गंगापुत्र भीष्म ने भी किया था सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार, इस दिन खुलते हैं स्वर्ग के द्वार

जबलपुर, यशभारत। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान सूर्य हर माह एक राशि से दूसरी राशि में जाते हैं, जिसे संक्रांति कहा जाता है। पौष मास में भगवान सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में जाते हैं, उस समय को संक्रांति कहते हैं खगोल शास्त्र के अनुसार जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं उसे दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जा रही है, हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति को स्नान दान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
यह है वैज्ञानिक महत्व
विज्ञान के अनुसार मकर संक्रांति यानी सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बेहद महत्व होता है, सूर्य के उत्तरायण होने के साथ ही रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं और उत्तरायण में मनुष्य प्रगति की ओर बढ़ने लगता है। मनुष्य के आंतरिक अहंकार में कमी और उसके तेज में वृद्धि भगवान सूर्य के आशीर्वाद से होती है। आयुर्वेद के अनुसार तिल और गुड मानव शरीर को आंतरिक बीमारियों, ग्रंथि की बीमारियों और जनन इंद्रियों की बीमारियों से बचाते हैं और मकर संक्रांति में तिल और गुड़ के लड्डू ईश्वर को अर्पित करने के पश्चात खाने का विशेष महत्व होता है।
आयुर्वेद में यह है महत्व
मकर संक्रांति में खिचड़ी खाने के पीछे भी आयुर्वेद का रहस्य छुपा हुआ है क्योंकि जब सूर्य उत्तरायण होता है तो सूर्य की ऊष्मता बढ़ने लगती है और नदियों से वाष्पीकरण प्रारंभ हो जाता है। इस स्थिति में मानव शरीर के पाचन में खिचड़ी अमृत का काम करती है, पतंग उड़ाने की परंपरा भी मकर संक्रांति में सम्मिलित है क्योंकि सूर्य का प्रकाश हड्डियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है और सूर्य ग्रहण के राजा हैं और मकर संक्रांति के दिन वह अपने पुत्र शनि की राशि यानी मकर राशि में होते हैं। हड्डियों का सीधा संबंध शनि से ही होता है।
यह है आध्यात्मिक महत्व
मकर संक्रांति का आध्यात्मिक भी बेहद महत्व है, मकर संक्रांति के दिन ही राजा भगीरथ के पूर्वजों को मोक्ष देने के लिए मां गंगा पृथ्वी पर आई थीं और कपिल मुनि के आश्रम के बाहर जाकर सागर में मिल गई थीं। धार्मिक मान्यता है कि मकर संक्रांति को देवताओं का पर्व माना गया है और इस दिन किया गया दान 100 गुना होकर वापस लौटता है, इसीलिए मकर संक्रांति में दान पूर्णिमा का बेहद महत्व होता है। मकर संक्रांति के दिन ही स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते हैं, इसीलिए भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के पश्चात ही बाणों की शैय्या पर रहकर अपना शरीर सूर्य के उत्तरायण होने पर त्याग था, जिसमें उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो।
सूर्य के उत्तरी गोलार्ध की ओर जाने के कारण ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ होता है सूर्य के प्रकाश में गर्मी और तपन बढ़ने लगती है इसके फल स्वरुप प्राणियों में चेतना और कार्य शक्ति का विकास होता है मकर संक्रांति के दिन लोगों को पूर्ण आस्था के साथ यथाशक्ति दान देना चाहिए मकर संक्रांति में सूर्य पूजा का विशेष महत्व है और श्वेत एवं रक्त रंग के पुष्पों का विशेष महत्व होता है भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति का संबंध पीले रंग से है इसीलिए ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन पीले वस्त्र पहनना चाहिए