10 अक्टूबर को आएगा प्रमोशन में आरक्षण पर फैसला : सुप्रीम कोर्ट में आज 1 घंटे चली सुनवाई
MP सहित अन्य राज्यों को पक्ष रखने के लिए 2 सप्ताह का समय
मध्यप्रदेश में सरकारी पदों पर प्रमोशन पर आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट 10 अक्टूबर को फैसला देगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सहित सभी राज्यों का पक्ष सुनने के बाद कहा कि इस मामले में अब आगे सुनवाई नहीं होगी। सभी राज्य 2 सप्ताह में अपना पक्ष लिखित में पेश करें। शीर्ष अदालत ने कहा कि 5 अक्टूबर से लगातार केंद्र और राज्य सरकार को आधा-आधा घंट अपना पक्ष रखने के लिए समय दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय बेंच ने कहा कि कई वर्षों से यह मामला लंबित है। इसकी वजह से कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं मिल पा रहा है। अब किसी भी स्थिति में आगे तारीख नहीं दी जाएगी। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि इस मामले के फैसले में इंदिरा साहनी और नागराज के केस को शामिल नहीं किया जाएगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इन मामलों में फैसला दे चुका है।
राज्य सरकारों की ओर से मध्यप्रदेश ने लीड किया
मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से इस मामले की पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट मनोज गोरकेला ने दैनिक भास्कर को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने करीब 1 घंटे सुनवाई की, जिसमें सभी राज्य सरकारों की तरफ से मध्यप्रदेश ने लीड किया। केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, विशेष गुप्ता, संजय हेगड़े भी कोर्ट में उपस्थित हुए। गोरकेला ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब इस मामले में अगली तारीख नहीं दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट 10 अक्टूबर को फैसला सुनाएगा। कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखा।
सीनियर एडवोकेट मनोज गोरकेला के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह मामला कई वर्षों से लंबित होने के कारण देश में कर्मचारियों को प्रमोशन नहीं मिल पा रहा है। अब 10 अक्टूबर को इस पर विस्तृत आदेश जारी किया जाएगा। जो केंद्र और देश के सभी राज्यों में लागू होगा। सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश के अलावा पंजाब, बिहार, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा राज्यों के वकील भी मौजूद रहे।
बता दें कि हाईकोर्ट ने पदोन्नति नियम में आरक्षण, बैकलॉग के खाली पदों को कैरिफारवर्ड करने और रोस्टर संबंधी प्रावधान को संविधान के विरुद्ध मानते हुए इन पर रोक लगा दी थी। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, इस पर फैसला होना बाकी है।
2016 में हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक
प्रदेश में पदोन्नति नियम 2002 के तहत अधिकारियों-कर्मचारियों की पदोन्नति होती थी, लेकिन 2016 में उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी। दरअसल, अनारक्षित वर्ग की ओर से अनुसूचित जाति-जनजाति को दिए जा रहे आरक्षण की वजह से उनके अधिकार प्रभावित होने को लेकर हाईकोर्ट में 2011 में 24 याचिकाएं दायर की गई थीं। इनमें सरकार द्वारा बनाए मप्र पब्लिक सर्विसेज (प्रमोशन) रूल्स 2002 में एससी-एसटी को दिए गए आरक्षण को कठघरे में रखा गया था।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को राज्य में एससी-एसटी वर्ग को प्रमोशन में आरक्षण देने के नियम को असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया था। तत्कालीन चीफ जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजय यादव की बेंच ने कहा है कि यह नियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 व 335 के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र को दिए गए दिशा-निर्देश के खिलाफ है।
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए। ऐसे में अब पदोन्नति तभी हो सकती है, जब कोर्ट इसकी अनुमति दे। सरकार ने इसको लेकर कोर्ट से अनुरोध भी किया था पर अनुमति नहीं मिली। इससे सबसे ज्यादा नुकसान उन कर्मचारियों व अधिकारियों को हुआ, जो पिछले 5 साल में रिटायर हो गए। जिसकी संख्या करीब 1 लाख बताई जाती है।
2 साल बढ़ाई थी सेवानिवृत्ति की आयु
पदोन्नति में आरक्षण का मामला लंबित होने की वजह से अधिकारी-कर्मचारी पदोन्नत हुए बिना ही सेवानिवृत्त होते जा रहे थे। इसको लेकर सरकार के खिलाफ कर्मचारियों में नाराजगी भी थी। इसे देखते हुए शिवराज सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा कदम उठाते हुए सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 साल कर दी थी, जो अभी भी जारी है।
यूपी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा
सुप्रीम कोर्ट उत्तरप्रदेश की तत्कालीन मायावती सरकार के निर्णय को पलट चुका है। अदालत ने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण नहीं हो सकता। माया सरकार ने 2008 में यह निर्णय लिया था। इसे जनवरी 2011 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था। हाईकोर्ट के फैसले को राज्य सरकार ने शीर्ष कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दलवीर भंडारी, दीपक मिश्रा और एसजे मुखोपाध्याय की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बहाल रखा। अदालत ने कहा था कि उत्तरप्रदेश सरकार का निर्णय संविधान के प्रतिकूल है। केवल भर्ती के समय ही आरक्षण का लाभ मिल सकता है।
नए नियम का ड्राफ्ट तैयार
सरकार नए पदोन्नति नियम का ड्राफ्ट तैयार कर चुकी है। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार, अपर मुख्य सचिव गृह डॉ.राजेश राजौरा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की समिति बनाई गई थी। समिति ने सभी पहलुओं पर विचार करने और विधि विशेषज्ञों से अभिमत लेने के बाद नए नियमों का मसौदा तैयार कर लिया है। अब इसे कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना है, जिसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रस्ताव भी भेज दिया है।