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देव नगर खनन घोटाला: एक ही खदान से निकल रहा लेटराइट और मुरुम

दो खसरों की अलग-अलग लीज खदान एक

 

 

 

जबलपुर, यश भारत। सिहोरा क्षेत्र के देवनगर क्षेत्र में चल रही मुरुम,लेटराइट, आयरनओर की खदानों में चल रहा गोलमाल धीरे-धीरे सामने आ रहा है। यश भारत द्वारा शुक्रवार को समाचार प्रकाशित किया गया था, जिसमें बताया गया था कि देवनगर के खसरा नंबर 573, 74 और 575 में पुष्पराज सिंह बघेल के नाम से मुरुम की खदान स्वीकृत है, लेकिन यहां से लेटराइट निकालने की बात सामने आ रही है। शुक्रवार के समाचार में त्रुटि बस खसरा नंबरों में चूक हो गई थी जिसमें 573 की जगह 576 खसरा नंबर प्रकाशित कर दिया गया था। इस पूरे मामले में एक नई चौंकाने वाली बात सामने आई है। जिसमें खसरा नंबर 573, 574 और 575 में मुरुम की खदान आवंटित की गई है। जबकि इन्हीं खसरों से सटा हुआ खतरा खसरा नंबर 576 है जो की लेटराइट के लिए आवंटित किया गया है ऐसे में सवाल तो खड़े होंगे ही।

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कागजों पर हो रहा खेल

देवनगर में अलग-अलग खसरों के नाम पर खनिज की अलग-अलग लीज बना दी गई है। जबकि प्राकृतिक संसाधनों का बंटवारा खसरों के आधार पर नहीं प्राकृतिक वातावरण के आधार पर होता है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण देवनगर का खसरा नंबर 575 और 576 है जहां पर भौतिक रूप से एक ही खदान समझ में आती है। जिसे खसरों से अलग करके देखें तो एक ही जगह पर मुरुम और लेटराइट का खनन हो रहा है। ऐसे में सामान्य व्यक्ति भी समझ सकता है की खसरों की आड़ में राजस्व की लूट चल रही है।

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बाजार भाव में है अंतर

वैसे तो आधिकारिक रूप से देखें तो मुरुम और लेटराइट की रॉयल्टी में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। लेकिन बाजार भाव में बहुत अधिक अंतर है। यदि मुरुम की खदानों से लेटराइट की पुष्टि होती है तो फिर निकाली गई मात्रा से लगभग 30 गुना पेनल्टी लगाने का प्रावधान है। ऐसे में देखना होगा की जांच के बाद खनिज विभाग कार्रवाई करता है या मामले को दबा देता है। लेकिन पेनल्टी की राशि करोड़ों में होगी। इस पूरे मामले में महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि मुरुम की खुदाई गहरी गहरी खदानों से हो रही है। जिसके खनन और परिवहन में बहुत व्य आता है जबकि मुरुम का बाजार मूल्य बहुत अधिक नहीं है । ऐसे में सवाल तो उठेगा ही की अधिक खनन लागत होने के बाद भी मुरुम को क्यों खोदी जा रहा है।

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