इंदौरग्वालियरजबलपुरदेशभोपालमध्य प्रदेशराज्य

डॉ. कृष्णकांत चतुर्वेदी: आजीवन जारी रहा ज्ञानार्जन और वितरण

ज्ञान और साधना की आभा से चमकता चेहरा, आत्म विश्वास भारी स्नेह सिक्त प्रभावशाली वाणी, जो उनसे मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति का सकारात्मक दिशा दर्शन करती थीं । सदा आशीष और मंगलकामनाओं के लिए उठते हाँथ । जी हां, मुझे तो हमेशा ऐसे ही नजर आए डॉ. कृष्णकांत चतुर्वेदी जी । संस्कारधानी जबलपुर को उनकी जन्म स्थली कहलाने का गौरव प्राप्त है । उन्होंने जबलपुर, वृन्दावन एवं वाराणसी से शिक्षा प्राप्त की थी । वे संस्कृत एवं पालि-प्राकृत में एम.ए., साहित्याचार्य, पी.एच-डी. थे । उन्होंने वेद-पुराणों सहित संस्कृत के समृद्ध साहित्य का गहन अध्ययन किया था । आपको डी-लिट्.की मानद उपाधि भी प्राप्त हुई, किन्तु ज्ञान पिपासा ऐसी कि कभी शांत नहीं हुई ।

डॉ. कृष्णकांत चतुर्वेदी रादुविवि जबलपुर के आचार्य एवं अध्यक्ष संस्कृत, पालि-प्राकृत, स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध विभाग तथा निदेशक राजशेखर अकादमी, निदेशक कालिदास अकादमी उज्जैन, कुलगुरु राजशेखर पीठ संस्कृति विभाग म.प्र. शासन रहे हैं । आप केंद्रीय संस्कृत बोर्ड भारत सरकार के लगातार 6 वर्षों तक सदस्य रहे । आपने योजना समिति वि वि अनुदान आयोग दिल्ली एवं अखिल भारतीय कालिदास समारोह समिति में सदस्य के रूप में महत्वपूर्ण कार्य किये साथ ही संस्कृति परिषद, म.प्र.संस्कृति विभाग, आल इंडिया ओरिएण्टल पूना, एमेरिट्स वि वि अनुदान आयोग दिल्ली व प्रदेश एवं देश के लगभग 50 विश्वविद्यालयों की विभिन्न समितियों में महत्वपूर्ण पद पर अथवा सदस्य रहते हुए अपने अनुभवों का लाभ दिया ।

विविध विषयों पर आपके व्याख्यान, भाषण-संभाषण अत्यंत जानकारीपूर्ण व प्रभावशाली होते थे । आपकी वाक कला श्रोता-दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर देती थी । आपके मुखारबिंद से प्रस्तुत भागवत कथा सहित अन्य कथाएं श्रोताओं के मन-मस्तिष्क में वर्णित घटनाओं-परिस्थितियों का दृश्यांकन करते हुए उन्हें उस काल में पहुँचा कर रस विभोर कर देती थीं ।

अकातो ब्रह्म जिज्ञासा, द्वैत-वेदांत तत्व समीक्षा, आगत का स्वागत, विवेक मकरंदम, पिबत भागवतम, जयतीर्थ स्तुति काव्य, ब्रज-गंधा (ब्रज भाषा में), आपके द्वारा रचित-प्रकाशित महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं । इसके साथ ही आपने डॉ. प्रभुदयाल अग्निहोत्री, श्री रामचन्द्र दास शास्त्री के स्मृति ग्रंथ एवं स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि अभिनंदन ग्रंथ का संपादन भी किया । विशिष्ट विषयों पर दो दर्जन शोध निबंधों का प्रकाशन भी हुआ । आपके मार्गदर्शन में 40 छात्रों ने पी-एच-डी. एवं तीन छात्रों ने डी. लिट्. की उपाधि प्राप्त की है ।
शिक्षा जगत एवं समाज को महत्वपूर्ण योगदान के लिए आपको राष्ट्रपति सम्मान पत्र से, डी.लिट्. की मानद उपाधि से तथा जगतगुरु शंकराचार्य पीठ प्रयाग द्वारा सम्मानित किया गया । अखिल भारतीय स्वामी अखंडानंद सरस्वती सम्मान, अखिल भारतीय रामानंद सम्मान, अखिल भारतीय पद्मभूषण पंडित रामकिंकर सम्मान से भी आप अलंकृत हुए । इतनी उपलब्धियों के बाद भी आपके चिंतन-मनन, ज्ञानार्जन और साधना की आजीवन जारी अविराम यात्रा को व समाज को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करने आपकी व्याकुलता को हम सदा स्मरण करते हुए नमन करते रहेंगे । सादर नमन ।

  • – प्रतुल श्रीवास्तव

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button