जबलपुर, यशभारत। जबलपुर विधान सभा में ऐसा परिसीमन हुआ कि अधिकांश नेताओं की राजनीति दांव पर लग गई।सिहोरा विधानसभा क्षेत्र उनमें से एक है। परिसीमन के पहले ये सामान्य सीट थी लेकिन परिसीमन के बाद यह अनुसूचित जनजाति आरक्षित सीट हो गई। जिससे उस क्षेत्र के सामान्य वर्ग के नेताओं की राजनीति दांव पर लग गई।
सिहोरा विधानसभा सीट का क्षेत्र उत्तर दिशा में बड़वारा बॉर्डर के सिलौदा गांव तक, उत्तर पूर्व में बांधवगढ़ बॉर्डर, पूर्व में शहपुरा(डिंडौरी) बॉर्डर, दक्षिण पूर्व में बझौली गांव, दक्षिण दिशा में निवास बॉर्डर, दक्षिण पश्चिम दिशा में पनागर बॉर्डर के बताई गांव , पूर्व दिशा में अमझर, और उत्तर पूर्व दिशा में बुधारी गांव तक है।
जाति समीकरण,,,
सिहोरा विधानसभा सीट हिंदू और आदिवासी बहुल सीट है। आंशिक संख्या में मुस्लिम, जैन और ईसाई समुदाय भी यहां निवास करता है। सिहोरा विधानसभा सीट में बड़ी संख्या में ओबीसी ,मतदाता,आदिवासी वर्ग है। काफी संख्या में दलित मतदाताओं की भी उपस्थिति है। हालांकि सिहोरा उपनगर में ब्राम्हण और सवर्ण मतदाता बड़ी संख्या में निवास करते हैं।
कृषि आमदनी का स्रोत,,,
सिहोरा विधानसभा क्षेत्र में आमदनी का प्रमुख स्त्रोत कृषि ही है। क्षेत्र में खनिज में बॉक्साइड की खदानें मौजूद हैं। कुछ मझौले उद्योग भी यहां स्थापित हैं। हालांकि प्रमुख रूप से कृषि पर ही निर्भरता है।
राजनैतिक समीकरण
इस विधानसभा में पहले कांग्रेस का एकाधिकार रहा। भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद यहां प्रभात पांडे कद्दावर नेता के रूप में उभरे। हालांकि साल 1998 के चुनाव में उन्हें कांग्रेस के नित्यनिरंजन खंपरिया ने शिकस्त दे दी। साल 2003 से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा।
खास पहचान
सिहोरा विधानसभा सीट में खास पहचान के रूप में सिहोरा के पर्वत पर दिेवी का मंदिर है। यह मंदिर क्षेत्रवासियों के लिए श्रद्धा का केंद्र है।
सबसे बड़ी चुनावी उठा पटक
सिहोरा में सबसे बड़ी चुनावी उठापटक के रूप में साल 1998 का चुनाव ही जाना जाता है। यहां के वर्तमान विधायक प्रभात पांडे कद्दावर नेता थे, उनकी क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में अच्छी पैठ भी थी, लेकिन 1998 में कांग्रेस के नित्यनिरंजन खंपरिया ने उनकी यह सीट छीन ली और विधायक निर्वाचित हुए थे।
परिसीमन ने नेताओं को घर बैठाया,,,
सिहोरा विधानसभा में चुनावी उठापटक को परिसीमन ने काफी ज्यादा प्रभावित किया। सिहोरा जो कभी प्रभात पांडे बब्बू की सीट हुआ करती थी। साल 2003 में पिछला चुनाव हारने की वजह से उनकी जगह दिलीप दुबे को बीजेपी ने मौका दिया था, वहीं कांग्रेस की ओर से नित्यनिरंजन खंपरिया जाना-माना नाम थे। वे 1998 में विधायक भी निर्वाचित हुए थे। इसके बाद परिसीमन जब लागू हुआ है तो इस क्षेत्र के अधिकांश नेताओं का राजनैतिक करियर खत्म हो गया क्योंकि यह सीट सामान्य से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई।