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डोरीलाल की चिंता – ’उससे’ सब डरते हैं


डोरीलाल जी कुंभ हो आए ? एक दोस्त ने पूछा वो अभी अभी लौटा है। वो संतोष, गर्व और विजय के भाव से ओतप्रोत था।
मैंने कहा – नहीं जरा भीड़ कम हो जाए फिर जाएंगे।
उसे मालूम था कि मैं नहीं जा रहा हूं और उसने मुझे चिढाने के लिए ही पूछा था। उसने फिर कहा आज का लेटेस्ट आंकड़ा आ गया है। 59.01 करोड़ लोग डुबकी लगा चुके हैं। अब बहुत कम दिन बचे हैं। इन दिनों में दस बीस करोड़ लोग और पंहुच जाएंगे। दुनिया में कहीं ऐसा होता है ? 144 साल बाद ये कुंभ हो रहा है। ज्यादा देर की तो मिल चुका मोक्ष, धुल चुके पाप।
मैंने कहा कि मेरे पास मेरी खुद की बुद्धि है। दुनिया में कहीं ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि जितने लोग कुंभ गये बता रहे हो उतनी आबादी चीन के अलावा किसी देश की नहीं है। ये 144 साल वाला झूठ मुझे न बताओ। न मैं पापी हूं और न मुक्षे मोक्ष चाहिए। भारत में हजारों साल से मेले, उत्सव होते रहे हैं। नदियों से हमें पानी मिलता है जिससे जीवन चलता है और खेती किसानी होती है। इसलिये नदियों की हम पूजा करते हैं ताकि उन्हें शुद्ध रखा जाए। कोई गंदा न करे। कुंभ में आदमी अपनी श्रद्धा और परंपरा के कारण जाता है। ये कुंभ कोई मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के कारण नहीं हो रहा। ये नहीं होते तो भी कुंभ होता जैसे पहले होता था और आगे भी होता रहेगा। आज कल भारत में सत्ताधारी जो बोल दे वो ही अखबार छापता है। टी वी चैनलों में आता है और भारत का शिक्षित मध्यवर्ग तुरंत मान लेता है। भारत की जनसंख्या है 140 करोड़। इसमें 40 करोड़ दूसरे धर्मों के लोग और नास्तिकों को निकाल दो तो लगभग पूरा देश इलाहाबाद पंहुच कर डुबकी लगा चुका है। ये गिनती कौन गिन रहा है ? कौन सी मशीनें कहां लगी हैं ? कितनी कारें, कितनी बसें और कितनी रेल गाड़ियों से कितने लोग पंहुच रहे हैं ये कौन गिन रहा है। एक मंझौले से 16 लाख की आबादी वाले शहर में आखिर कितने लोग समा सकते हैं।
आज भारत में गांव शहर दो भागों में बंट गए हैं। वो लोग जो कुंभ गये और नहा आए और वो लोग जो कुंभ में नहीं गए।जो नहीं गए उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाने लगा है। अब धीरे धीरे वो समय भी आ जाएगा जब लोकलाज के लिए जो नहीं गए वो भी कह देंगे कि हम तो पहले ही हो आए थे। कुंभ जाना भर नहीं है। कुंभ से लौटकर ये बात सबको बोलना है कि योगी मोदी को मान गये क्या व्यवस्था है। और मुफ्त में क्या स्वादिष्ट खाना मिल रहा था। अहा क्या मिठाईयां, क्या पकवान। और अब इतने लोग पंहुच गये तो योगी क्या करे। जो लोग मरे हैं न वो अपनी गलती से मरे हैं योगी जी तो बिचारे क्या नहीं कर रहे। लगे हैं दिन रात।
उसने कहा – नहीं तुम जाना नहीं चाहते मगर बोलने से डरते हो।
मैंने कहा हां मैं डरता हूं। क्योंकि यह डरे हुए लोगों का देश है। यहां हर कोई डरता है। वकील डरता है। जज डरता है। बड़े अधिकारी आई ए एस आई पी एस डरते हैं। कुलपति डरता है। प्रिसीपल डरता है। प्रोफेसर मास्टर यहां तक की शिक्षा का बाबू भी डरता है। छात्र डरता है। परीक्षा लेने वाला डरता है। परीक्षा देने वाला डरता है। पति डरता है पत्नि डरती है। उनके बच्चे डरते हैं। स्कूल का प्राचार्य डरता है। स्कूल मालिक डरता है। अभिभावक डरते हैं। बच्चे डरते हैं। संत महात्मा डरते हैं। उनके भक्त डरते हैं। ट्रक मालिक डरता है। ड्राइवर डरता है। राहगीर डरता है। कार बेचने वाला डरता है। कार खरीदने वाला डरता है। कार में बैठने वाला डरता है।
व्यापारी डरता है। ग्राहक डरता है। व्यापारी संघ डरता है। ठेका देने वाला डरता है। ठेका लेने वाला डरता है। सड़क बनाने वाला डरता है। सड़क पर चलने वाला डरता है। लायसेंस देने वाला डरता है। लायसेंस लेने वाला डरता है।
कानून बनाने वाला डरता है। कानून पास करने वाला डरता है। कानून की रक्षा करने वाला डरता है। कानून को लागू करने वाला डरता है। वकील डरता है। जज डरता है। मुवक्किल डरता है। मुद्दई डरता है। गवाह डरता है। अपराधी डरता है। पुलिस डरती है।
सत्ताधारी डरता है। विपक्षी डरता है। जो न सत्ता में है न विपक्ष में है। वो भी डरता है। पंच डरता है। सरपंच डरता है। पार्षद डरता है। मेयर डरता है। विपक्ष का नेता डरता है। जो न बन पाया वो भी डरता है। विधायक डरता है। हारा हुआ विधायक डरता है। सांसद डरता है। हारा हुआ सांसद डरता है। जीता हुआ डरता है। हारा हुआ डरता है। सब डरते हैं।
मंत्री डरता है। मुख्यमंत्री डरता है। जो भूतपूर्व हो गये वो डरते हैं। जो वर्तमान में हैं। वो डरते हैं। जो भविष्य में बनने वाले हैं वो डरते हैं।
प्रेस मालिक डरता है। संपादक डरता है पत्रकार डरता है। बु़द्धजीवी डरता है। लेखक डरता है। कवि डरता है। कलाकार डरता है। निर्देशक डरता है। रोजगार वाला डरता है। बेरोजगार डरता है। किसान डरता है। मजदूर डरता है।
टेलिविजन में दिखने वाला डरता है। दिखाने वाला डरता है। चैनल वाले डरते हैं। चैनल मालिक डरते हैं।
बडे़ बड़े न्यायाधीश डरते हैं। बड़े बड़े वकील डरते हैं। चुनाव आयुक्त डरते हैं। उपचुनाव आयुक्त डरते हैं। चुनाव लड़ने वाले डरते हैं। जो चुनाव नहीं लड़ते वो भी डरते हैं। चुनाव जीतने वाले डरते हैं। चुनाव हारने वाले डरते हैं।
डोरीलाल भी डरता है। इसलिए उसने बहुत सारे डरपोकों के नाम नहीं लिखे हैं। वो बहुत बड़े डरपोक हैं। वो बहुत बड़े लोगों से डरते हैं। कौन नहीं डरता है। हर किसी को डर है।
बेदखल होने का डर है। किसी के भी बन जाने का डर है। बंद हो जाने का डर है। अपराधी बना दिए जाने का डर है।
जैसे महाआरती है। जैसे महाकुंभ है। वैसे ही ये महा डर है। किसका है ?