर का योगदान रहता है उतना ही मरीज का। जब तक मरीज द्वारा डाॅक्टर का सपोर्ट नहीं किया जाएगा तब तक बीमारी ठीक नहीं हो सकती और न ही डाॅक्टर कुछ कर सकता है।

सवालः आखिरी सवाल क्या मैसेज देना चाहते हो लोगों को
जवाबः मैं यही कहना चाहता हूं कि लोगों को डाॅक्टरों पर भरोसा करना चाहिए न कि संदेह। मैं पत्रकार हूं अच्छी तरह से जानता हूं कि क्या करना चाहिए और यही कारण है कि जब बीमारी पकड़ में आई तो मैंने से सबसे पहले आपसे सलाह ली और फिर आपने अन्य डाॅक्टरों से बीमारी के बारे में पूछा और आगे इलाज के लिए प्रेरित किया। व्यक्ति का मरना तो निश्चित है परंतु हम मरने का इंतजार क्यों करें। जो जिंदगी मिली है उसे खुलकर जीये, बीमारियां हैं आती-जाती रहंेगी। कोई भी बीमारी हो इसका सही इलाज कराए। सिंपल चीज ध्यान रखना है खाने-पीने को एडजस्ट करना है दवाइयां समय पर लेना है नियमित व्यायाम करना है छोटी-छोटी और बेसिक चीजों को पूरा करने से किसी भी बड़ी बीमारी का मुकाबला कर सकते हैं।

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