डोरीलाल की चिंता – रिक्शे पर सवार दीनदयालु

डोरीलाल ने तय किया कि इस ठंड में फलालैन की नई शर्ट बनवाई जाए। सो फुहारे की मशहूर दुकान से कपड़ा खरीदा। 750 रू दिए। बाहर निकले तो बिही का ठेला दिखा। दो किलो बिही खरीदी। 100 रूपये दिए। फिर ऑटो वाले को रोका। शहीद स्मारक जाना है। उसने कहा – बैठो। पचास लगेंगे। अरे अभी दस में आया हूं। तब तक पीछे एक साइकिल रिक्शा आकर खड़ा हो गया। वो कातर निगाहों से मेरी ओर देखने लगा। मैंने कहा शहीद स्मारक चलोगे। उसने कहा वहीं जहां मेला लगता है मैंने कहा वहीं। कितना लोगे। वो घबरा गया। उसे एक क्षण में ऐसा उत्तर देना था कि सवारी मना न कर दे। उसने कहा- तीस रूपये। मैं झट से बैठ गया। उसने कहा आप भले आदमी हो। वरना आजकल साईकिल रिक्शे पर बैठता कौन है। एक क्षण में उसने मुझे दीनदयालु बना दिया।
जब मैं दीनदयालु बन गया तो मुझ पर मस्ती छाने लगी। मुझे राजनीति सूझने लगी। मैंने उस पर प्रश्न दागना शुरू कर दिए। मैंने कहा कितना कमा लेते हो। उसने कहा कभी कभी रिक्शे का किराया निकल आता है। कभी कभी खाने भर को मिल जाता है। कहां रहते हो ? उसने कहा – कहीं नहीं। मुझे समझ आ गया कि इसे सरकार की जनहितकारी योजनाओं की जानकारी नहीं है। उसी के अभाव में यह भूखों मर रहा है और बिना घर के रह रहा है। मैंने कहा कि तुम दीनदयालु थाली जो पांच रूपये में मिलती है वो क्यों नहीं खाते। हर त्यौहार में इतने भंडारे लगते हैं उनमें क्यों नहीं खाते। और सरकार तुम लोगों को 5 किलो अनाज हर महीने दे रही है आराम से पेट भर खाओ और सोओ। प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ उठाओ। अभी करोड़ों लोगों को घर मिल रहे हैं। अगले पच्चीस सालों में तो घर ज्यादा हो जाएंगे लोग घट जाएंगे। घर खाली पड़े रहेंगे। तुम लोग जागरूक बनो। तुम लगे हो यह रिक्शा घसीटने में। तुम्हारी गरीबी का कारण तुम खुद हो।
मैं रिक्शे पर बैठा था। वो रिक्शा खींचे जा रहा था। मैंने कहा कि दरअसल भारत के लोग मेहनत करना नहीं चाहते। जापान में देखो। सिंगापुर में देखो। वहां लोग मेहनत करते हैं। हमारे यहां किसान खेती में मेहनत नहीं करना चाहते और कहते हैं कि फसल का दाम सही नहीं मिलता। मजदूर कारखानों में मेहनत नहीं करना चाहते और कहते हैं कि काम नहीं मिलता। आखिर हम लोग करें क्या ? मेरे अंदर विजय मालया वगैरह की आत्मा आ चुकी थी।
वो रिक्शा चलाए जा रहा था। उसने पीछे मुड़कर मुझे घूरा। मैं सकपका गया। मैंने बात बदलने के लिए उससे पूछा कि अरे ये रोटी कपड़ा मकान की बात छोड़ो। ये बताओ कि अब सरकार ये बार बार चुनाव का चक्कर बंद कर रही है। अब देश में एक देश एक चुनाव होगा। बस एक बार वोट दोगे और हमेशा के लिए वोट देने से मुक्त हो जाओगे। एक बार सरकार बन जाएगी। हमेशा बनी रहेगी।
मेरा जोश बढ़ता जा रहा था। मैंने कहा अच्छा ये बताओ कि तुम्हें संविधान पर गर्व है कि नहीं। तुम कितने भाग्यशाली हो कि तुम उस देश में रहते हो जहां एक संविधान है। जहां संविधान दिवस मनाया जाता है। संविधान की पूजा की जाती है। संविधान की रक्षा के लिए लोग एक दूसरे से लड़ मरते हैं। कहीं कोई संविधान की किताब सिर पर लिए घूम रहा है तो कहीं कोई हाथ में लिए सबको दिखाता घूम रहा है।
मेरी बकबक सुनकर उसने एक बार मुझे पीछे मुड़कर देखा और रूआंसा होकर बोला – बाबू जी काम मिलता नहीं, हर चीज़ बहुत मंहगी हो गई है।
मेरी हवा सरक गई। लगा जैसे किसी ने सिर पर हथौड़ा मार दिया हो।
कुछ देर मैं चुप रहा। सदमा बर्दाश्त करता रहा। फिर मैंने हिम्मत जुटाई। उससे कहा कि देखा चारों ओर विकास हो रहा है। हर तरफ खुशहाली है। इस बार जो बजट आया है उससे लोग खुशी से झूम उठे हैं। तुम्हें मालूम है कि बारह लाख कमाई वालों को एक रूपया इनकम टैक्स नहीं देना है। देखो रिक्शे वाले भाई अब दुखी ही रहना है तो रहे आओ वरना हमारे प्यारे देश में खुशी के मौके बार बार आते हैं।
हर बजट से करोड़ों लोगों को रोजगार मिला है। इतने रोजगार मिलने लगे कि लाखों लोग विदेशों में भागने लगे। कहीं हमें भारत में नौकरी मिल गई तो फंस जाएंगे। इसलिए वो लोग जैसे तैसे मरते खपते अमेरिका कनाडा जा रहे हैं। भारत देश की महानता की जितनी तारीफ की जाए कम है। यहां बेरोजगार भी विदेश भाग रहे हैं और करोड़पति भी विदेश भाग रहे हैं।
भारत में इतनी अच्छी पढाई हो रही है और पढ़ाई का स्तर इतना उंचा हो गया है लाखों विद्यार्थी करोड़ों रूपये का कर्ज लेकर विदेशों में जाकर पढ़ाई करने लगे हैं ताकि विदेशों में बता सकें कि इस दुनिया में सर्वश्रेष्ठ पढ़ाई भारत में होती है। इतनी श्रेष्ठ पढ़ाई हम लोग सहन नहीं कर पाते इसलिए घटिया पढ़ाई करने विदेश जाते हैं। तुम्हें मालूम है रिक्शे वाले भैया कि तुम जिस देश में रिक्शा घसीट रहे हो वो विश्वगुरू था। फिर कहते हैं कि भारत फिरसे विश्वगुरू बन जाएगा। इससे शक होता है कि शायद अभी नहीं है।
रिक्शेवाले भैया तुम महाकुंभ हो आओ। गंगा में डुबकी लगा आओ। करोड़ों जा रहे हैं। वहां मुफत का बढिया खाना मिल रहा है। तुम तो शकल से ही पापी टाइप के दिख रहे हो। वहां जाना। डुबकी लगाना। सारे पाप जब तक धुल न जाएं तब तक डुबकी लगाते रहना। जब एक एक पाप धुल जाए एक दम फ्रेश हो जाओ तो वापस आना और ये रिक्शा चलाना और बारह साल तक खूब पाप करना यदि जिंदा रह गए तो अगले कुंभ में जाकर फिर पाप धो लेना।
मुझे बहुत हल्का महसूस हो रहा था। आज मैंने एक आदमी को विकास की महिमा से परिचित करा दिया है। शहीद स्मारक आ गया। यहां मेरी बीस लाख रूपये की एस यू वी खड़ी थी। मैं रिक्शे से उतरा। उसे मैंने तीस की जगह पचास का नोट दिया और इतराता हुआ अपनी कार की ओर बढ़ गया।
डोरीलाल विकासप्रेमी