जबलपुरमध्य प्रदेशराज्य

मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग द्वारा की जा रही विशेष परीक्षा 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका के निर्णयधीन करते हुए अनावेदको को जारी किए नोटिस

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जबलपुर यशभारत। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा एससी एसटी ओबीसी के लगभग 27 सौ अभ्यर्थियों का विशेष एग्जाम कराने का आदेश दिया गया था उक्त सिंगल बेंच के आदेश को डिवीजन बेंच में अधिवक्ता रामेश्वर सिंह द्वारा चुनौती दी गई थी उक्त अपील की सुनवाई में मुख्य न्यायमूर्ति एवं जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ द्वारा सिंगल बेंच के आदेश को उचित मानकर रिट अपील खारिज कर दी गई थी उक्त दोनों आदेशों के विरुद्ध ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन विधिक सहायता से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका क्रमांक स्रुक्क (ष्ट) 5817/2023 दाखिल की गई जिसकी सुनवाई 10 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दिनेश माहेश्वरी एवं जस्टिस संजय कुमार ने प्रारंभिक सुनवाई की! याचिकाकर्ताओं का मुख्य तर्क यह था कि हाई कोर्ट द्वारा पारित किए गए आदेश संविधान के अनु.14 के विरुद्ध है, एक चयन में दो अलग-अलग परीक्षाएं नहीं ली जा सकती तथा हाईकोर्ट द्वारा पारित किया गए आदेश के अनुसार आरक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों की विशेष परीक्षा आयोजित कर तत्पश्यात नॉर्मलजेशन करके सभी अभ्यर्थियों का साक्षात्कार कराया जाए और और उपरोक्त प्रक्रिया 6 महीने के अंदर संपन्न कर ली जाए ! याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता का सुप्रीम कोर्ट में प्रमुख तर्क यह था एससी/ एसटी/ओबीसी के अभ्यार्थियों की विशेष परीक्षा कराई जाती है तो उत्तर पुस्तिकाओं को जाँचने बाला पूर्व आग्रह से ग्रसित होकर चेक करेगा जिससे आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के साथ अन्याय होने की प्रबल संभावना है ! दूसरा तर्क यह था कि विशेष परीक्षा संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है ! तीसरा तर्क था कि मध्य प्रदेश राज्य परीक्षा सेवा नियम 2015 के किसी भी नियम में विशेष परीक्षा कराने का प्रावधान नहीं है न ही नियमों में नॉर्मलाइजेशन करने से संबंधित कोई प्रावधान है ! चौथा तर्क यह था कि हाई कोर्ट द्वारा दिनांक 7/4/ 2022 को पारित आदेश के परिपालन में लोक सेवा आयोग द्वारा पूर्व के समस्त परीक्षा परिणामों को निरस्त किया गया था क्युकि उक्त परिणाम असंविधानिक नियमो के तहत घोषित है थे जिसके कारण आयोग ने दिनांक 10 अक्टूबर 2022 को नियमानुसार रीवाइज रिजल्ट जारी किया जाकर सभी 13 हजार अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा मे शामिल करना संवैधानिक है एवं विधि पूर्वक है, जिसे निरस्त करने का हाईकोर्ट को कोई संवैधानिक अधिकार नहीं था! क्योंकि आयोग द्वारा की गई कार्यवाही नियम अनुसार एवं संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप थी जिसे हाईकोर्ट द्वारा निरस्त कर संविधानिक भूल की है! पांचवा प्रमुख तर्क यह था कि एक प्रकार के चयन पद्धति में सामान्य वर्ग एवं आरक्षित वर्ग की अलग-अलग परीक्षाएं कराना गंभीर संवैधानिक त्रुटि है!
छठवा मुख्य तर्क यह था की हाईकोर्ट द्वारा दिनांक 27/1/2021 को पारित अंतरिम आदेश के प्रवर्तन के दौरान आयोग द्वारा मुख्य परीक्षा आयोजित कराकर दिनांक 31/12/21 को परिणाम घोषित किए गए थे बाद मे हाईकोर्ट द्वारा दिनांक 7/4/22 को अंतिम आदेश पारित कर उक्त परीक्षा नियम 2015 के संशोधन दिनांक 17/2/2020 को असंवैधानिक घोषित करके नियमानुसार रिजल्ट जारी करने का आदेश दिया गया था तथा आरक्षित वर्ग के मेरिटोरियस अभ्यर्थियों को परीक्षा के प्रत्येक चरण मे अनारक्षित वर्ग मे चयन किए जाने का स्पष्ट निर्देश दिया गया था तादोउपरान्त आयोग द्वारा आरक्षित वर्ग के लगभग 2700 नए अभ्यार्थियो को मुख्य परीक्षा के योग्य मनाकर चयनित किया गया है तथा आयोग नए पूर्व की मुख्य परीक्षा के रिजल्ट दिनांक 31.12.21 को निरस्त करके दिनांक 10/10/22 को रीवाइज रिजल्ट जारी किया जाकर लगभग 13 हजार अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा मे शामिल होने का अवसर दिया गया था अर्थात आयोग का उक्त फैसला विधिक है ! माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा उक्त तर्कों को गंभीरता से लेते हुए, लोक सेवा आयोग तथा मध्यप्रदेश शासन को 15 दिन के अंदर जवाब प्रस्तुत करने हेतु नोटिस जारी किया है तथा संपूर्ण भर्ती प्रक्रिया माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका के निर्णय अधीन कर दी गई है उपरोक्त जानकारी अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर द्वारा जारी की गई!हो सके।

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