ग्वालियर, ईएमएस। चाय बेचने वाले आनंद कुशवाह रामायणी 28वीं बार चुनाव मैदान में हैं, लेकिन अब तक किस्मत नहीं चेती है। अब चुनाव लडऩा उनका जुनून बन गया है। आनंद कुशवाह लोकसभा से लेकर पार्षद तक के हर चुनाव में नामांकन दाखिल करते हैं और मेहनत के पैसे से अपना चुनाव प्रचार भी करते हैं। हर बार उनकी जमानत जब्त होती है। वोट भी उन्हें 100 से 200 के बीच मिलते हैं। आठवीं पास आनंद कहते हैं कि हार से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। बस दिल और दिमाग में एक ही बात रहती है कि उन्हें चुनाव लडऩा है। उनके चुनाव लडऩे पर नाते-रिश्तेदार भी तंज कसते हैं। हर चुनाव लडऩे वाले आनंद कुशवाह शहर के दूसरे शख्स हैं, इससे पहले मदन लाल धरती पकड़ राष्ट्रपति से लेकर हर चुनाव का पर्चा भरते थे। उनका चुनाव चिह्न घंटा होता था और तांगे में बैठकर चुनाव प्रचार करने के लिए घंटा बजाते हुए निकलते थे। मतदाता को अपनी अपील का पर्चा पैसा लेकर देते थे। समाधिया कालोनी में चाय की दुकान चलाने वाले आनंद कुशवाह ने 2013 के विधानसभा में दक्षिण विधानसभा से नामांकन दाखिल किया है। पर्चा भरने के साथ ही उन्होंने अपना चुनाव प्रचार भी शुरु कर दिया है। होटल में चाय पीने के लिए आने वाले हर ग्राहक से हाथ जोड़कर वोट मांगना भी नहीं भूलते हैं। आठवीं पास आनंद कुशवाह की आर्थिक स्थिति भी ऐसी नहीं है कि आज के हिसाब से बेहिसाब पैसा खर्च कर चुनाव लड़ सकें। इसके बावजूद अपनी थोड़ी बहुत बचत से क्षेत्र में घूमना व अपील के लिए पर्चे अवश्य छपवा लेते हैं।
राष्ट्रपति से लेकर पार्षद तक के चुनाव लड़ते हैं
राष्ट्रपति से लेकर पार्षद के पीछे चुनाव लडऩे की मंशा के संबंध में उनका कहना है कि बस उनके मन में कुछ शब्दों की टीस और जुनून है। हर प्रत्याशी जीत की उम्मीद के साथ ही चुनाव लड़ता है। हार और जीत तो मतदाता ही तय करता है। भले ही उनके खाते में हर बार हार आए, लेकिन वह चुनाव लडऩा नहीं छोड़ेंगे। इस जुनून से घरवाले भी कुछ परेशान होते हैं। समाज के लोग भी मजाक उड़ाते हैं, इससे उनपर कोई असर नहीं होता है। उनका कहना है कि चुनाव जीतने के बाद उनके मन में कुछ अच्छा करने की मंशा है।
पहले मदनलाल धरती पकड़ रोचक अंदाज में चुनाव लड़ते थे
भले ही नई पीढ़ी मदन लाल धरती पकड़ के नाम से अनभिज्ञ हो, लेकिन 2000 के पहले की पीढ़ी जरूर उनके नाम से परिचित है। उनका भी राष्ट्रपति से लेकर पार्षद तक का चुनाव लडऩे का जुनून था। मदनलाल धरती पकड़ तो दूसरे राज्यों में चुनाव लडऩे के लिए जाते थे। उनका चुनाव प्रचार करने का अंदाज भी निराला था। चुनाव-चिह्न भी उन्हें घंटा मिलता था। वे तांगे में बैठकर चुनाव-प्रचार करने के लिए घंटा बजाते हुए बाजार में निकलते थे और अपने लिए वोट मांगते थे। अपील का प्रिंटटेंड पर्चा भी पैसा लेकर मतदाता को देते थे। उनके चुनाव प्रचार का अंदाज देखने के लिए लोगों की भीड़ लग जाती थी। वे अटल बिहारी वाजपेयी जैसे बड़े चेहरों के खिलाफ भी चुनाव लड़ चुके हैं। वे चुनाव में गंभीर मुद्दे उठाते थे, लेकिन जीत उनके खाते में कभी आ नहीं पाई।
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