पत्नी के कमाने पर भी पिता की जिम्मेदारी खत्म नहीं होती, जानिए किस केस में हाई कोर्ट की ये टिप्पणी

नई दिल्ली, एजेंसी। पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा है कि कोई शख्स इसलिए अपने बच्चे की परवरिश की जिम्मेदारी से नहीं बच सकता है कि उसकी पत्नी अच्छा कमा रही है। पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने उक्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि अगर किसी शख्स का बच्चा पत्नी के पास हो और पत्नी पर्याप्त कमाई करती हों तो भी उस शख्स को अपने बच्चे की जिम्मेदारी उठानी होगी।
हाई कोर्ट ने पति की दलील खारिज की
हाई कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता पति की उस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें याची ने कहा था कि उनकी बेटी उनकी पत्नी के साथ रहती हैं। पत्नी उनसे अलग रहती हैं। पत्नी की कस्टडी में उनकी बेटी हैं और पत्नी पर्याप्त कमाई करती हैं। वह खुद के साथ बेटी का खर्चा उठा सकती है। हाई कोर्ट ने कहा कि अगर बच्ची की मां भी कमा रही हों तो भी बच्ची का पिता अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सीआरपीसी की धारा-125 के तहत जो प्रा?वधान है वह सोशल जस्टिस के लिए एक जरिया है, ताकि महिलाएं और बच्चों को प्रोटेक्ट किया जा सके। अलग रहने की स्थिति में यह प्रावधान उनको लाइफ में प्रोटेक्शन सुनिश्चित कराता है। किसी भी महिला का पति या फिर बच्चे का पिता अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता है। उसका दायित्व है कि वह अपनी पत्नी और बच्चे की देखभाल करे। यह उसका पारिवारिक और नैतिक जिम्मेदारी है।
7 हजार प्रति महीने का भुगता का दिया आदेश
मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता शख्स को फैमिली कोर्ट ने निर्देश दिया था कि वह अपनी बच्ची की देखभाल और खर्चे के लिए 7 हजार रुपये प्रति महीने भुगतान करे। इस फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी और उसे चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने कहा था कि उसकी आमदनी 22 हजार रुपये प्रति महीने है। उस पर छह लोग निर्भर हैं। साथ ही कहा गया कि बच्ची की मां की पर्याप्त आमदनी है ऐसे में वह अपनी और बेटी की देखभाल कर सकती है।
हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश में गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया है। इससे पहले फैमिली कोर्ट ने कहा था कि बच्ची नाबालिग है और उसके लिए कोई स्वतंत्र आमदनी का जरिया नहीं है, जिससे उसे सहायता मिल सके। ऐसे में बच्ची के पिता की ड्यूटी है कि वह अपनी जिम्मेदारी निभाए। यह उसकी नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है कि वह बेटी की देखभाल के लिए खर्चा उठाए। याचिकाकर्ता की जिम्मेदारी है कि वह अपने से दूर बेटी की स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग को सुनिश्चित करे। और बच्ची के पिता को निर्देश दिया है कि वह अपनी बेटी को खर्चे के लिए 7 हजार रुपये प्रति महीने का भुगतान करे। इस फैसले में हाई कोर्ट ने दखल से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता शख्स की अर्जी खारिज कर दी।
वैवाहिक विवाद में फैसला नजीर
सीआरपीसी, हिंदू मैरिज ऐक्ट, हिंदू अडॉप्शन ऐंड मेंटिनेंस ऐक्ट और घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारे भत्ते की मांग की जा सकती है। अगर पति-पत्नी के बीच किसी बात को लेकर अनबन हो जाए और पत्नी पति से अपने और अपने बच्चों के लिए गुजारा भत्ता चाहे तो वह सीआरपीसी की धारा-125 के तहत गुजारा भत्ता के लिए अर्जी दाखिल कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में दिए एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि पति की ड्यूटी है कि वह अलग रह रही पत्नी को फाइनांशियल सपोर्ट दे इसके लिए अगर उसे शारीरिक लेबर करना पड़े तो भी उसे यह करना होगा। पत्नी को यह अधिकार है कि वह वहीं जिंदगी जिए जैसा वह अपने पति के घर में जीती थी। हाई कोर्ट ने मौजूदा फैसले में साफ किया है कि सीआरपीसी की धारा-125 के तहत पिता अपनी बच्ची की जिम्मेदारी से नहीं बच सकता है। ये फैसले वैवाहिक विवादों के मामले में नजीर हैं।