डोरीलाल की चिन्ता:- मुझको यारो माफ करना मैं नशे में हूं


आज एक रिपोर्ट शाया हुई है। पता चला है कि विश्वगुरू भारतवर्ष में 37 करोड़ लोग नशे के शिकार हैं। यह अमेरिका नामक महान देश की कुल आबादी से ज्यादा है। इससे डोरीलाल को प्रसन्नता हुई। इस तरह पराजित किया जाता है पश्चिमी संस्कृति को। हमें गर्व करने के लिए एक और बात मिल गई। हम कह सकते हैं कि हमारे देश में जितने लोग टुन्न रहते हैं उतनी तुम्हारे देश की आबादी नहीं है। यानी जितने लोग तुम्हारे यहां दिन रात मेहनत करते हैं उतने तो हमारे यहां देश में बिना काम किए ऐश करते हैं। अर्थात हम आपके देश की अर्थव्यवस्था से ज्यादा बड़ी अर्थ व्यवस्था हैं। आजकल गर्व करने का यही पैमाना है। साहब ऐसा मानकर चल रहे हैं कि उनके ये तर्क और दावें आम जनता दिल से मान लेती है। सही बात है क्योकि 37 करोड़ लोग तो ऑल रेडी नशे में हैं। उनको जो कहोगे वो मान लेंगे। दिल जो भी कहेगा मानेंगे दुनिया में हमारा दिल ही तो है। नशा 37 करोड़ करते हैं और 2019 में बीजेपी कांग्रेस को कुल 35 करोड़ वोट मिले थे। ये पता करना है कि जिन लोगों ने वोट दिया वो किस केटेगरी के थे। नशे वाले या बिना नशे वाले। ये पता करना मुश्किल है क्योंकि पिछले दस सालों में भक्ति के नशे की एक नई कैटेगरी बन गई है। भक्त अलग नशे में चूर हैं। शराबी नशेड़ी तो कभी कभी बिना नशे के रह लेते हैं मगर भक्त हमेशा नशे में रहते हैं। रात को उठकर हाउ डी हाउ डी करते हैं। ये नशा इन्टरनेशनल भी है।
हम विश्वगुरू हैं। अब कोई शक तो रहा नहीं। इस विश्वगुरू देश की एक भी यूनिवर्सिटी दुनिया की टॉप 100 में नहीं हैं। मगर विश्वगुरू हैं। इस देश में सरकारी ग्रेडिंग में जो प्रथम तीन यूनिवर्सिटी हैं – आई आई ऑफ साइंस बेंगलुरु, जे एन यू, और जामिया मिलिया हैं। जे एन यू और जामिया मिलिया सरकार को फूटी आंखो नहीं सुहातीं। इनके खिलाफ सरकार ही आंदोलन करती है। अनपढ और शिक्षित दोनों भक्त इन्हें गाली देते हैं। इनको विनष्ट करने की कोशिशें जारी हैं। विश्वगुरू देश में शिक्षा का स्तर इतना ऊंचा है कि पिछले 5 सालों में 25 लाख छात्र विदेशों में मंहगी फीस दे देकर लाखों रूपये का कर्जा लेकर दाखिला ले चुके हैं और ये सिलसिला जारी है।
देश में शिक्षा संस्थानों और विश्वविद्यालयों में व्यवस्था की क्या हालत है इसका पता अभी ताजा घटना से चलता है। अशोका यूनिवर्सिटी देश की प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी है। उसके अर्थशास्त्र विभाग के प्रो सव्यसाची दास को निकाल दिया गया। उनने देश के 12 संसदीय क्षेत्रों के चुनाव परिणामों और कारणों का अध्ययन किया था और ये पाया था कि सत्ताधारी दल की जीत सुनिश्चित करने के लिए बहुत से हथकंडे अपनाए गए। ये उनकी एक रिसर्च थी। यूनिवर्सिटी ने अपने प्रोफेसर की रिसर्च की परवाह नहीं की। सरकार की नाराजगी की परवाह की। इसी यूनिवर्सिटी के दो विद्वान प्रतापभानु मेहता और अरविंद सुब्रमनियम पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं। जिस देश में पढाई, अध्यापन, और रिसर्च सरकार को खुश रखने के लिए होगा वहां से 25 लाख छात्र विदेशों में भागेंगे ही। विदेशी विश्वविद्यालयों की चांदी है। वो भी एक बाजार है। उसके लिए मंहगे लोन दिए जाते हैं। स्कॉलरशिप दी जाती है। जो विदेश में पढ़ने जाता है वो प्रायः लौटता नहीं है। डालर और पौंड कमाता है।
एक बड़ी बात ये हुई है कि सव्यसाची दास के समर्थन में देश के बड़े नामीगिरामी शिक्षा संस्थानों के 111 प्रोफेसरों ने बयान जारी किया है। यूनिवर्सिटी को कहा है कि वो सव्यसाची को वापस ले और अध्ययन अध्यापन को सरकारी हस्तक्षेप से बचाया जाए। रिसर्च और अध्ययन को आजाद किया जाए। अशोका यूनिवर्सिटी के समस्त शिक्षकों ने भी कह दिया है कि तत्काल फैसला करो वरना हम नहीं पढ़ायेंगे। छात्रों ने भी कहा है कि हमारे शिक्षक को तत्काल वापस लिया जाए और यूनिवर्सिटी में सरकार के डर का माहौल खत्म हो। पहले विश्वविद्यालय प्रोफेसरों की कीर्ति से जगमगाते थे। अब विश्व विद्यालय पढाई और रिसर्च के लिए तो नहीं जाने जाते। शिक्षकों में भी जबरदस्त भक्ति भावना का संचार हो चुका है। भक्ति करो। पढाने की क्या जरूरत।
इस देश में सत्ताधारी इतनी जबरदस्त ताकत के बावजूद इतना डरा हुआ क्यों है ? अनअकादमी के एक शिक्षक को केवल एक वाक्य के कारण नौकरी से निकाल दिया गया। कैसे नेता को चुनना चाहिए ये बच्चे का प्रश्न था। उसने उत्तर दिया कि पढ़े लिखे आदमी को चुनना चाहिए। इससे बड़ा तहलका मच गया। अनअकादमी ने तुरंत शिक्षक को निकाल दिया। सवाल ये है पढा लिखा होने की बात किसको बुरी लग सकती है ? और जिनको लग सकती है उन्हें सब जानते हैं।
पूरे कुंए में भांग पड़ी है।